साभार: भास्कर समाचार
जो स्कूल सुबह 7 या 8 बजे के बजाय 10 बजे या उसके बाद लगते हैं, वहां के बच्चे पूरी नींद लेने के कारण मानसिक रूप से ज्यादा मजबूत होते हैं। वे बीमारियों से भी बचे रहते हैं। उनका मन पढ़ाई में लगता है और
शारीरिक गतिविधियों में सक्रियता बनी रहती है। यह दावा ब्रिटेन की ओपन यूनिवर्सिटी ने अपने अध्ययन में किया है। शोधकर्ताओं के मुताबिक 12 से 17 साल तक के छात्र-छात्राओं पर किए गए अध्ययन में पाया गया कि जो स्कूल देर से शुरू होते हैं, वहां शैक्षणिक और अन्य गतिविधियों के परिणाम बेहतर आते हैं। दूसरी तरफ जिन स्कूलों का समय सुबह जल्दी होता है, वहां के बच्चे ज्यादा आलसी होते हैं। कक्षा में पढ़ाई के दौरान उनकी एकाग्रता कम पाई जाती है। उन बच्चों के मोटापे जैसी बीमारियों के शिकार होने की आशंका ज्यादा होती है। शोध टीम के प्रमुख डॉ. पॉल कैली ने बताया कि जो स्कूल सुबह 8.30 बजे या उससे पहले लगते हैं, वहां के छात्रों की नींद पूरी नहीं हो पाती है। इससे उनका बॉडी क्लॉक भी गड़बड़ होने लगता है। वे पढ़ाई में एकाग्र नहीं रह पाते हैं। देर से लगने वाले स्कूलों के बच्चों को अच्छे ग्रेड मार्क्स मिलते हैं, वहीं जल्दी लगने वाले स्कूलों के बच्चे इस मामले में पिछड़ जाते हैं। ऐसे बच्चे तनाव का भी शिकार होने लगते हैं।
दुनिया में अमेरिकी बच्चे सबसे ज्यादा अनिद्रा के शिकार: बच्चों पर शोध करने वाले डॉ. गॉय मीडोस ने बताया कि दुनियाभर के शोध में पाया गया है कि जहां भी स्कूलों का समय सुबह जल्दी है, वहां बच्चों को स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं ज्यादा होती हैं। उन्होंने कहा, दुनिया में अनिद्रा के शिकार बच्चों के मामले में ब्रिटेन छठवें नंबर पर है। इस श्रेणी में अमेरिका पहले स्थान पर है। यानी दुनिया में भरपूर नींद नहीं लेने के मामले में अमेरिकी बच्चे सबसे आगे हैं। इस साल की शुरुआत में अमेरिकन एकेडमी ऑफ स्लीप मेडिसिन ने घोषणा की थी कि देर से स्कूल लगने से बच्चों के शारीरिक, मानसिक विकास में सकारात्मक परिणाम आते हैं।
12 से 18 साल तक के किशोरों को 8-9 घंटे तक सोना जरूरी: ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के न्यूरोसाइंटिस्ट प्रोफेसर रसेल फोस्टर ने बताया, 'जैविक कारकों के अध्ययन में पाया गया है कि 12 से 18 साल तक के बच्चों को बड़ी उम्र के लोगों के मुकाबले ज्यादा नींद लेने की जरूरत होती है, ताकि उनका दिमाग सही ढंग से कार्य कर सके। आमतौर पर वयस्कों को सात घंटे तक नींद लेना पर्याप्त माना जाता है। वहीं 12 से 18 उम्र के बच्चों को 8 से 9 घंटे सोना चाहिए। जल्दी स्कूल लगने के कारण किशोर पांच घंटे ही सो पाते हैं। उनके लिए इतनी नींद काफी कम है। जब बच्चे किशोरावस्था से बालिग बनने की तरफ बढ़ रहे होते हैं तो दैनिक चक्र में उनके शरीर की लय कुछ घंटे देरी से बनती है। इसलिए उन्हें ज्यादा सोना जरूरी है।