बेटे के जन्म से पांच माह पहले ही पिता की मृत्यु हो चुकी थी। बेटा फौजी पिता को कभी देख नहीं पाया था, मां ने एक दिन फैसला लिया कि वह बेटे को फौजी बनकर दिखाएगी। पिता की कमी महसूस नहीं होने देगी। पांचवें प्रयास में आखिरकार, निधि ने इस साल एसएसबी क्लीयर कर लिया है। अक्टूबर में वह ऑफिसर्स ट्रेनिंग एकेडमी जॉइन करने वाली हैं। सागर (मध्यप्रदेश) की रहने वाली निधि के लिए यह सफर आसान नहीं था। शादी के एक साल बाद ही पति मुकेश कुमार दुबे की कार्डियक अरेस्ट से मौत हो गई थी।
ससुराल वालों ने मुकेश की मौत के दो दिन बाद ही गर्भावस्था के बावजूद निधि को घर से निकाल दिया था। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। पढ़िए निधि का संघर्ष उन्हीं के शब्दों में-
प्रेग्नेंसी के वक्त पति हमेशा के लिए छोड़कर चले गए। इस सदमे का गम भरा भी नहीं था कि सास-ससुर ने मुंह मोड़ लिया। मैं मां-पिता के घर सागर चली आई। मां, पिता और भाई ही थे जो साथ खड़े रहे। 4 सितंबर 2009 को बेटा सुयश मेरी जिंदगी में आया। उस वक्त यही सोचती थी कि सुयश ताउम्र अपने पिता की कमी महसूस करेगा। मैंने इसी कमी को कुछ हद तक पूरा करने की ठान ली। मैं बेटे को मां के पास छोड़कर इंदौर गई। वहां 2013 में एचआर मैनेजमेंट में एमबीए किया।
डेढ़ साल तक एक कंपनी में जॉब भी की। इसके बाद मैंने एसएसबी की तैयारी शुरू कर दी। जिस महार रेजीमेंट में पति पोस्टेड थे, वहीं ब्रिगेडियर रेड्डी और कर्नल एमपी सिंह के सहयोग से एसएसबी की क्लासेज लेनी शुरू की। परिवार को चलाने के लिए सागर के ही आर्मी स्कूल में टीचर की जॉब शुरू कर दी। यहीं पर बेटे को दाखिला दिला दिया। सुबह चार बजे उठकर सबसे पहले पांच किमी रनिंग करती। घर लौटकर बेटे को तैयार करती। बेटे को सवा सात बजे 20 किमी स्कूटी चलाकर स्कूल लेकर जाती। दोपहर तीन बजे साथ घर लौटते। पहले घर का काम निपटाती फिर शाम पांच बजे जिम जाती। छह बजे लौटकर बेटे का होमवर्क कराती। रात नौ बजे बेटे को सुलाकर खुद पढ़ाई करती। अंग्रेजी कमजोर थी, इसलिए सबसे ज्यादा जोर उसी पर देती थी। जून 2014 में एसएसबी के पहले अटेम्प में लास्ट राउंड तक पहुंची। तीसरे और चौथे प्रयास में कॉन्फ्रेंस राउंड तक पहुंची, लेकिन बाहर हो गई। मई 2016 में आखिरी मौका था। इसी दौरान मेरी मुलाकात भोपाल में रिटायर्ड ब्रिगेडियर आर विनायक और उनकी पत्नी डॉ. जयलक्ष्मी से हुई।
उनसे पता चला कि डिफेंस पर्सन जिनकी मृत्यु हो गई हो, उनकी पत्नी के लिए एसएसबी में वैकेंसी होती है। पांचवें प्रयास में मैंने एसएसबी क्लीयर कर लिया। फिजिकल में भी पास हो गई। इसी टेस्ट में शहीद कर्नल संतोष महाडिक की पत्नी स्वाति भी पास हो गई। चूंकि सीट सिर्फ एक थी, इसलिए मैंने और ब्रिगेडियर विनायक ने आर्मी हैडक्वार्टर और रक्षा मंत्रालय को पत्र लिखे। सेना ने मेरी परफॉर्मेंस को देखते हुए वैकेंसी दो कर दी। 31 अगस्त 2016 को आए रिजल्ट में मेरा और स्वाति, दोनों का चयन हो गया।'
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साभार: भास्कर समाचार
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