साभार: जागरण समाचार
मुंबई की एक विशेष एनआइए अदालत ने मालेगांव बम विस्फोटकांड की आरोपी साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर एवं लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित सहित अन्य छह आरोपियों से मकोका एवं हथियार अधिनियम की धाराएं हटा
ली हैं। अब उन पर सिर्फ भारतीय दंड संहिता एवं यूएपीए की धाराओं में मुकदमा चलेगा। हालांकि अदालत ने साध्वी प्रज्ञा, कर्नल पुरोहित, समीर कुलकर्णी, रमेश उपाध्याय एवं सुधाकर द्विवेदी की आरोपमुक्त करने की याचिका ठुकरा दी है। विशेष एनआइए अदालत के निर्देशानुसार सभी आरोपियों पर गैरकानूनी गतिविधि निरोधक अधिनियम (यूएपीए) की धारा 16 (आतंकी गतिविधि को अंजाम देना) एवं धारा 18 (साजिश) के तहत नए आरोप तय किए जाएंगे। इसके साथ-साथ आइपीसी की भी कुछ धाराओं में इन पर मुकदमा चलेगा। दो आरोपियों राकेश धावड़े एवं जगदीश म्हात्रे पर सिर्फ हथियार अधिनियम की धाराओं के तहत मुकदमा चलेगा। जबकि अदालत ने तीन आरोपियों प्रवीण टाकलकी, श्यामलाल शाहू एवं शिवनारायण कालसंगरा को विस्फोटकांड से बरी कर दिया है। मामले के ज्यादातर आरोपी जमानत पर बाहर हैं। पहले दिए गए जमानती बांड मुकदमा चलने के दौरान जारी रहेंगे। एनआइए अदालत में मामले की अगली सुनवाई 15 जनवरी को निर्धारित की गई है। गौरतलब है कि 29 सितंबर, 2008 को नासिक के मालेगांव कस्बे में हुए दोहरे विस्फोटकांड में सात लोग मारे गए थे और करीब 100 लोग घायल हुए थे। ये विस्फोट एक मोटरसाइकिल के जरिए अंजाम दिए गए थे। वह मोटरसाइकिल साध्वी प्रज्ञा ने कुछ वर्ष पहले ही बेची थी। इसी आधार पर महाराष्ट्र एटीएस ने साध्वी प्रज्ञा को इस मामले में आरोपी बनाकर उसी वर्ष अक्टूबर में गिरफ्तार कर लिया था। जबकि लेफ्टीनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित को हिंदूवादी संगठन अभिनव भारत से संबद्ध होने के कारण एटीएस ने इस मामले में आरोपी बनाया था।
प्रज्ञा और पुरोहित सहित मकोका के तहत आरोपी बनाए गए सभी आरोपियों से निचली अदालत भी एक बार मकोका हटा चुकी है। लेकिन बांबे उच्च न्यायालय ने सभी पर पुन: मकोका लगा दिया था। एनआइए के विशेष जज एसडी टेकले के अनुसार सभी आरोपियों से यूएपीए की धाराएं 17 (आतंकी गतिविधि के लिए धन इकट्ठा करना), 20 (आतंकी संगठन का सदस्य होना) एवं 23 (आतंकी संगठन से जुड़े किसी व्यक्ति की मदद करना) भी हटा ली गई हैं।
मकोका में ये प्रावधान: एमसीओसीए (मकोका) महाराष्ट्र सरकार का एक ऐसा सख्त कानून है, जिसे पुलिस यह साबित होने के बाद ही लागू कर सकती है कि आरोपी संगठित गिरोह का सदस्य है, और अपराध किसी आर्थिक लाभ के उद्देश्य से किया गया है। मकोका लगने वाले आरोपी के विरुद्ध पिछले 10 साल में कम से कम दो आरोपपत्र भी दाखिल होने चाहिए। मकोका के तहत आरोपी बनने पर किसी व्यक्ति को आसानी से जमानत नहीं मिलती। मकोका आरोपी को पुलिस कम से कम 30 दिन तक अपनी हिरासत में रख सकती है। जबकि आइपीसी के तहत यह अवधि सिर्फ 14 दिन की है। मकोका आरोपी के विरुद्ध आरोपपत्र पेश करने की अधिकतम अवधि 180 दिन रखी गई है। जबकि आइपीसी के तहत पुलिस को अधिकतम 60 दिन या 90 दिन में आरोपपत्र पेश करना होता है। बता दें कि अब उत्तर प्रदेश सरकार भी मकोका की तर्ज पर यूपीकोका कानून बनाने की तैयारी कर रही है।