पूरी दुनिया में शिक्षा के स्तर को बेहतर करने के लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा तय किए गए लक्ष्य अब भी काफी दूर हैं। संयुक्त राष्ट्र के संगठन यूएनएचसीआर के मुताबिक विश्वभर में करीब 1 करोड़ 61 लाख शरणार्थी बच्चे हैं, जिसमें से करीब 60 लाख प्राइमरी अौर सेकंडरी स्कूल एज ग्रुप के हैं। इनमें से 37 लाख यानी करीब 62 फीसदी बच्चे ऐसे हैं, जो स्कूली शिक्षा नहीं ले पा रहे हैं। स्कूल नहीं जाने वाले ऐसे बच्चों में 17 लाख 50 हजार प्राइमरी स्कूल उम्र के आैर 19 लाख 50 हजार सेकंडरी स्कूल उम्र के हैं। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। रिपोर्ट में यह बात भी सामने आई है कि प्राइमरी स्कूल एज के कुल बच्चों में 50 फीसदी रिफ्यूजी बच्चे ही स्कूल जाते हैं। प्राइमरी स्तर पर यह मामला चौंकाने वाला है, क्योंकि विश्वभर में 91 फीसदी बच्चे प्राइमरी स्कूल में प्रवेश लेते हैं। भारत में भी प्राइमरी स्तर पर एनरोलमेंट करीब 99 फीसदी है।
20 फीसदी शिक्षक मानकों पर खरे नहीं: एसोचैम द्वारा जारी की गई रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत में स्कूल स्तर पर फिलहाल 14 लाख शिक्षकों की कमी है और 20 फीसदी शिक्षक स्किल की कमी होने के कारण नेशनल काउंसिल फॉर टीचर्स एजुकेशन के मानकों पर खरा नहीं उतरते। इसके अलावा सिर्फ 4.7 फीसदी वर्कफोर्स को ही किसी तरह की फॉर्मल ट्रेनिंग दी जाती है, जबकि जापान में 80 फीसदी, दक्षिण कोरिया में 95 फीसदी, जर्मनी में 75 फीसदी, ब्रिटेन में 68 फीसदी और अमेरिका में 52 फीसदी वर्कफोर्स को ट्रनिंग मिलती है।
50% रिफ्यूजी बच्चे नहीं ले रहे प्राइमरी शिक्षा:हायर एजुकेशन में रिफ्यूजी छात्रों की स्थिति और भी खराब है। विश्वभर में औसतन 34 फीसदी छात्र हायर एजुकेशन में प्रवेश लेते हैं, वहीं हायर एजुकेशन में प्रवेश लेने वाले रिफ्यूजी छात्रों की संख्या बमुश्किल 1 फीसदी है। प्रत्येक 100 ऐसे छात्रों में से सिर्फ एक छात्र ही हायर एजुकेशन में प्रवेश लेने में सफल होता है। आने वाले समय में यह समस्या और भी बढ़ सकती है। यूनेस्को के अनुसार 2020 तक शिक्षा के क्षेत्र में विश्वभर में करीब 4 करोड़ वर्कफोर्स की आवश्यकता होगी। सेकंडरी स्तर पर पढ़ाई करने वाले शरणार्थी बच्चों की संख्या प्राइमरी स्तर के बाद आधे से भी कम हो जाती है। विश्वभर में जहां करीब 84 फीसदी किशोर स्कूल में शिक्षा लेते हैं, वहीं सिर्फ 22 फीसदी रिफ्यूजी किशोर ही स्कूली शिक्षा ले पाते हैं। रिपोर्ट में यह बात भी सामने आई है कि 2000 से 2011 दौरान रिफ्यूजी छात्रों की संख्या 35 लाख के करीब थी और यह अौसतन 6 लाख सालाना बढ़ी। लेकिन 2014 में 30 फीसदी तक बढ़ गई। रिपोर्ट के अनुसार इस तेजी से छात्रों की संख्या बढ़ने के बाद इनकी शिक्षा के लिए अब सालाना 12 हजार अतिरिक्त क्लासरूम बनाने और 20 हजार अतिरिक्त शिक्षकों की जरूरत पड़ेगी।
भारत भी लक्ष्यों को पूरा करने में 50 साल पीछे: भारत के हालात भी कुछ ज्यादा अच्छे नहीं है। हाल ही में आई दो अलग-अलग रिपोर्ट ने देश की शिक्षा व्यवस्था की कमजोरी के बारे में बताया है। यूनेस्को द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि भारत इसी गति से चलता रहा तो शिक्षा के तय किए गए मानकों तक पहुंचने में भारत को 50 वर्षों का समय लगेगा, जबकि ये लक्ष्य 2030 के लिए निर्धारित किए गए हैं। इसी प्रकार एसोचैम द्वारा एक रिपोर्ट जारी करके कहा गया है कि यदि भारत में शिक्षा के स्तर पर इसी गति से सुधार होता रहा, तो भारत को विकसित देशों के शिक्षा के स्तर तक पहुंचने में करीब 126 साल लगेंगे।
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साभार: भास्कर समाचार
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