Friday, November 3, 2017

एलजी की पावर सरकार से ज्यादा, लेकिन फाइलें नहीं दबा सकते - दिल्ली में अधिकारों की लड़ाई पर सुप्रीम कोर्ट

दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल (एलजी) के बीच अधिकारों की सीमा पर सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संविधान पीठ ने गुरुवार से सुनवाई शुरू की। पीठ ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 239एए अनूठा है। सरकार
को इसका सम्मान करना चाहिए। पहली नजर में दूसरे केंद्र शासित प्रदेशों की तुलना में यहां एलजी को अधिक अधिकार दिए गए हैं। हालांकि, एलजी सरकारी योजना से जुड़ी कोई फाइल दबाकर नहीं रख सकते। मतभेद होने पर वह संविधान के तहत मामला राष्ट्रपति के पास भेजने के लिए बाध्य हैं। मामले में अगली सुनवाई 7 नवंबर को होगी। 
2015 से चल रही अधिकारों की लड़ाई: 
दिल्ली सरकार और एलजी के बीच अधिकारों की लड़ाई केजरीवाल के फरवरी 2015 में दूसरी बार सीएम बनते ही शुरू हो गई। केजरीवाल ने तत्कालीन एलजी नजीब जंग पर कई बार काम नहीं करने देने का आरोप लगाते हुए उन्हें केंद्र सरकार का एजेंट और हिटलर तक बता दिया। 
दिल्ली हाईकोर्ट ने एलजी को बताया था प्रशासनिक मुखिया: 
दिल्ली हाईकोर्ट ने पिछले साल 4 अगस्त को फैसले में कहा था कि दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश है और एलजी प्रशासनिक मुखिया हैं। कोई भी फैसला एलजी की मंजूरी के बिना नहीं लिया जाए। इसके खिलाफ केजरीवाल सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची। दिसंबर में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि चुनी हुई सरकार के पास कुछ शक्तियां होनी चाहिए, नहीं तो वह काम नहीं कर पाएगी। हालांकि, उसने हाईकोर्ट के फैसले पर अंतरिम रोक लगाने से इनकार करते हुए इस साल 15 फरवरी को मामला संविधान पीठ को सौंप दिया था। 
संविधान पीठ ने पूछा- किन अधिकारों का अतिक्रमण हो रहा:

1. दिल्लीसरकार बताए कि आ‌‌खिर एलजी उसके किन अधिकारों का अतिक्रमण कर रहे हैं? जब तक वह यह नहीं बताएगी कि एलजी कहां क्षेत्राधिकार से बाहर जाकर काम कर रहे हैं, तब तक उनके लिए सुनवाई करना संभव नहीं होगा। 
2.संसदकी सर्वाेच्चता पर संदेह नहीं है, लेकिन वैधानिक अस्तित्व को स्वीकार करना चाहिए। दोनों का सह-अस्तित्व है। एलजी फाइल को दबाकर नहीं रख सकते। उन्होंने वाजिब वक्त में फाइलों पर कारण सहित जवाब देना चाहिए। 
3.दिल्लीसामान्य राज्य नहीं, बल्कि केंद्र शासित प्रदेश है। इसलिए यहां राज्य सरकार के अधिकार अन्य राज्यों की तरह नहीं हो सकते। हालांकि, कार्यकारी कार्रवाई, विचारों में मतभेद और राय की वैधता, इन तीन मुद्दों पर चर्चा की जरूरत है। 
4.लगताहै कि सरकार कानून के दायरे में रहकर काम नहीं करना चाहती। दिल्ली में पुलिस, भूमि पब्लिक ऑर्डर पर उसका नियंत्रण नहीं है। संविधान ने एलजी को प्रमुखता दी है। उनकी सहमति जरूरी है। केंद्र शासित प्रदेश के तौर पर दिल्ली सरकार के अधिकारों की व्याख्या है। 
सरकार की दलील- केंद्र ने एलजी के माध्यम से व्यवस्था को पंगु बना दिया:
1. क्या एलजी जो चाहे वह कर सकते हैं? राज्य सरकार के पास सीमित अधिकार हैं। इन्हें बढ़ाना चाहिए। अनुच्छेद 239एए के प्रावधानों के तहत मंत्री अपने विभाग के प्रमुख नहीं हैं। मंत्रियों को काम कराने के लिए अफसरों के सामने गिड़गिड़ाना पड़ता है। 
2.एलजी ने एक साल से ज्यादा समय से कई लोक कल्याणकारी योजनाओं की फाइलें रोक रखी हैं। संवैधानिक प्रावधानों को सौहार्द्रपूर्ण तरीके से बनाया जाना चाहिए, जिससे जनता के द्वारा चुनी हुई सरकार की गरिमा भी बनी रहे। 
3.एक लाख 14 हजार से ज्यादा पद खाली पड़े हैं। नालों में हो रही मौतें रोकने के लिए सरकार कोई कदम नहीं उठा पा रही, क्योंकि इसके लिए एलजी का आदेश जरूरी है। यह शासन को नुकसान पहुंचा रहा है। अनुच्छेद की सामंजस्यपूर्ण व्याख्या जरूरी है। 
4.दिल्ली सरकार संसद की सर्वाेच्चता और शक्ति को स्वीकार करती है। लेकिन एलजी अनुच्छेद 239एए का उपयोग चुनी हुई सरकार के जनादेश को आहत करने के लिए नहीं कर सकते। केंद्र ने एलजी के मा्यम से कामकाज की व्यवस्था को ही पंगु कर दिया है।