साभार: जागरण समाचार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर विधानसभाओं और लोकसभा चुनाव एक साथ कराने की वकालत की है। प्रधानमंत्री ने अलग-अलग चुनाव से पड़ने वाले आर्थिक बोझ और नीतिगत योजनाएं लागू होने में बाधा का
जिक्र करते हुए इस पर चर्चा आगे बढ़ाने का आग्रह किया है। विधि दिवस के मौके पर एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि कुछ समय से केंद्र और राज्यों में एक साथ चुनाव कराने को लेकर चर्चा शुरू हुई है। कुछ राजनीतिक दलों ने भी हर 4-6 महीने पर चुनाव होने से देश पर आर्थिक बोझ और संसाधनों के दबाव पर चिंता जाहिर की है। उदाहरण देते हुए मोदी ने कहा कि 2009 के लोकसभा चुनाव पर 1100 करोड़ का खर्च आया था। वहीं 2014 के लोकसभा चुनाव में 4000 करोड़ खर्च हुए थे। इसके अलावा उम्मीदवारों का खर्च अलग से। उन्होंने कहा कि एक एक चुनाव में हजारों कर्मचारियों की तैनाती, लाखों सुरक्षा बलों का इधर से उधर होना भी व्यवस्था पर दबाव बनाता है। जब आचार संहिता लागू हो जाती है, तो सरकार उतनी आसानी से फैसले नहीं ले पाती। प्रधानमंत्री ने कहा कि दुनिया के कई देश हैं, जहां चुनाव की तारीख तय रहती है।
लोगों को पता रहता है कि उनके देश में कब चुनाव होगा, किस महीने में चुनाव होगा। इसका फायदा ये होता है कि देश हमेशा चुनाव के मोड में नहीं रहता। नीतिगत योजनाएं और उनका क्रियान्वयन ज्यादा प्रभावी ढंग से हो पाता है। देश के संसाधनों पर अनावश्यक बोझ नहीं पड़ता। उन्होंने कहा कि एक साथ चुनाव का भारत पहले भी अनुभव कर चुका है और वह अनुभव सुखद रहा था। लेकिन हमारी ही कमियों की वजह से वह व्यवस्था टूट गई।