एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
शनिवार अलसुबह 6:15 का समय। सड़क किनारे के चाय वाले तो काम में व्यस्त भी हो गए थे। वह तूफानी रफ्तार से स्टोव में पम्प लगा रहा था। चिड़िया और अन्य पक्षी, जो बचे हुए भोजन पर चोंच मार रहे थे, स्टोर के भर्राने की आवाज सुनकर फुर्र हो गए। कुछ मीटर उड़ने के बाद उन्हें अहसास हुआ कि अरे, यह तो रोज के स्टोव
की आवाज है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। वे फिर लौट आए और बचे भोजन पर चोंच मारने लगे। दुकानदार पहले ही सुबह की चाय के 25 कप बेच चुका था। अब गिलास बचे नहीं थे। उसने बाएं हाथ से फोन पकड़ रखा था और वह समय पर आने के लिए सहायक पर चीख रहा था, जबकि दाएं हाथ की उंगलियां चाय के चार छोटे कप कसकर पकड़कर उन्हें उस बर्तन में डुबो रही थीं, जिसमें आधा मग पानी भी नहीं था। फिर हाथ घूमकर अगले बर्तन में जाता, जिसमें एक-चौथाई बाल्टी भरकर पानी था और अत्यंत फुर्ती से उन्हें छह से ज्यादा बार उसमें डुबोता। फिर वही हाथ एक बड़ी बाल्टी में जाता, जिसमें 75 फीसदी पानी भरा था और वे गिलास आखिरी बार धुलते। फिर उन्हें पानी निथारने के लिए रख दिया जाता। पूरे 25 गिलास धोने में चाय वाले को सिर्फ 40 सेकंड लगे। यह ऐसी रफ्तार है, जिसे जर्मनी में बना कोई डिश वॉशर अगले कई दशकों तक हासिल नहीं कर पाएगा।
चाय की इस दुकान से दस फीट दूर एक परिवार रहता है, जिसका हर सदस्य किसी किसी सफाई में लगा है। परिवार का बुजुर्ग पत्थर की उस बेंच पर अपना पैर धो रहा था, जिस पर चाय की दुकान के ग्राहक बैठते हैं और उस गिलास से चाय का लुत्फ उठाते हैं, जिन्हें उसी पानी से कई-कई दिनों तक धोया जाता है। चाय वाला दुखी हो गया, क्योंकि बेंच अब गीली हो गई। दोनों के बीच झगड़ा हो जाता है। चाय वाले ने कहा, 'कितनी बार कहा है कि बैठने की इस जगह पर पैरों की सफाई करके इसे गीला मत करा करो।' यह सुनकर बुजुर्ग कुछ शर्मिंदा-सा होकर वहां से चला जाता है। इससे मुझे पाकिस्तान की जेडब्लू मैरियट जैसी होटल में लगा बोर्ड याद गया। उस पर लिखा था, 'कृपया इस वॉश बेसिन में अपने पैर धोएं।' इसके बाद चाय वाला अपने अगले ऑर्डर को पूरा करने में लग जाता है। ग्राहक सुबह की गर्मागर्म चाय का लुत्फ उठाता है और अनजाने ही गर्म गिलास से अपने माथे की मालिश भी करता है बिना 'सफाई की उस प्रक्रिया' की परवाह किए, जो कुछ सेकंड पहले हुई थी। यह सिर्फ एक या दो स्टाल की बात नहीं है। यह अस्वास्थ्यकर सफाई का तरीका लोकप्रिय हॉस्पिटल रोड की पूरी लंबाई में सैकड़ों स्टाल्स पर आजमाया जाता है। वे हजारों असावधान रोगियों उनके रिश्तेदारों को अपनी सेवा देते हैं, जो अस्पताल में भर्ती होने का इंतजार कर रहे होते।
प्रिंस बिजेयसिंह जी मेमोरियल मेन्स हास्पिटल बिकानेर में गर्व से खड़ा है। यदि गुलाबी रंग से पुती कंपाउंड वॉल्स, जो सफाई के इन गंदे तरीकों की साक्षी रही है, बोल पातीं तो मरीजों को उनकी बीमारी की वजह बतातीं। कोई अचरज नहीं कि शुक्रवार को जारी ग्लोबल हेल्थ स्टडी में भारत को 188 देशों में 143वां स्थान मिला है। अध्ययन में भारत की इस दयनीय रैंकिंग के कई कारण बताए गए हैं खासतौर पर साफ-सफाई और वायु प्रदूषण। तीव्र आर्थिक विकास के बावजूद भारत को घाना, सीरिया, श्रीलंका, भूटान और बोत्सवाना के नीचे 143वां स्थान दिया गया। इसमें टिकाऊ विकास के लक्ष्यों के स्वास्थ्य के पैमाने पर प्रदर्शन का पहली बार आकलन किया गया है। इसे लान्सेट में प्रकाशित किया गया अौर न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र साधारण सभा के मौके पर यह जारी की गई। भारत को पाकिस्तान बांग्लादेश के ऊपर जगह मिली, जो क्रमश: 149वें और 151वें स्थान पर हैं।
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की आवाज है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। वे फिर लौट आए और बचे भोजन पर चोंच मारने लगे। दुकानदार पहले ही सुबह की चाय के 25 कप बेच चुका था। अब गिलास बचे नहीं थे। उसने बाएं हाथ से फोन पकड़ रखा था और वह समय पर आने के लिए सहायक पर चीख रहा था, जबकि दाएं हाथ की उंगलियां चाय के चार छोटे कप कसकर पकड़कर उन्हें उस बर्तन में डुबो रही थीं, जिसमें आधा मग पानी भी नहीं था। फिर हाथ घूमकर अगले बर्तन में जाता, जिसमें एक-चौथाई बाल्टी भरकर पानी था और अत्यंत फुर्ती से उन्हें छह से ज्यादा बार उसमें डुबोता। फिर वही हाथ एक बड़ी बाल्टी में जाता, जिसमें 75 फीसदी पानी भरा था और वे गिलास आखिरी बार धुलते। फिर उन्हें पानी निथारने के लिए रख दिया जाता। पूरे 25 गिलास धोने में चाय वाले को सिर्फ 40 सेकंड लगे। यह ऐसी रफ्तार है, जिसे जर्मनी में बना कोई डिश वॉशर अगले कई दशकों तक हासिल नहीं कर पाएगा।
चाय की इस दुकान से दस फीट दूर एक परिवार रहता है, जिसका हर सदस्य किसी किसी सफाई में लगा है। परिवार का बुजुर्ग पत्थर की उस बेंच पर अपना पैर धो रहा था, जिस पर चाय की दुकान के ग्राहक बैठते हैं और उस गिलास से चाय का लुत्फ उठाते हैं, जिन्हें उसी पानी से कई-कई दिनों तक धोया जाता है। चाय वाला दुखी हो गया, क्योंकि बेंच अब गीली हो गई। दोनों के बीच झगड़ा हो जाता है। चाय वाले ने कहा, 'कितनी बार कहा है कि बैठने की इस जगह पर पैरों की सफाई करके इसे गीला मत करा करो।' यह सुनकर बुजुर्ग कुछ शर्मिंदा-सा होकर वहां से चला जाता है। इससे मुझे पाकिस्तान की जेडब्लू मैरियट जैसी होटल में लगा बोर्ड याद गया। उस पर लिखा था, 'कृपया इस वॉश बेसिन में अपने पैर धोएं।' इसके बाद चाय वाला अपने अगले ऑर्डर को पूरा करने में लग जाता है। ग्राहक सुबह की गर्मागर्म चाय का लुत्फ उठाता है और अनजाने ही गर्म गिलास से अपने माथे की मालिश भी करता है बिना 'सफाई की उस प्रक्रिया' की परवाह किए, जो कुछ सेकंड पहले हुई थी। यह सिर्फ एक या दो स्टाल की बात नहीं है। यह अस्वास्थ्यकर सफाई का तरीका लोकप्रिय हॉस्पिटल रोड की पूरी लंबाई में सैकड़ों स्टाल्स पर आजमाया जाता है। वे हजारों असावधान रोगियों उनके रिश्तेदारों को अपनी सेवा देते हैं, जो अस्पताल में भर्ती होने का इंतजार कर रहे होते।
प्रिंस बिजेयसिंह जी मेमोरियल मेन्स हास्पिटल बिकानेर में गर्व से खड़ा है। यदि गुलाबी रंग से पुती कंपाउंड वॉल्स, जो सफाई के इन गंदे तरीकों की साक्षी रही है, बोल पातीं तो मरीजों को उनकी बीमारी की वजह बतातीं। कोई अचरज नहीं कि शुक्रवार को जारी ग्लोबल हेल्थ स्टडी में भारत को 188 देशों में 143वां स्थान मिला है। अध्ययन में भारत की इस दयनीय रैंकिंग के कई कारण बताए गए हैं खासतौर पर साफ-सफाई और वायु प्रदूषण। तीव्र आर्थिक विकास के बावजूद भारत को घाना, सीरिया, श्रीलंका, भूटान और बोत्सवाना के नीचे 143वां स्थान दिया गया। इसमें टिकाऊ विकास के लक्ष्यों के स्वास्थ्य के पैमाने पर प्रदर्शन का पहली बार आकलन किया गया है। इसे लान्सेट में प्रकाशित किया गया अौर न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र साधारण सभा के मौके पर यह जारी की गई। भारत को पाकिस्तान बांग्लादेश के ऊपर जगह मिली, जो क्रमश: 149वें और 151वें स्थान पर हैं।
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साभार: भास्कर समाचार
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