Thursday, November 30, 2017

दहेज उत्पीड़न में तुरंत गिरफ्तारी पर रोक के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट में फिर होगा विचार

साभार: जागरण समाचार 
दहेज उत्पीड़न (आइपीसी धारा 498ए) में तुरंत गिरफ्तारी पर रोक लगाने और गाइड लाइन जारी करने के दो न्यायाधीशों के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट के तीन न्यायाधीशों की पीठ फिर विचार करेगी। बुधवार को कोर्ट ने
मामले में विचार का संकेत देते हुए कहा कि जब कानून है तो कोर्ट उस बारे में कैसे दिशा-निर्देश तय कर सकता है। धारा 498ए आइपीसी का प्रावधान और कानून है अगर कोर्ट उसके बारे में कोई गाइड लाइन तय करता है तो ये कानून में दखल देने के समान होगा। 
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्र की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने दो न्यायाधीशों के आदेश पर उपरोक्त टिप्पणियां कीं। कोर्ट ने यह भी कहा कि कोर्ट पुलिस को धारा 498ए में एफआइआर दर्ज करने के बारे में कैसे निर्देश दे सकता है। ये तो आइपीसी और सीआरपीसी के प्रावधानों से तय होगा। कानून के मुताबिक कार्रवाई होगी। पीठ ने कहा कि उनकी कोई मंशा इस बारे में गाइड लाइन तय करने की नहीं है। पीठ ने कहा कि वे इस मामले में जनवरी के तीसरे सप्ताह में सुनवाई करेंगे। इससे पहले दो न्यायाधीशों के फैसले को चुनौती देने वाले गैर सरकारी संगठनों के वकील और मामले में न्यायमित्रों ने आदेश का विरोध करते हुए कोर्ट से कहा कि जुलाई के आदेश के बाद से दहेज उत्पीड़न के मामलों में गिरफ्तारियां नहीं हो रही हैं। उस आदेश पर रोक लगाई जानी चाहिए।
मालूम हो कि गत 27 जुलाई को न्यायाधीश आदर्श कुमार गोयल व न्यायमूर्ति यूयू ललित की पीठ ने धारा 498ए के तहत दहेज उत्पीड़न की शिकायतों के दुरुपयोग पर सुनवाई करते हुए विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किये थे। कोर्ट ने ऐसे मामलों में तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी और कहा था कि हर जिले में परिवार कल्याण समिति का गठन किया जाये। समिति दहेज उत्पीड़न से संबंधी शिकायत की जांच करेगी और समिति की रिपोर्ट आने तक गिरफ्तारी नहीं होनी चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा था कि हर जिले की लीगल सर्विस अथारिटी यह समिति बनाएगी और समिति में तीन सदस्य होने चाहिए। समिति में कानूनी, स्वयंसेवी, सामाजिक कार्यकर्ता आदि सदस्य हो सकते हैं। लेकिन समिति के सदस्यों को गवाह नहीं बनाया जाएगा। हालांकि उस फैसले में कोर्ट ने साफ किया था कि यदि महिला घायल होती है या फिर उसकी मौत हो जाती है तो यह नियम लागू नहीं होंगे।