Tuesday, November 28, 2017

Management: हर बच्चा श्रेष्ठतम होने के लिए ही दुनिया में आता है

एन. रघुरामन (मैनेजमेंटगुरु)
साभार: भास्कर समाचार
कुछ साल पहले एक दिन मालविका राज जोशी की मां ने उसे 7वीं कक्षा से निकाल लिया और उसे वह करने की इज़ाजत दी जो वह करना चाहती थी। मालविका कंप्यूटर प्रोग्रामिंग के क्षेत्र में गई और राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय
स्तर पर कई मेडल जीते। जब वह कॉलेज जाने वाली उम्र में पहुंची, तो उसने देश के सारे आईआईटी में आवेदन किया पर 12वीं पास का सर्टिफिकेट होने के आधार पर सभी ने उसे ठुकरा दिया। लेकिन, मुंबई की इस लड़की को उसकी प्रोग्रामिंग प्रतिभा के आधार पर मैसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में स्कॉलरशिप पर प्रवेश मिल गया। 
पिछले साल मैंने उसके बारे में लिखा था कि इस लड़की ने दिखा दिया है कि अंकों की बजाय योग्यता को अधिक महत्व है। तब तक मुझे एक ही ऐसे व्यक्ति मिले थे- अर्जुन मुरली अय्यर। उनका शैक्षिक रिकॉर्ड कोई बहुत अच्छा नहीं था। वे शिक्षांतर नाम वैकल्पिक शिक्षा केंद्र पर अपने शौक के काम कर रहे थे। इस केंद्र को उदयपुर में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के ग्रेजुएट मनीष जैन चलाते थे। आज अर्जुन 20 की उम्र तक पहुंचने के पहले ही लाखों अकुशल लोगों को भर्ती करते हैं और प्रशिक्षण देकर उन्हें रोजगार लायक बनाते हैं। लेकिन, अब नौ माह के छोटे से समय में मेरी मुलाकात 40 ऐसे अभिभावकों से हुई जो कॉर्पोरेट जगत में बहुत ऊंचे पदों पर हैं लेकिन, वे बच्चों को स्कूल नहीं भेजते। 
उन्हें अपने बच्चे की प्रसन्नता, सामर्थ्य और संपूर्ण विकास की अधिक चिंता है। आज ऐसेे करीब 15 हजार भारतीय परिवार हैं, जो बच्चों को स्कूल नहीं भेज रहे हैं और मौजूदा शिक्षा व्यवस्था छोड़कर बच्चों को वह सीखने दे रहे हैं, जो वे सीखना चाहते हैं। हालांकि, यह चलन बहुत ही छोटे पैमाने पर है लेकिन, धीरे-धीरे बढ़ रहा है। 
यह मत सोचिए कि ये बच्चे बेकार बैठे हैं। वे भी वर्णमाला, बुनियादी गणित, पीरियॉडिक टेबल, लोकतंत्र और विश्व युद्धों के बारे में सीख रहे हैं लेकिन, एकदम अलग तरीके से। वे सेल्फ डायरेक्टेड लर्निंग कर रहे हैं। यानी वे खुद चुन सकते हैं कि उन्हें क्या सीखना ( कोडिंग, संगीत, नृत्य, खेल, फिल्म निर्माण, कुकिंग अथवा दिवास्वप्न देखना भी) है और किससे सीखना (किताबें, प्रशिक्षक, पालक, इंटरनेट, इंटर्नशिप या ट्रेवल) है। पाठ्यक्रम, समय-सीमा और कोई अपेक्षा। 'अन-स्कूलिंग' का यह विचार इस तथ्य पर आधारित है कि बच्चे सीखने के प्रति बहुत जिज्ञासु होते हैं। उन्हें किशोर अवस्था तक ऐसे औजार दीजिए कि वे अपनी दुनिया की खोज कर सके। एक बार उन्हें अपनी असली रुचि की पहचान हो जाए तो वे इसे किसी से प्रशिक्षण लेकर, फ्रीलांस प्रोजेक्ट अथवा कॉलेज की प्राइवेट परीक्षा देकर निखार सकते हैं। 
नई अन-स्कूलिंग कम्युनिटी यह दावा नहीं करती कि नियमित स्कूल की बजाय शिक्षा का उनका मॉडल बेहतर है लेकिन, यह जरूर कहता है कि स्कूलिंग के मौजूदा मॉडल को बदलना चाहिए। इस साल वे सारे लोग जो वैकल्पिक शिक्षा की संभावनाएं तलाशना चाहते हैं, 26 से 30 दिसंबर तक एक कॉन्फ्रेंस कर रहे हैं, जिसका शीर्षक है 'लर्निंग सोसायटीज अनकॉन्फ्रेंस।' इसमें वैकल्पिक शिक्षा के विद्वान, ऑर्गनिक किसान, कलाकार, कारीगर, एक्टिविस्ट, डिज़ाइनर, इकोलॉजिस्ट, फिल्म निर्माता, सोशल आंत्रप्रेन्योर, होमस्कूलर, अनस्कूलर, बेयरफूट इनोवेटर, ग्रैंडपैरेंट्स, युवा, आध्यात्मिक तलाश में लगे लोग तथा अन्य कई लोग शामिल होंगे। ये सभी मिल-जुलकर उस मुद्‌दे पर एजेंडा तैयार करेंगे, जो उनके लिए बहुत महत्वपूर्ण है। वे खुद को समूहों में बांटकर प्रश्नों, अनुभवों, प्रयोगों अौर वर्कशाप के जरिये नई बातें सीखेंगे। 
फंडा यह है कि हरबच्चा किसी क्षेत्र में श्रेष्ठ बनने के लिए आया है। उस क्षेत्र की पहचान कर उसका हुनर निखारना पालक की जिम्मेदारी है।