साभार: जागरण समाचार
वायु प्रदूषण को लेकर जितनी हाय-तौबा मचती है उतना शोर ध्वनि प्रदूषण रोकने के लिए नहीं मचता। जबकि वायु प्रदूषण जितना हानिकारक है, ध्वनि
प्रदूषण भी उससे कम नहीं। सरकारी स्तर पर उदासीनता की स्थिति यह है कि पूरे प्रदेश में ध्वनि प्रदूषण को मापने के लिए कोई यंत्र तक नहीं लगाया गया है। कभी-कभार कहीं से ध्वनि प्रदूषण को लेकर शिकायत आती है तो उसकी जांच जरूर की जाती है। ध्वनि प्रदूषण करने वाले का चालान काटकर चेतावनी भी दी जाती है, लेकिन कुछ समय बाद फिर सब कुछ वही पुराने र्ढे पर चल पड़ता है।
वायु प्रदूषण को लेकर जितनी हाय-तौबा मचती है उतना शोर ध्वनि प्रदूषण रोकने के लिए नहीं मचता। जबकि वायु प्रदूषण जितना हानिकारक है, ध्वनि
प्रदूषण भी उससे कम नहीं। सरकारी स्तर पर उदासीनता की स्थिति यह है कि पूरे प्रदेश में ध्वनि प्रदूषण को मापने के लिए कोई यंत्र तक नहीं लगाया गया है। कभी-कभार कहीं से ध्वनि प्रदूषण को लेकर शिकायत आती है तो उसकी जांच जरूर की जाती है। ध्वनि प्रदूषण करने वाले का चालान काटकर चेतावनी भी दी जाती है, लेकिन कुछ समय बाद फिर सब कुछ वही पुराने र्ढे पर चल पड़ता है।
आमजन में अमूमन कम सुनने की समस्या 65-70 वर्ष में होती है, लेकिन मौजूदा हालात में वर्ष से कम आयु वाले व्यक्ति भी कम सुनने की बीमारी के शिकार हो रहे हैं। इसकी बड़ी वजह ज्यादातर शहरों में सामान्य दिनों में ध्वनि प्रदूषण का स्तर 100 डेसिबल से ज्यादा होना है। खासकर एनसीआर में पड़ते हरियाणा के तेरह जिलों में स्थिति ज्यादा गंभीर है। शादी-विवाह या पर्व और त्योहार में ध्वनि प्रदूषण खतरनाक स्तर पर पहुंच जाता है। आवासीय इलाकों में कान फाड़ू लाउड स्पीकरों की आवाज हो या डीजे और वाहनों के कारण होने वाला शोर या फिर औद्योगिक क्षेत्रों में मशीनों की तेज आवाज, ध्वनि प्रदूषण को रोकने के लिए प्रशासनिक स्तर पर कोई ठोस कार्रवाई होती नजर नहीं आती। तीन प्राधिकरणों को ध्वनि प्रदूषण रोकने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। औद्योगिक क्षेत्र में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, रिहायशी व व्यावसायिक क्षेत्र में एसडीएम और वाहनों के शोर को रोकने का जिम्मा यातायात पुलिस का है। कभी कभार प्रेशर होर्न का प्रयोग करने पर यातायात पुलिस चालान जरूर काटती है, लेकिन अन्य मामलों में शिकायत के बिना कोई एक्शन नहीं होता।
क्या है ध्वनि प्रदूषण: ध्वनि प्रदूषण अनुपयोगी आवाजों को कहते हैं जिससे मानव जीवन और जीव जंतुओं पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। अत्यधिक शोर की स्थिति में सुनने की शक्ति भी जा सकती है। डेसिबल ध्वनि सामान्य होती है। 85 डेसिबल से अधिक शोर में कोई व्यक्ति लगातार रहता है तो बहरेपन का शिकार हो सकता है। ईयर फोन से 95 डेसिबल शोर होता है जो लंबे समय के बाद नुकसान पहुंचाता है। एंबुलेंस व वीआइपी गाडिय़ों पर लगे सायरन से 5 डेसिबल का शोर होता है।
ध्वनि प्रदूषण के कारक: मुख्य तौर पर सर्वाधिक शोर के लिए परिवहन प्रणालियों को जिम्मेदार माना गया है। खराब शहरी नियोजन ध्वनि प्रदूषण को और बढ़ा देता है। इसके अलावा फैक्टरियों की मशीनरी, निर्माण कार्य, इलेक्ट्रानिक उपकरण, लाउड स्पीकर व डीजे भी इसके मुख्य स्नोत हैं।
ध्वनि प्रदूषण के कारक: मुख्य तौर पर सर्वाधिक शोर के लिए परिवहन प्रणालियों को जिम्मेदार माना गया है। खराब शहरी नियोजन ध्वनि प्रदूषण को और बढ़ा देता है। इसके अलावा फैक्टरियों की मशीनरी, निर्माण कार्य, इलेक्ट्रानिक उपकरण, लाउड स्पीकर व डीजे भी इसके मुख्य स्नोत हैं।
ध्वनि प्रदूषण के नुकसान: 130 डेसिबल ध्वनि तक कोई नुकसान नहीं पहुंचाती। डेसिबल ध्वनि नुकसान पहुंचाने लगती है। 130-140 डेसिबल ध्वनि कानों में दर्द शुरू कर देती है। ध्वनि प्रदूषण से चिड़चिड़ापन, उच्च रक्तचाप, मनोरोग, कान में आवाजों की गूंज, तनाव, श्रवण शक्ति का नुकसान, अनिद्रा जैसी बीमारियां आम हो चली हैं। अत्यधिक शोर की स्थिति में यादाश्त खोना, गंभीर अवसाद और असमंजस के दौरे जैसी सस्याएं खड़ी हो सकती हैं। नवजात बच्चों की श्रवण शक्ति प्रभावित होती है, तेज आवाज से पशुओं के गर्भ तक गिर जाते हैं।
खाप पंचायतें आ रहीं आगे: ध्वनि प्रदूषण को रोकने के लिए खाप पंचायतों की पहल सराहनीय है। कई गांवों में विवाह या अन्य समारोह में डीजे पर प्रतिबंध लगाया जा रहा है जो अत्यधिक शोर के कारण हैं। पिछले दिनों हाईकोर्ट ने भी त्योहारों पर आतिशबाजी पर प्रतिबंध लगा कर ध्वनि प्रदूषण से निपटने की दिशा में कदम उठाए। शहरों में वाहनों के हॉर्न का कम इस्तेमाल करने के साथ ही अधिकाधिक पौध रोपण कर इस समस्या से निजात पाई जा सकती है।
किससे कितना ध्वनि प्रदूषण (प्रदूषण विज्ञानियों की तरफ से दी गई जानकारी के अनुसार):
- 10 डेसिबल: सांस
- 10 डेसिबल: पत्तियों की सरसराहट
- 20 से 30 डेसिबल: आपस में सामान्य बातचीत
- 40 डेसिबल: पुस्तकालय
- 50 डेसिबल: भोजनालय हॉल
- 55 से 60 डेसिबल: तेज बारिश
- 60 डेसिबल: तेज आवाज में बातचीत
- 85 से 90 डेसिबल: बसों से
- 90 डेसिबल: स्वचालित वाहन/ घरेलू मशीनें
- 110 डेसिबल: ट्रेन की सीटी
- 115 डेसिबल: तेज म्यूजिक
- 150 डेसिबल: सायरन
- 140 डेसिबल: हवाई जहाज
- 195 डेसिबल: फाइटर प्लेन
ध्वनि प्रदूषण से नुकसान:
- सिर में दर्द रहना
- कानों में आवाज गूंजना
- कम सुनने की समस्या होना
- मनोरोग का तनाव बढ़ना
- ज्यादा शोर होने कारण नींद ना आना
- ज्यादा शोर में नवजात शिशु को चौकना जैसी बीमारी होना
- नवजात शिशु को शोर से दूर रखे, नहीं तो बहरेपन का शिकार होगा
ध्वनि प्रदूषण से बचाव:
- वाहन का हार्न कम बजाय
- लाउडस्पीकर का प्रयोग करने से बचे
- लाउडस्पीकर लगना है तो ऊंचाई पर लगाए
- ज्यादा ज्यादा से पौधारोपण करे, यह ध्वनि प्रदूषण को रोकता है
- आपस में धीरे बात करे
- फोन पर बात करते समय थोड़ा कानों से दूर रख कर बात करे
- उस वाहन में ना बैठे जिसमें ज्यादा ध्वनि है
- अगर आपको किसी शोर से परेशानी है तो उसे बंद कराए
- लाल बत्ती पर खड़े वाहन को बंद कर दे, इससे वायु व ध्वनि प्रदूषण कम होगा और आपके वाहन का ईंधन खर्च भी कम आएगा।
शिकायत पर करते हैं जांच - डॉ. एस नारायणन: प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, हरियाणा के सदस्य सचिव डॉ. एस नारायणन का कहना है कि बोर्ड का अधिक फोकस वायु प्रदूषण और जल प्रदूषण रोकने पर है। कहीं से औद्योगिक इकाइयों द्वारा ध्वनि प्रदूषण की शिकायत आती है तो हमारी टीमें मौके पर जाकर जांच के बाद दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करती हैं। फिलहाल प्रदेश में कहीं पर भी स्थायी रूप से ध्वनि प्रदूषण मापक यंत्र नहीं लगाए गए हैं। विभाग प्रपोजल तैयार कर रहा है जिसके बाद जहां जरूरी होगा, उन जिलों में यह उपकरण लगाए जाएंगे।