एन. रघुरामन (मैनेजमेंटगुरु)
अन्य छह देशों की तुलना में भारतीय बच्चों द्वारा कक्षा से गायब रहने की सबसे ज्यादा संभावना है लेकिन, इसका मतलब यह नहीं कि वे गैर-जिम्मेदार हैं। वे तो सिर्फ नए महौल की खोज-पड़ताल कर रहे होते हैं लेकिन, इस बारे में निश्चिंत रहिए कि अमेरिका, ब्रिटेन, चीन, इटली और स्पेन के उनके जैसे बच्चों की तुलना में वे जितनी जल्दी हो सके जॉब पाने के बारे में ज्यादा गंभीर हैं। कक्षा से गायब रहने के बारे में मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि ऐसा रवैया इसलिए है कि वे सारे बचपन में बहुत ही कड़े और रूढ़िवादी वातावरण में पले-बढ़े हैं। इसके साथ ही वे सबसे खुश और उनमें से ज्यादातर स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हैं। कम से कम 66 फीसदी ग्रेजुएशन के बाद कौन-सा जॉब करना है, इस बारे में एकदम स्पष्ट हैं। फिर से, सारे देशों में सर्वाधिक। जल्दी जॉब हासिल करना 42 फीसदी छात्रों की प्राथमिकता है। ये पहले इंटरनेशनल स्टुडेंट्स लाइफस्टाइल सर्वे के नतीजे हैं। सितंबर में जारी इस सर्वे में छह देशों के 4 हजार से ज्यादा छात्रों का अध्ययन किया गया था।
सोडेक्सो इंडिया द्वारा कराए इस सर्वे ने निष्कर्ष निकाला कि भारत के यूनिवर्सिटी छात्र दुनिया में सबसे ज्यादा खुश हैं। सर्वे का लक्ष्य अकादमिक सफर के दौरान छात्रों की क्वालिटी ऑफ लिविंग को सुधारने की दिशा में अंतर्दृष्टि प्राप्त करना था। 86 फीसदी छात्र अपने शिक्षकों के अलावा माता और फिर पिता की सलाह को काफी महत्व देते हैं। उनके पाठ्येतर गतिविधियों में भाग लेने की भी ज्यादा संभावना होती ह। अन्य देशों के छात्रों की तुलना में वे दिन-प्रतिदिन के खर्चों के लिए अपने पालकों को परेशान करना पसंद नहीं करते। अपने सीमित साधनों में वे खुश रहने की कोशिश करते हैं। लेकिन, जब जिम और सेहत संबंधी मामले आते हैं तो वे अमेरिकी छात्रों की तुलना में सिर्फ दो पायदान नीचे हैं। यदि 51 फीसदी अमेरिकी छात्र सेहत को लेकर जागरूक हैं तो 49 फीसदी भारतीय छात्र भी सेहत को लेकर उतने ही फिक्रमंद हैं। वे नियमित व्यायाम और अच्छे भोजन के प्रति भी सतर्क हैं।
फंडा यह है कि विदेश में या भारत में अन्य शहरों में पढ़ रहे हमारे बच्चे अन्य देशों के बच्चों जितने ही सक्षम हैं। बस उन्हें सही सलाह चाहिए।
साभार: भास्कर समाचार
हाल ही में एक पारिवारिक समारोह में मेरी चाची कुछ वक्त पूर्व अंडर ग्रेजुएट स्टडी के लिए अमेरिका गए पोते से लगातार फोन पर बात कर रही थीं। उसे बता रही थी कि क्या करना है और क्या नहीं करना है। दूसरी ओर से
मैं उसे कहते सुन रहा था, 'दादू आप कितनी बार यह कहेंगी। मैं ठीक हूं और खुद की देखभाल करना जानता हूं।' परिवार के आयोजन में उनका ध्यान बहुत कम था और वे लगातार पोते के बारे में ही चिंता कर रही थीं। हमारे परिवार के प्राय: विदेश यात्रा पर रहने वाले कम से कम छह लोगों से उन्होंने पूछा होगा कि वे अगली बार अमेरिका कब जा रहे हैं ताकि वे तीसरे पक्ष से अपने पोते के कुशल-मंगल होने की पुष्टि कर सक। मुझे यह सुनकर धक्का लगा कि वे अमेरिका के सारे न्यूज़ चैनल देखती हैं और उनका दिमाग वहां दिखाई जाने वाली अपराध की हर छोटी-बड़ी घटना को दर्ज करता है। उनका पसंदीदा शगल है अपने टेबलेट पर जिस जगह अपराध हुआ है वहां से बोस्टन की दूरी नापना, जहां उनका पोता रहकर पढ़ाई कर रहा है। यदि आप मेरी चाची की तरह हैं, जो अपने विदेश में या भारत के किसी दूसरे शहर में पढ़ रहे बच्चों या नाती-पोतों की चिंता करते हों तो यह सर्वे आपके लिए है। यह अपने तरह का पहला सर्वे है और इसमें भारतीय यूनिवर्सिटी छात्र भी शामिल हैं। अन्य छह देशों की तुलना में भारतीय बच्चों द्वारा कक्षा से गायब रहने की सबसे ज्यादा संभावना है लेकिन, इसका मतलब यह नहीं कि वे गैर-जिम्मेदार हैं। वे तो सिर्फ नए महौल की खोज-पड़ताल कर रहे होते हैं लेकिन, इस बारे में निश्चिंत रहिए कि अमेरिका, ब्रिटेन, चीन, इटली और स्पेन के उनके जैसे बच्चों की तुलना में वे जितनी जल्दी हो सके जॉब पाने के बारे में ज्यादा गंभीर हैं। कक्षा से गायब रहने के बारे में मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि ऐसा रवैया इसलिए है कि वे सारे बचपन में बहुत ही कड़े और रूढ़िवादी वातावरण में पले-बढ़े हैं। इसके साथ ही वे सबसे खुश और उनमें से ज्यादातर स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हैं। कम से कम 66 फीसदी ग्रेजुएशन के बाद कौन-सा जॉब करना है, इस बारे में एकदम स्पष्ट हैं। फिर से, सारे देशों में सर्वाधिक। जल्दी जॉब हासिल करना 42 फीसदी छात्रों की प्राथमिकता है। ये पहले इंटरनेशनल स्टुडेंट्स लाइफस्टाइल सर्वे के नतीजे हैं। सितंबर में जारी इस सर्वे में छह देशों के 4 हजार से ज्यादा छात्रों का अध्ययन किया गया था।
सोडेक्सो इंडिया द्वारा कराए इस सर्वे ने निष्कर्ष निकाला कि भारत के यूनिवर्सिटी छात्र दुनिया में सबसे ज्यादा खुश हैं। सर्वे का लक्ष्य अकादमिक सफर के दौरान छात्रों की क्वालिटी ऑफ लिविंग को सुधारने की दिशा में अंतर्दृष्टि प्राप्त करना था। 86 फीसदी छात्र अपने शिक्षकों के अलावा माता और फिर पिता की सलाह को काफी महत्व देते हैं। उनके पाठ्येतर गतिविधियों में भाग लेने की भी ज्यादा संभावना होती ह। अन्य देशों के छात्रों की तुलना में वे दिन-प्रतिदिन के खर्चों के लिए अपने पालकों को परेशान करना पसंद नहीं करते। अपने सीमित साधनों में वे खुश रहने की कोशिश करते हैं। लेकिन, जब जिम और सेहत संबंधी मामले आते हैं तो वे अमेरिकी छात्रों की तुलना में सिर्फ दो पायदान नीचे हैं। यदि 51 फीसदी अमेरिकी छात्र सेहत को लेकर जागरूक हैं तो 49 फीसदी भारतीय छात्र भी सेहत को लेकर उतने ही फिक्रमंद हैं। वे नियमित व्यायाम और अच्छे भोजन के प्रति भी सतर्क हैं।
फंडा यह है कि विदेश में या भारत में अन्य शहरों में पढ़ रहे हमारे बच्चे अन्य देशों के बच्चों जितने ही सक्षम हैं। बस उन्हें सही सलाह चाहिए।