एन. रघुरामन (मैनेजमेंटगुरु)
साभार: भास्कर समाचार
एक और शुक्रवार, एक और दूधवाला फ्लाइट। इसके साथ फिर मुंबई के टी 2 टर्मिनल पर एक और ट्रिप के लिए एक और लंबी कतार। लेकिन, एक अंतर था। दस में से छह यात्री युवा थे, जिनके पास संगीत वाद्य थे- गिटार, ड्रम यहां तक कि अफ्रीका का ड्रम जैसा वाद्य 'जेम्बे' भी कई अन्य वाद्यों में था। कुछ 'रॉक एंड सोल' ग्रुप के थे, जो इंदौर में प्रस्तुति देने जा रहा था, सलीम सुलेमान बैंड रायपुर तो स्वरूप खान एंड म्युजिशियन्स जयपुर जा रहा था। कई और ग्रुप भी थे। हर कोई संगीतकार या ऐसा कोई था, जिसका संबंध मंचीय प्रस्तुति से था, जिसके पास हैंड बैगेज के रूप में बड़े-बड़े वाद्य-यंत्र थे। उनमें से कुछ जोड़ियों में थे, जो संभव है किसी बड़े बैंड के सदस्य हों पर किसी अन्य जगह पर अपने ग्रुप में शामिल होने मुंबई से यात्रा कर रहे थे।
संगीतकारों की यह मंडली सूट-बूट वाले कॉर्पोरेट प्रमुखों पर छा गई थी, जो आमतौर पर ऐसा व्यवहार करते हैं जैसे एयरपोर्ट उनके कॉन्फ्रेंस रूम का ही हिस्सा है। यदि कोई थोड़ा भी जोर से बोलें तो वे एेसी निगाह से देखते हैं जैसे वह व्यक्ति 15वीं सदी का हो! लापरवाह अंंदाज वाले इन युवाओं को देखना वाकई मजेदार था। वे इन तीखी कॉर्पोरेट निगाहों पर बिल्कुल ध्यान नहीं दे रहे थे, जो इन युवाओं के व्यवहार में सुधार की मांग कर रही थीं। लेकिन, इस शुक्रवार पूरे एयरपोर्ट के माहौल में संगीत था और उन युवाओं में समान बात एक ही थी उनका आउटलुक। सबसे अच्छा था उनका पहनावा। मुझे घर में भी टोर्न जीन्स की आदत है, क्योंकि मेरे बेटी उन्हें पहनती है लेकिन, कुछ धागों पर खतरनाक ढंग से लटकी उनकी 'सुपर टोर्न' जीन्स देखकर तो मैं अवाक रह गया। पहला ख्याल यही आया कि ये जब से बनी हैं तब से उन्होंने कभी साबुन या पानी नहीं देखा होगा। फ्लाइट में मेरे पास बैठे 'रॉक एंड सोल' के भाविन जैसे युवा तो हाफ ट्राउजर में भी थे, जो मुझे ऐसा अहसास करा रहे थे जैसे में डिनर के बाद अपनी कॉलोनी में चहलकदमी कर रहा हूं। और कुछ ने तो अपने नाइट ड्रेस से मुझे चौंका दिया। मुझे नहीं मालूम था कि कोई नाइट ड्रेस में भी विमान में सवार हो सकता है
अधिकतर बैंड सदस्यों के लंबे बाल थे सिर्फ सिर पर बल्कि चेहरे पर भी- विराट कोहली उनके साथियों का प्रभाव था और क्या। इससे कॉर्पोरेट प्रमुखों को ऐसा लगने लगा जैसे वे किसी बस स्टैंड में हैं। लेकिन वे सब शानदार अंग्रेजी बोल रहे थे। सामान्य से अलग माहौल का सामना होने के बाद मैं फ्रिक्वेंट ट्रेवलर्स के लिए निर्धारित लाउंज में 'शरण' ली। अचानक यह व्यक्ति राजस्थानी 'साफा' बांधे अंदर आया। और पीछे से जो आवाजें उठीं उन्होंने मुझे स्कूल के दिनों में सुनी आवाजों की याद दिला दी, जो तब आती थी जब कोई लड़का कुछ बहुत ही गलत कर देता और लड़कियां उस आवाज से अापत्ति जताती थीं… जैसे कहा हो 'देखो यह यहां भी गया।' लेकिन, वे आवाजें तब मौन हो गईं जब एक सुंदर युवती उठी, खुद का परिचय दिया और उस व्यक्ति का आटोग्राफ लिया। वे जोधपुर के निकट के गांव मांगणियार घराना के स्वरूप खान थे। गायन इस पूरे गांव का ही पेशा है।
स्वरूप 'पीके' फिल्म के 'ठरकी छोकरो' गीत के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने 'दंगल,' 'पद्मावती' और अनुराग कश्यप की 'मुक्काबाज' जैसी कई फिल्में की हैं। मुक्काबाज में उन्होंने 'बहुत हुआ सम्मान' गाया है। फिर लाउंज में जब तक स्वरूप ठहरे थे; पूरे समय मौन छाया रहा, क्योंकि लाउंज 'संगीत को महसूस' कर रहा था। स्वरूप उस 'बोर्ड रूम' में सेलेब्रिटी थे।
फंडा यह है कि आपकासामना भिन्न तरह के व्यवहार से हो सकता है पर उसका आनंद लेने के लिए आपको उस सिंफनी का अंग बनना होगा।