साभार: भास्कर समाचार
बार-बार देश में जेनेिरक दवा की चर्चा होती है। प्रधानमंत्री भी चिकित्सकों से जेनेरिक दवा लिखने की अपील कर चुके हैं, लेकिन वास्तविकता यह है कि भारत सरकार की ओर से तैयार किए गए ड्रग्स कॉस्मेटिक्स एक्ट में
जेनेरिक दवा की परिभाषा तक नहीं तय की गई है। भारत सरकार जेनेरिक दवा की दोहरी नीति रखती है। देश में जेनेरिक दवा कुछ और है और वैश्विक स्तर पर इसकी परिभाषा कुछ और है। इतना ही नहीं देश में दवाओं की उपलब्धता, गुणवत्ता, बाजार, व्यापार और कीमतों को लेकर कई समस्याएं हैं। इस क्षेत्र में पिछले चार दशक से काम कर रहे मंथली इंडेक्स ऑफ मेडिकल स्पेशलिटी के प्रमुख डॉ. सीएम गुलाटी ने बताया कि भारत में जेनेरिक का मतलब होता है- सिंगल साॅल्ट वाली जेनेरिक नाम से बिकने वाली दवा, जिसका कोई ब्रैंड नाम हो। जबकि वैश्विक स्तर पर जेनेरिक का मतलब होता है- ऐसी दवा जिसका कोई पेटेंट हो या जिस दवा की पेटेंट की अवधि खत्म हो चुकी हो। डॉ. गुलाटी ने कहा कि इन दवाआें को भारतीय जेनेरिक परिभाषा के अनुसार बेचा ही नहीं जा सकता। मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया की प्रेसिडेंट डॉ. जयश्री मेहता इस मामले में कहती हैं कि देश में डॉक्टरों से कहा गया है कि जितना संभव हो दवा का जेनेरिक नाम लिखें। यदि कोई डॉक्टर दवा का जेनेरिक नाम नहीं लिखता है तो भी कानून के तहत डॉक्टरों के खिलाफ किसी तरह की कार्रवाई नहीं की जा सकती है। जेनेरिक दवा सभी को उपलब्ध हो और दवा की कीमत तय हो तो यह काम स्वास्थ्य मंत्रालय और डिपार्टमेंट और फॉर्माकोलॉजी का है। केन्द्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री जेपी नड्डा ने कहा कि सबको गुणवत्ता पूर्ण और सस्ती दवा मिले इसके लिए देशभर में जन औषधि केन्द्र खोले जा रहे हैं। मार्च-2018 तक देश में तीन हजार से ज्यादा जन औषधि केन्द्र होंगे। जन औषधि केन्द्र पर अधिक से अधिक दवा लोगों को मिल पाए इसके लिए काम कर रहे हैं। एम्स के फाॅर्माकोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. वाईके गुप्ता के मुताबिक किसी भी दवा को लाइसेंस तभी मिलता है जब दवा की गुणवत्ता 95 फीसदी से ज्यादा हो चाहे वह जेनेरिक हो या ब्रैंड की।