एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
दीपावली जैसे त्योहारों पर अन्य लोगों के लिए तोहफे खरीदते वक्त हमारे ध्यान में खुद के लिए तोहफा खरीदने की बात कभी नहीं आती। क्या आपने कभी सोचा कि कोई दीपावली या जन्मदिन पर खुद को जीवनभर याद
रहने वाला अनुभव तोहफे के रूप में दे सकता है और वह भी साठ की उम्र में? यदि नहीं तो आगे पढ़िए कि कैसे नई दिल्ली स्थित आंत्रप्रेन्योर ने खुद को ऐसा तोहफा दिया, जो इस देश में किसी 60 साल के व्यक्ति ने सोचा नहीं होगा! उन्होंने यह तोहफा इसलिए चुना क्योंकि दिवाली और उनका 60वां जन्मदिन एक के बाद एक रहे थे। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। ग्वालियर में सिंधिया स्कूल के दिनों से वे हमेशा से कोई शानदार काम करना चाहते थे, लेकिन उन्हें पता नहीं था कि वे करें क्या। जीवन व्यस्त हो गया और उसमें कई मोड़ आए, लेकिन कॅरिअर के हिसाब से उनकी तरक्की होती रही, जिसे हम 'वेरी वेल सेटल्ड' कॅरिअर कहेंगे। किंतु कुछ शानदार करने की अपूर्ण आकांक्षा इन वर्षों में बार-बार सिर उठाती रही, जबकि उनकी पेशेवर जिंदगी वह हसरत पूरी करने के लिए वक्त नहीं देती थी। आखिरकार यह 20 अक्टूबर 2016 को शुरू हुई अौर सिर्फ 29 दिनों में पूरी हो गई। हममें से ज्यादातर लोग 60 साल की सेवानिवृत्ति की उम्र में घर के कोने में बैठकर जीवन को कुछ सुविधाजनक ढंग से लेने लगते हैं और कभी-कभी पछताते भी हैं कि युवावस्था में जब सेहत अच्छी थी तो वह नहीं कर पाए, जो हम हमेशा से करना चाहते थे। और यदि एडवेंचर की बात हो तो साठ साल वाले ज्यादातर बुजुर्ग शायद ही ऐसा जोखिम उठाते हैं।
साइक्लिस्ट और फिटनेस के जुनूनी गगन खोसला ने 2006 में साइक्लिंग को गंभीर कवायद के रूप में लिया और तब से वे सक्रिय साइक्लिस्ट हैं और भारत के एक कोने से दूसरे कोने तक साइकिल सवारी ही वह चुनौती थी, जिसे उन्होंने जिंदगी में कोई बड़ा काम करने की हसरत पूरी करने के लिए चुना। यह खुद को उनका तोहफा था। 20 सितंबर 2016 को उन्होंने लेह से कन्याकुमारी तक की 4,300 किलोमीटर की साइकिल सवारी शुरू की। उन्हें भरोसा था कि इससे उनके आयु समूह के कई लोगों को अपनी बरसों पुरानी हसरत पूरी करने की प्रेरणा मिलेगी। फिर चाहे वह हसरत कितनी ही कठिन क्यों हो। उसके बाद लगातार 29 दिनों तक रोज वे सुबह से शाम तक साइकिल चलाते। अपवाद सिर्फ दिल्ली, ग्वालियर और बेंगलुरू में लिया एक-एक दिन का विश्राम का था।
सबसे कठिन रास्ता लेह से मनाली तक का था। पांच सबसे ऊंचे पहाड़ी दर्रों से गुजरना खासतौर पर कठिनाइयों भरा था, लेकिन फिर भी उन्होंने महसूस किया कि यह अविश्वसनीय अनुभव था। उन्होंने शून्य से नीचे के तापमान, कम ऑक्सीजन वाले वातावरण और शरीर का तापमान गिरने जैसी स्थितियों का सामना किया। पर्वतों की कड़ाके की ठंड और उतने ही भीषण तपते मैदानों का सामना उन्होंने अपनी ट्रिप में किया। चंडीगढ़ से कन्याकुमारी तक की यात्रा में औसत तापमान 36 डिग्री सेल्सियस बना रहा। चूंकि एेसी यात्राओं में पेट का ठीक रहना बहुत जरूरी है, जिसके खराब होने की आशंका हमेशा रहती है, क्योंकि भिन्न संस्कृतियां और आदतें होने से देश में हर 200 किलोमीटर पर भोजन बदल जाता है। इसे देखते हुए उन्होंने अपनी यात्रा में एक कुक को साथ रखा ताकि भोजन को यथासंभव सादा और सेहत के अनुकूल रखा जा सके।
तेरह राज्यों की यह साइकिल यात्रा सिर्फ स्वयं के लिए तोहफा और अपने आयु समूह के लिए प्रेरणा थी बल्कि इस दौरान कमजोर आर्थिक वर्ग के बच्चों को उनके पूर्व सिंधिया स्कूल में पढ़ने के लिए छात्रवृत्ति एकत्रित करने का उद्देश्य भी था। इसके अलावा उन्होंने ग्लूटेन (अनाज में पाया जाने वाला प्रोटीन समूह, जो कई लोगों में पच नहीं पाता) के बारे में जागरूकता का अभियान भी चलाया, जो सेलिएक डिसीज जैसी कई बीमारियां का कारण है। इस 29 दिनों की महायात्रा में एक भी अप्रिय या नकारात्मक घटना नहीं हुई, हालांकि यह सही है कि उनके परिवार से एक व्यक्ति लगातार कार में उनके पीछे-पीछे रहा।
फंडा यह है कि हमें यह याद रखना चाहिए कि हममें से हर व्यक्ति ईश्वर की सबसे सुंदर रचना है और हम स्वयं के लिए सर्वश्रेष्ठ के हकदार हैं और यही अहसास हमें दूसरों से साझा करना चाहिए। मेरे सारे पाठकों को दीपावली की शुभकामनाएं।
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साभार: भास्कर समाचार
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