भारत की आपत्तियों के बावजूद रूस ने पाकिस्तान के साथ सैन्य अभ्यास को नहीं टाला। लेकिन भारत इसे खास तवज्जो नहीं दे रहा। भारत के लिए चिंता की असली वजह पाकिस्तान के साथ रूस की दोस्ती की शुरुआत नहीं है, बल्कि जिस तेजी से चीन और रूस के बीच द्विपक्षीय रिश्तों की खिचड़ी पक रही है यह ज्यादा परेशानी का सबब है। चीन न सिर्फ सैन्य मामले में रूस के करीब तेजी से आ रहा है, बल्कि रूस से उसके द्विपक्षीय कारोबार भी तेजी से बढ़ रहे हैं। दोनों देशों के बीच अन्य रिश्ते भी मजबूत होते जा रहे हैं। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। एक तरह से शीत युद्ध के काल में रूस के लिए भारत का जो महत्व था, वह स्थान अब चीन लेता जा रहा है। अब पढ़ाई के लिए रूस जाने वाले भारतीय छात्रों की संख्या को ही देखें तो यह पिछले कुछ वर्षो में एक चौथाई से भी कम हो गया है। दूसरी तरफ चीन से रूस जाने वाले छात्रों की संख्या बढ़ रही है। हर साल रूस जाने वाले चीनी पर्यटकों की संख्या 60-70 फीसद की रफ्तार से बढ़ रही है। इसी तरह से भारत और रूस के बीच द्विपक्षीय कारोबार अभी महज 10 अरब डॉलर (करीब 6.5 हजार करोड़ रुपये) का है जबकि पिछले कुछ वर्षो में रूस और चीन का द्विपक्षीय कारोबार 70 अरब डॉलर (लगभग 46 हजार करोड़ रुपये) के करीब हो गया है। दोनों देशों ने इसे 300 अरब डॉलर (करीब दो लाख करोड़ रुपये) का लक्ष्य रखा है। जबकि भारत और रूस की सरकारों ने द्विपक्षीय कारोबार को अगले एक दशक में 30 अरब डॉलर (करीब 20 हजार करोड़ रुपये) करने का लक्ष्य रखा है। भारत और रूस एक दूसरे के यहां निवेश करने से भी हिचक रहे हैं। भारत और रूस के बीच चल रही कूटनीति से जुड़े एक अधिकारी के मुताबिक, रूस पाकिस्तान को हथियार या कोई अन्य समान बेच रहा है इससे हम सतर्क हैं लेकिन चिंतित नहीं हैं। भारत-रूस के बीच के रिश्ते जिस स्तर पर हैं वहां पाकिस्तान को पहुंचने में कई दशक लग सकते हैं।
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साभार: जागरण समाचार
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