साभार: भास्कर समाचार
सार्वजनिक बड़े पदों पर बैठे लोगों द्वारा फिल्म पद्मावती के बारे में की जा रही टिप्पणियों पर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सख्त नाराजगी जताई। कोर्ट ने कहा कि जब फिल्म की मंजूरी लंबित है, तो सार्वजनिक पदों पर
बैठे लोगों के ऐसे बयान अवांछनीय हैं। वह कैसे कह सकते हैं कि सेंसर बोर्ड फिल्म को पास करे या नहीं? यह फिल्म के बारे में धारणा बनाने जैसा है, जिससे सेंसर बोर्ड का निर्णय प्रभावित होगा। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच ने विदेश में फिल्म की रिलीज पर रोक लगाने की मांग से जुड़ी याचिका खारिज करते हुए सुबह करीब 11.30 बजे यह टिप्पणी की। करीब सवा घंटे बाद ही बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने राज्य में फिल्म बैन करने की घोषणा कर दी। कहा कि पद्मावती के बारे में इतिहास में जो लिखा है और फिल्म में जो दिखाया है, उसे लेकर फिल्मकार जब तक पक्ष नहीं रखेंगे, तब तक फिल्म नहीं दिखाएंगे। उधर, अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा ने कहा कि फिल्म किसी भी सूरत में रिलीज नहीं होने देंगे। चीफ जस्टिस ने याचिकाकर्ता एमएल शर्मा को बेवजह याचिका दायर करने पर फटकार लगाई। उन्होंने कहा, 'अदालत ऐसी फिल्म पर पहले से धारणा नहीं बना सकती, जिसे अभी सीबीएफसी से सर्टिफिकेट तक नहीं मिला है। जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों के ऐसे बयानों से सामाजिक सद्भाव को नुकसान पहुंचेगा। यह कानून के सिद्धांत के खिलाफ है।' वकील होने के कारण कोर्ट ने शर्मा पर जुर्माना नहीं लगाया। फिल्म पर रोक की मांग से जुड़ी एक याचिका 10 नवंबर को भी कोर्ट खारिज कर चुका है।