एन. रघुरामन (मैनेजमेंटगुरु)
स्टोरी 1: बरसों पहले पुगालगिरी ने अपने डॉ. पिता वडामलयन को मदुराई से तब के मद्रास जो अब चेन्नई कहलाता है, जाते देखा था, वह भी खुद के कैंसर के इलाज के लिए। एक बार उन्होंने चेन्नई अडायर कैंसर इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर वी शांता को कहते सुना था कि वे मदुराई में एक सेंटर शुरू करें, क्योंकि उन्हें इतनी लंबी यात्रा करने में बहुत तकलीफ होती है। यह बातचीत पुगालगिरी के कानों में गूंजती रहती थी। दुर्भाग्य से जब वे 20 साल के हुए तो उनके पिता का निधन हो चुका था पर उसके पहले वे 10 बिस्तरों वाली चिकित्सा सुविधा स्थापित कर चुके थे। 1957 में स्थापित वडामलयन हॉस्पिटल धीरे-धीरे बढ़कर 260 बिस्तरों वाला कई तरह की गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएं देने वाला अस्पताल हो गया। लेकिन, पुगालगिरी तब तक चैन से नहीं बैठे जब तक उन्होंने तीन मंजिला इंटीग्रेटेड कैंसर रिसर्च सेंटर भी स्थापित नहीं कर लिया। इसका शुभारंभ भी उन्होंने उन्हीं डॉ. शांता से कराया, जो उनके पिता का इलाज करते थे। इस तरह 2016 में उनके दिवंगत पिता की इच्छा पूरी हुई।
इस नवंबर में वडामलयन स्थापना की 60वीं वर्षगांठ मना रहा है तो मैनेजमेंट ने तय किया है कि सेंटर कैंसर का इलाज कराने वाले कम से कम 60 बच्चों के पालकों से इलाज और अस्पताल में भर्ती रहने का कोई शुल्क नहीं लेंगे। पंद्रह दिन पहले योजना की घोषणा के बाद से दो बच्चे वहां भर्ती हुए हैं। उन्होंने टेक्नोलॉजी में निवेश किया और विशेषज्ञों को जुटाया ताकि कम लागत पर कैंसर का अच्छा इलाज का संभव हो।
स्टोरी 2: अब्बास सुगिल देश के नंबर वन पैरा बैडमिंटन खिलाड़ी हैं। कुछ समय पहले वे दुनिया में 21वें नंबर पर थे, लेकिन कुछ अंतरराष्ट्रीय मैच नहीं खेल पाने के कारण वे 27वें स्थान पर गए। रैंकिंग बनाए रखने के लिए मैच खेलना जरूरी होता है। विभिन्न टू्र्नामेंट में वे पहले ही 35 मेडल जीत चुके हैं लेकिन, जल्दी ही होने वाले पैरोलंपिक्स में शामिल होने के लिए उन्हें 14 और अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट खेलने होंगे। ऐसी बात नहीं है कि उनकी इलेक्ट्रिक एल्बो प्रोस्थेसिस उन्हें तकलीफ देती है बल्कि उनका पर्स इतना मोटा नहीं है कि वे सारे खर्च उठा सकें। इसलिए सुगिल ने अपने गृह नगर कोयम्बटूर के 'एडुधर्मा' से संपर्क किया, जिसने उनके लिए क्राउड फंडिंग अकाउंट खोला और 18 लाख रुपए इकट्ठे किए। हालांकि, लक्ष्य अभी हासिल किया जाना है।
'एडुधर्मा' वालंटियरों की टीम है, जो शुरुआत में एक सामाजिक उपक्रम 'नो फूड वेस्ट' के लिए एकत्रित हुए थे ताकि भूख की समस्या से निपटा जा सके। सफलतापूर्वक तीन लाख से ज्यादा लोगों को भोजन मुहैया कराने का लक्ष्य हासिल करने के बाद उनका ध्यान वालंटियर पर गया,जो आर्थिक कठिनाई के चलते अपनी शिक्षा पूरी नहीं कर पा रहे थे।
इससे वे धीरे-धीरे शिक्षा और खेल के क्षेत्र में आए। स्कूल छोड़ने वाले बच्चों की दर में कमी लाने के उद्देश्य से शुरू दो साल पुराने संगठन ने अब तक 350 छात्रों की आर्थिक मदद की है। उन्होंने देशभर के 110 कॉलेजों के साथ पार्टनरशिप भी की है। देश के इस पहले एजुकेशन क्राउड फंडिंग प्लेटफॉर्म में अनोखी बात यह है कि दानदाता सीधे छात्रों की उपलब्धियां और रिकॉर्ड देख सकते हैं ताकि दोनों पक्षों की ओर से पूरी पारदर्शिता बरती जाए।
फंडा यह है कि दान की परम्परा कभी लुप्त नहीं होगी। आज कई लोग मिलकर जरूरतमंद की मदद कर रहे हैं, बस इतना ही फर्क है।
साभार: भास्कर समाचार
हमें जोकुछ मिलता है समाज से मिलता है और बदले में हम भी अपनी योग्यता के अनुसार लौटाने का प्रयास करते हैं। कई लोग अपने हाथों से कुछ देकर कृतज्ञता व्यक्त करते हैं तो कुछ लोग यह करने के लिए एक ही मंच
पर कई हाथों को जुटा देते हैं। स्टोरी 1: बरसों पहले पुगालगिरी ने अपने डॉ. पिता वडामलयन को मदुराई से तब के मद्रास जो अब चेन्नई कहलाता है, जाते देखा था, वह भी खुद के कैंसर के इलाज के लिए। एक बार उन्होंने चेन्नई अडायर कैंसर इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर वी शांता को कहते सुना था कि वे मदुराई में एक सेंटर शुरू करें, क्योंकि उन्हें इतनी लंबी यात्रा करने में बहुत तकलीफ होती है। यह बातचीत पुगालगिरी के कानों में गूंजती रहती थी। दुर्भाग्य से जब वे 20 साल के हुए तो उनके पिता का निधन हो चुका था पर उसके पहले वे 10 बिस्तरों वाली चिकित्सा सुविधा स्थापित कर चुके थे। 1957 में स्थापित वडामलयन हॉस्पिटल धीरे-धीरे बढ़कर 260 बिस्तरों वाला कई तरह की गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएं देने वाला अस्पताल हो गया। लेकिन, पुगालगिरी तब तक चैन से नहीं बैठे जब तक उन्होंने तीन मंजिला इंटीग्रेटेड कैंसर रिसर्च सेंटर भी स्थापित नहीं कर लिया। इसका शुभारंभ भी उन्होंने उन्हीं डॉ. शांता से कराया, जो उनके पिता का इलाज करते थे। इस तरह 2016 में उनके दिवंगत पिता की इच्छा पूरी हुई।
इस नवंबर में वडामलयन स्थापना की 60वीं वर्षगांठ मना रहा है तो मैनेजमेंट ने तय किया है कि सेंटर कैंसर का इलाज कराने वाले कम से कम 60 बच्चों के पालकों से इलाज और अस्पताल में भर्ती रहने का कोई शुल्क नहीं लेंगे। पंद्रह दिन पहले योजना की घोषणा के बाद से दो बच्चे वहां भर्ती हुए हैं। उन्होंने टेक्नोलॉजी में निवेश किया और विशेषज्ञों को जुटाया ताकि कम लागत पर कैंसर का अच्छा इलाज का संभव हो।
स्टोरी 2: अब्बास सुगिल देश के नंबर वन पैरा बैडमिंटन खिलाड़ी हैं। कुछ समय पहले वे दुनिया में 21वें नंबर पर थे, लेकिन कुछ अंतरराष्ट्रीय मैच नहीं खेल पाने के कारण वे 27वें स्थान पर गए। रैंकिंग बनाए रखने के लिए मैच खेलना जरूरी होता है। विभिन्न टू्र्नामेंट में वे पहले ही 35 मेडल जीत चुके हैं लेकिन, जल्दी ही होने वाले पैरोलंपिक्स में शामिल होने के लिए उन्हें 14 और अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट खेलने होंगे। ऐसी बात नहीं है कि उनकी इलेक्ट्रिक एल्बो प्रोस्थेसिस उन्हें तकलीफ देती है बल्कि उनका पर्स इतना मोटा नहीं है कि वे सारे खर्च उठा सकें। इसलिए सुगिल ने अपने गृह नगर कोयम्बटूर के 'एडुधर्मा' से संपर्क किया, जिसने उनके लिए क्राउड फंडिंग अकाउंट खोला और 18 लाख रुपए इकट्ठे किए। हालांकि, लक्ष्य अभी हासिल किया जाना है।
'एडुधर्मा' वालंटियरों की टीम है, जो शुरुआत में एक सामाजिक उपक्रम 'नो फूड वेस्ट' के लिए एकत्रित हुए थे ताकि भूख की समस्या से निपटा जा सके। सफलतापूर्वक तीन लाख से ज्यादा लोगों को भोजन मुहैया कराने का लक्ष्य हासिल करने के बाद उनका ध्यान वालंटियर पर गया,जो आर्थिक कठिनाई के चलते अपनी शिक्षा पूरी नहीं कर पा रहे थे।
इससे वे धीरे-धीरे शिक्षा और खेल के क्षेत्र में आए। स्कूल छोड़ने वाले बच्चों की दर में कमी लाने के उद्देश्य से शुरू दो साल पुराने संगठन ने अब तक 350 छात्रों की आर्थिक मदद की है। उन्होंने देशभर के 110 कॉलेजों के साथ पार्टनरशिप भी की है। देश के इस पहले एजुकेशन क्राउड फंडिंग प्लेटफॉर्म में अनोखी बात यह है कि दानदाता सीधे छात्रों की उपलब्धियां और रिकॉर्ड देख सकते हैं ताकि दोनों पक्षों की ओर से पूरी पारदर्शिता बरती जाए।
फंडा यह है कि दान की परम्परा कभी लुप्त नहीं होगी। आज कई लोग मिलकर जरूरतमंद की मदद कर रहे हैं, बस इतना ही फर्क है।