Friday, November 24, 2017

धरती से गायब हो रहा रातों का अंधेरा; रोशनी के कारण इंसान की बॉडी क्लॉक प्रभावित, तनाव और कैंसर तक का खतरा बढ़ा

साभार: भास्कर समाचार
सोडियम लैंप की जगह दुनिया को सफेद रोशनी से जगमग करने वाले एलईडी भले ही प्रकाश क्रांति के प्रतीक हों, पर ये नया संकट भी लाए हैं। संकट इसलिए पैदा हो रहा है, क्योंकि इन एलईडी के कारण आर्टिफििशयल
रोशनी में बढ़ोतरी हो रही है। इससे धरती के सबसे ज्यादा आबादी वाले इलाकों में रातें खत्म होती जा रही हैं। यानी धीरे-धीरे वहां दिन और रात का फर्क घटता जा रहा है। ये दावा एक अध्ययन में किया गया है। शोध के मुताबिक इस प्रकाश प्रदूषण का इंसान से लेकर जीवों की सेहत और पर्यावरण पर असर पड़ रहा है। इंसान का तो बॉडी क्लॉक ही प्रभावित होने लगा है। दिन-रात रोशनी में रहने से उसके तनाव के साथ कैंसर की चपेट में आने का खतरा बढ़ गया है। 
साइंस एडवांसेस में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक 2012 से 2016 के बीच हर साल धरती पर आर्टिफिशियल लाइट से जगमग होने वाले इलाकों में 2.2 प्रतिशत की दर से बढ़ोतरी हो रही है। शोध टीम ने सैटेलाइट की मदद से रात के वक्त धरती पर एलईडी बल्ब, ट्यूबलाइट जैसी चीजों से रोशनी को मापा। उन्होंने पाया कि इन 5 साल में धरती के ज्यादातर इलाके रात में अधिक जगमगा रहे हैं। रात के समय रोशनी में इजाफा मध्य पूर्वी देशों और एशिया में ज्यादा हुआ है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि ये प्रक्रिया हर साल और बढ़ती जाएगी। इसके चलते धरती के उन इलाकों पर बुरा असर पड़ेगा, जहां प्राकृतिक रूप से दिन और रात की रोशनी में ज्यादा फर्क देखने को मिलता है। शोध वैज्ञानिक किप हॉजिस का कहना है कि इस प्रक्रिया से हम धीरे-धीरे इस नीले ग्रह पर होने वाली रात जैसी गतिविधि को ही खोते जा रहे हैं। 

एलईडी खरीदने की होड़: वैज्ञानिकोंने कहा, 'बिजली की खपत कम करने के कारण भारत समेत दुनिया में एलईडी बल्ब की बिक्री बंपर बढ़ी है। सस्ती होने के बाद से लोग ज्यादा एलईडी बल्ब खरीद रहे हैं। ज्यादा बल्ब खरीदे जाने से रात में रोशनी और बढ़ गई है। 
जीवों के प्राकृतिक अावास हो रहे नष्ट, परागण की प्रक्रिया प्रभावित: विशेषज्ञों के मुताबिक रातों का अंधेरा घटने से पर्यावरण प्रभावित हो रहा है। इससे परागण की प्रक्रिया थमने की आशंका है। परागण नहीं होने की वजह से पेड़-पौधों का विकास नहीं होगा। इसके अलावा जीवों के प्राकृतिक आवास भी खतरे में पड़ रहे हैं। अनुमान के मुताबिक प्रकाश के कारण दुनिया को हर साल 36 हजार करोड़ रुपए की जैव संपदा की क्षति हो रही है। 
युद्धग्रस्त सीरिया, इराक यमन में रात की रोशनी में कमी आई है। दूसरी तरफ दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका, एशिया, इटली, नीदरलैंड्स, स्पेन और अमेरिका की रातें पहले से ज्यादा जगमग हो गई हैं।