एन. रघुरामन (मैनेजमेंटगुरु)
साभार: भास्कर समाचार
तेजी से बदलती परिस्थितियों से सिर्फ संगठनों को बल्कि सरकारों व्यक्तियों को भी अपने क्षेत्र में प्रासंगिक बने रहने की चुनौती पैदा हो गई है। कुछ उदाहरण पेश हैं :
स्पोर्ट्स: जब आप यह कॉलम पढ़ रहे होंगे तो भारतीय क्रिकेट टीम तेजी से विराट कोहली-अनुष्का की शादी के
मुंबई में होने वाले रिसेप्शन में शामिल होने की तैयारी करेगी और तत्काल दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ छह मैचों की वनडे सीरीज के लिए रवाना हो जाएगी। देश में व्हाइट बॉल के दो सबसे अनुभवी और सफल गेंदबाज 40 के स्ट्राइक रेट और 33 के औसत से 111 वनडे में 150 विकेट लेने वाले रविचन्द्रन अश्विन और उसी तरह के आंकड़ों यानी 44 के स्ट्राइक रेट और 36 के औसत से 136 वनडे में 155 विकेट लेने वाले रवीन्द्र जड़ेजा को 17 सदस्यीय दल में जगह नहीं मिली, जबकि एमएस धोनी वनडे टीम में 2019 के वर्ल्डकप तक बने रहेंगे। ऐसा इसलिए है क्योंकि भारत की तो छोड़ो विकेट कीपिंग में दुनिया में कोई उनके निकट भी नहीं है, जिसका मतलब है या तो सुपर एक्सपर्ट हो जाएं या नया हुनर जोड़ते रहें।स्पोर्ट्स: जब आप यह कॉलम पढ़ रहे होंगे तो भारतीय क्रिकेट टीम तेजी से विराट कोहली-अनुष्का की शादी के
मेडिकल: मेडिकल के पेशेवर लोगों के साथ दुर्व्यवहार अौर उन पर हमले कोई नई बात नहीं है लेकिन, यह बढ़ता ही जा रहा है। याद है कैसे दिल्ली के ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस के 1,200 जूनियर डॉक्टर इस मई में हेलमेट पहनकर काम पर आए थे ताकि वे महाराष्ट्र के अपने हमपेशा लोगों के 'सेव सेवियर' यानी बचाने वालों को बचाओ अभियान के साथ एकजुटता दिखा सकें। जाहिर है डॉक्टरों को अब 'देवताओं' की तरह नहीं देखा जाता। इसके कुछ ठोस कारण भी हो सकते हैं। समाज में विभिन्न सेवाओं से बढ़ती अपेक्षा का भी यह असल है।
तनाव गुस्से के इस युग में डॉक्टर इमरजेंसी रूम के बाहर संघर्ष से निपटने के लिए प्रशिक्षण ले रहे हैं और बेंगलुरू के मेडिकल कॉलेज अपने छात्रों को ट्रेनिंग दे रहे हैं कि रोगी के परिजनों और निकटवर्तियों से प्रभावी संवाद कैसे नए युग के मेडिकल पेशेवरों के लिए महत्वपूर्ण विषय है। वैसे भी यह पेशा डॉक्टर और रोगी के बीच रिश्तों पर आधारित पेशा है। यह रिश्ता अच्छा हो तो नतीजे भी अच्छे आते हैं। कुल-मिलाकर काउंसलिंग से लेकर रोल-प्लेइंग और सॉफ्ट स्किल ट्रेनिंग तक हैल्थकेयर सेक्टर भिन्न तरीकों को अाजमाया जा रहा है ताकि पुराने दिनों जैसे डॉक्टर-मरीज के बीच के अच्छे संबंधों को बहाल किया जा सके। हैल्थ मैनेजमेंट के पेशेवरों के लिए चुनौतीपूर्ण वक्त में 'आक्रामक व्यवहार करें। यह दंडनीय अपराध है' जैसे साइन बोर्ड कई अस्पतालों में लग गए हैं, सीसीटीवी लगाए जा रहे हैं और बाउंसरों को रखने पर विचार हो रहा है।
तनाव गुस्से के इस युग में डॉक्टर इमरजेंसी रूम के बाहर संघर्ष से निपटने के लिए प्रशिक्षण ले रहे हैं और बेंगलुरू के मेडिकल कॉलेज अपने छात्रों को ट्रेनिंग दे रहे हैं कि रोगी के परिजनों और निकटवर्तियों से प्रभावी संवाद कैसे नए युग के मेडिकल पेशेवरों के लिए महत्वपूर्ण विषय है। वैसे भी यह पेशा डॉक्टर और रोगी के बीच रिश्तों पर आधारित पेशा है। यह रिश्ता अच्छा हो तो नतीजे भी अच्छे आते हैं। कुल-मिलाकर काउंसलिंग से लेकर रोल-प्लेइंग और सॉफ्ट स्किल ट्रेनिंग तक हैल्थकेयर सेक्टर भिन्न तरीकों को अाजमाया जा रहा है ताकि पुराने दिनों जैसे डॉक्टर-मरीज के बीच के अच्छे संबंधों को बहाल किया जा सके। हैल्थ मैनेजमेंट के पेशेवरों के लिए चुनौतीपूर्ण वक्त में 'आक्रामक व्यवहार करें। यह दंडनीय अपराध है' जैसे साइन बोर्ड कई अस्पतालों में लग गए हैं, सीसीटीवी लगाए जा रहे हैं और बाउंसरों को रखने पर विचार हो रहा है।
सरकार: महाराष्ट्र सरकार का स्वास्थ्य विभाग सीजेरियन डिलिवरी के मामलों के अध्ययन के लिए समिति गठित करने ही वाला है। उसने निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के अस्पतालों को सुझाव दिया है कि वे विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मानक के अनुरूप इनकी संख्या 15 फीसदी से नीचे लाएं। सीजेरियन डिलिवरी में एकदम तेजी आने के कारण इसके जरिये व्यावसायिक शोषण की आशंका के बाद यह कदम उठाया गया है। ऐसे किसी कदम की मांग की जाती रही है लेकिन, इसे अब वास्तविक रूप दिया जा रहा है।
सारांश यही है कि सरकार मैग्निफाइंग लेंस से लैस निगाह जैसी निगरानी रखकर हैल्थ केयर मैनेजमेंट बिज़नेस की पोलिसिंग शुरू कर रही है। इमरजेंसी सीजेरियन सर्जरी पेचीदा मामला है। निश्चित ही सरकार कोई ऐसी स्थितियों की विशेषज्ञ नहीं है लेकिन, अब यह इस पर निगाह रखना चाहती है, क्योंकि इसके जरिये शोषण की बहुत अधिक शिकायतें रही हैं। जाहिर है यह स्थिति की मांग है।
सारांश यही है कि सरकार मैग्निफाइंग लेंस से लैस निगाह जैसी निगरानी रखकर हैल्थ केयर मैनेजमेंट बिज़नेस की पोलिसिंग शुरू कर रही है। इमरजेंसी सीजेरियन सर्जरी पेचीदा मामला है। निश्चित ही सरकार कोई ऐसी स्थितियों की विशेषज्ञ नहीं है लेकिन, अब यह इस पर निगाह रखना चाहती है, क्योंकि इसके जरिये शोषण की बहुत अधिक शिकायतें रही हैं। जाहिर है यह स्थिति की मांग है।
व्यक्ति: अपनी आत्मकथा में महात्मा गांधी ने कहा है कि उन्होंने 18 साल की उम्र में बाइबल पढ़ी थी और 'न्यू टेस्टामेंट ने उन पर एक बिल्कुल अलग ही प्रभाव डाला खासतौर पर ईसा मसीह के सरमन ऑन माउंट ने, जो सीधे मेरे दिल में उतर गया।' हो सकता है कि बाइबल के साथ अन्य धार्मिक अध्ययन भी एक कारण हो कि गांधीजी ने सार्वजनिक मामलों पर लागू होने वाले अहिंसा के सिद्धांत को अपनाया और उसे स्वतंत्रता संघर्ष के आंदोलन में भी लागू किया। इस तरह वे ईसाई धर्म में गहरी आस्था रखने वाले तत्कालीन अंग्रेज लोगों के लिएपूरी तरह प्रासंगिक बने रहे।
फंडा यह है कि यदि आप तेजी से बदलती परिस्थितियों के इस युग में अपने क्षेत्र में प्रासंगिक बने रहना चाहते हैं तो ऐसे हुनर सीखते रहे, जो उस वक्त के लिए आवश्यक हों।
फंडा यह है कि यदि आप तेजी से बदलती परिस्थितियों के इस युग में अपने क्षेत्र में प्रासंगिक बने रहना चाहते हैं तो ऐसे हुनर सीखते रहे, जो उस वक्त के लिए आवश्यक हों।