संगठित क्षेत्र की कहानी: इस साल की शुरुआत में पठानकोट एयरबेस पर हुए हमले के बाद अब उत्तरी कश्मीर के उड़ी में आर्मी की 12 ब्रिगेड हैडक्वॉटर्स पर आतंकियों का फिदायीन हमला हुआ है, जिसमें 19 जवानों की मौत हो गई। कई सुरक्षा विशेषज्ञों ने एक तथ्य स्पष्ट रूप से देखा है कि दो उल्लंघन हुए हैं - एक एलओसी पर और
दूसरा आर्मी कैम्प पर। ये दोनों ही आतंकी हमले नाकाम करते हैं। गंभीर सुरक्षा खामी तब सामने आई है जब आतंकी सैन्य बलों को निशाना बना रहे हैं। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। इससे पता चलता है कि कहीं कहीं हमने अतीत से सबक नहीं सीखा है, विशेषतौर पर पठानकोट हमले से।
असंठित क्षेत्र की कहानी: महाराष्ट्रमें अच्छे मानसून ने राज्य के अधिकतर क्षेत्रों में खेती की दशा सुधारने में मदद की है। पिछले साल जब मानसून खराब रहा था तो 84 लाख किसानों ने फसल बीमा करवाया था। इस साल सरकार ने जो बीमा योजना शुरू की उसमें किसानों के लिए मुआवजा बढ़ा दिया गया है। किंतु 53 लाख किसानों ने ही इसका फायदा लिया। हालांकि, हम सभी यह दुआएं करते हैं कि बारिश का कोटा पूरा हो, लेकिन साल दर साल जुटाए गए आकड़े दर्शाते हैं कि मौसम अनियमित रहता है। पिछले साल यह सबसे खराब रूप में था। इसीलिए कई किसानों ने बीमा करवाया। किंतु मौसम अनुकूल होने पर बीमा सुरक्षा बंद करने का किसानों का कदम बताता है कि इन्होंने भी वही गलती की है जो हमारे सबसे अनुभवी सशस्त्र बल ने उड़ी में की। अगर अगले साल इंद्र ऐसी कृपा नहीं बरसाएंगे और किसान फिर से नया बीमा कराएंगे तो पुराने बीमा प्रीमियम से अर्जित लाभ को वे हमेशा के लिए खो बैठेंगे। इतिहास गवाह है कि किसान हो या सेना, दुर्घटनाएं तभी होती हैं जब गार्ड कमजोर होते हैं या सुस्त।
मदद से सबक सीखने की कहानी: अनिश्चितता के कारण खेती के व्यवसाय में किसानों का भरोसा टूटता जा रहा है और अधिकतर किसान कंस्ट्रक्शन में अधिक एकमुश्त लाभ देखकर अपनी जमीनें बेच रहे हैं, ऐसे में एक किसान है, जिसने किसी भी बिज़नेस के लिए एक इंच भी जमीन बेचने से इंकार कर दिया है। क्योंकि उनका पूरा भरोसा है कि खेती टिकाऊ व्यवसाय है और इससे अच्छा रिटर्न मिलता है। मिलिए भागवत सिंह ठाकुर से। ये मध्यप्रदेश में भोपाल से 110 किलोमीटर दूर हर्सेली गांव के हैं। उनके पास 100 एकड़ से ज्यादा जमीन है, इसके बावजूद उन्होंने एक इंच जमीन बेचने से इंकार कर दिया है। उन्होंने एक स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसिजर (एसओपी) विकसित किया है, जो उन्हें हर छह महीने में कम से कम 1.50 लाख रुपए का रिटर्न देता है। यह सिलसिला मौसम की अनियमितता के बावजूद पिछले चार साल से जारी है।
भविष्य के बाजार की जरूरत के मुताबिक और वर्तमान मौसमी परिस्थितियों कीमत के अनुसार ठाकुर फसलें बदलते रहते हैं। उदाहरण के तौर पर इस साल बारिश के मौसम के बाद जब आसपास के किसान सोयाबीन की फसल ले रहे हैं, उन्होंने टमाटर की फसल लेने की योजना बनाई है, क्योंकि उनका आकलन है कि यह फसल इस साल सबसे ज्यादा कमाई देगी। पिछले साल वे मिर्च की फसल की ओर चले गए थे, जबकि स्थानीय ट्रेंड पिछले साल फाइनेन्शियल बॉटम लाइन को मजबूत करने का था। कोई आश्चर्य नहीं है कि कई राज्य सरकारों और उनके अपने राज्य की सरकार भी किसी भी कृषि संबंधी स्टडी और रिसर्च- लर्निंग के लिए उन्हें हाथों-हाथ ले रही हैं। 2013 में गुजरात के मुख्यमंत्री रहते नरेंद्र मोदी ने उन्हें श्रेष्ठ किसान के अवॉर्ड से सम्मानित किया था, जिसमें नकद पुरस्कार भी शामिल था।
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साभार: भास्कर समाचार
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