नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट (नीट) की मेरिट के आधार पर देशभर के मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन की प्रक्रिया चल रही है। इस साल के प्रावधानों के अनुसार सभी प्राइवेट संस्थानों की सीटें भी नीट क्वालिफाई कर चुके छात्रों से ही भरी जाएंगी। प्राइवेट संस्थानों में कैपिटेशन फी की व्यवस्था को खत्म करने के लिए यह
प्रावधान किया गया है, लेकिन इसके उल्टे नतीजे देखने को मिल रहे हैं। तमिलनाडु के कई प्राइवेट कॉलेजों ने एमबीबीएस की ट्यूशन फीस 1 करोड़ रुपए तक कर दी है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। कर्नाटक, आंध्रप्रदेश और तेलंगाना में भी प्राइवेट कॉलेजों की फीस में दोगुना तक इजाफा किया गया है। एसआरएम मेडिकल कॉलेज, चेन्नई के डायरेक्टर डॉ. जेम्स पांडियन ने भास्कर को बताया कि फीस में इजाफे को केवल नीट के प्रावधानों से नहीं जोड़ा जाना चाहिए। वे यह भी कहते हैं कि कैपिटेशन फीस पर लगाम लगाना भी मुश्किल है, क्योंकि इस साल भी कुछ प्राइवेट कॉलेजों में छात्रों से इसकी मांग की गई है। हालांकि फीस में वृद्धि को एक्सपर्ट मेडिकल शिक्षा के स्तर में सुधार से भी जोड़कर देख रहे हैं।
उनका कहना है कि जब संस्थान अपनी मर्जी से फीस लेंगे तो उनमें प्रवेश लेने वाले छात्र भी बेहतर स्तर की शिक्षा की मांग करेंगे। चूंकि, सभी सरकारी और प्राइवेट संस्थानों में प्रवेश लेने वाले छात्र एक ही क्वालिफाइंग एग्जाम क्लियर करने वाले होंगे तो प्राइवेट संस्थानों से ज्यादा फीस देने के बदले शीर्ष संस्थानों के बराबर जॉब और कॅरिअर की संभावनाओं की मांग करेंगे। यदि जल्द सुधार नहीं किया तो अधिकतर प्राइवेट संस्थानों को छात्र मिलने बंद हो जाएंगे। एम्स, जोधपुर के डायरेक्टर डॉ. संजीव मिश्रा कहते हैं कि सरकारी हो या प्राइवेट, एमसीआई से मान्यता के लिए सभी संस्थानों को कुछ शर्तें पूरी करनी होती हैं, फिर भी पढ़ाई के स्तर में फर्क है। वहीं, मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया की काउंसिल के सदस्य डॉ. एस एस सांगवान का कहना है कि नीट के इन प्रावधानों से वही संस्थान बने रहेंगे, जो छात्रों को सभी जरूरी सुविधाएं देंगे। उनका मानना है कि इसका असर फिलहाल भले ज्यादा दिखे, लेकिन तीन-चार साल बाद छात्रों की जरूरतें पूरी नहीं करने वाले कॉलेजों के लिए अस्तित्व का संकट खड़ा हो सकता है। डॉ. पांडियन भी मानते हैं कि फीस बढ़ाना संस्थानों की मजबूरी है, क्योंकि कई प्राइवेट कॉलेजों में इंफ्रास्ट्रक्चर, लैब, फैकल्टी आदि की कमी है। ये पूरी करने के बाद ही वे बेहतर शिक्षा उपलब्ध करा सकते हैं। इन सब प्रक्रिया के बाद ट्यूशन फीस के अलावा दूसरे खर्च जोड़ें तो एमबीबीएस करने में छात्र को 1 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च करने होंगे।
21लाख रुपए सालाना फीस वाले संस्थानों में छात्रों को साढ़े चार साल की डिग्री के दौरान ट्यूशन फीस ही 90 लाख रुपए से ज्यादा देनी होगी। इसके साथ लॉजिंग, फूडिंग और अन्य खर्चों को जोड़ने से एमबीबीएस की डिग्री के दौरान छात्रों को 1 करोड़ से ज्यादा की रकम संस्थान को देनी होगी। फीस की यह वृद्धि केवल दक्षिण भारत तक ही सीमित नहीं है, मध्यप्रदेश आैर उत्तर प्रदेश में भी फीस मंे इजाफा किया गया है।
लेकिन संस्थानों द्वारा फीस में इजाफे से योग्य छात्रों के लिए समस्या अब भी बनी हुई है। मध्यमवर्गीय परिवार के छात्र इतनी फीस देने में समर्थ नहीं होते और नीट क्वालिफाई करने के बाद भी उन्हें एडमिशन से वंचित रहना पड़ सकता है।
लेकिन संस्थानों द्वारा फीस में इजाफे से योग्य छात्रों के लिए समस्या अब भी बनी हुई है। मध्यमवर्गीय परिवार के छात्र इतनी फीस देने में समर्थ नहीं होते और नीट क्वालिफाई करने के बाद भी उन्हें एडमिशन से वंचित रहना पड़ सकता है।
अब तक क्या था: अभी तक प्राइवेट मेडिकल कॉलेज अपनी मर्जी से किसी को भी एमबीबीएस में एडमिशन देते थे और इसके बदले कॉलेज फीस से कई गुना ज्यादा डेवलपमेंट फीस और अन्य तरह से वसूलते थे। क्योंकि एडमिशन लेना इन छात्रों की मजबूरी थी तो यह ज्यादा फीस भी चुका देते थे। प्राइवेट संस्थान हरेक सीट के बदले 40 लाख से 1 करोड़ तक की कैपिटेशन फीस वसूलते थे। संसद की स्थायी समिति की रिपोर्ट में भी बताया गया है कि प्राइवेट संस्थान हरेक सीट के लिए 50 लाख या उससे ज्यादा की राशि छात्रों से लेते हैं।
अब क्या होगा: सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद अब केवल नीट क्वालिफाई छात्र ही प्राइवेट कॉलेजों में भी एडमिशन के लिए योग्य होंगे। इसलिए अब मजबूरी में प्राइवेट कॉलेजों को स्तर ऊंचा करना पड़ेगा क्योंकि छात्र उन्हीं प्राइवेट कॉलेजों को चुनेंगे जो अच्छे होंगे। अन्यथा निचले स्तर के कॉलेजों में छात्र एडमिशन नहीं लेंगे और उनकी सीटें खाली रह जाएंगी। वो इसे किसी भी छात्र को नहीं दे सकते हैं।
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साभार: भास्कर समाचार
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