रायपुर के राजनांद गांव और बालोद जिले की सरहद पर रानीतराई स्कूल अपनी अनोखी पढ़ाई से पहचाना जाने लगा है। यहां यह देखा जाता है कि अगर छोटी क्लास के बच्चे अच्छी पढ़ाई कर रहे हैं तो उन्हें तो बड़ी क्लास में शिफ्ट कर दिया जाता है और अगर बड़ी क्लास के बच्चे अगर पढ़ने में कमजोर हैं तो उन्हें छोटी क्लास में बैठाया जाता है। पढ़ाई में निपुण अच्छे बच्चों को बड़ी कक्षाओं की परीक्षा दिलाने की कोशिश के तहत यहां का एक छात्र गिरीश पवार अब केवल 16 साल की आयु में इंजीनियरिंग कालेज में
थर्ड सेमेस्टर में है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। रानीतराई स्कूल में करीब 300 छात्र-छात्राएं हैं। यहां कक्षा में उम्र का बंधन नहीं है, लेकिन पढ़ाई का स्तर उसकी मूल कक्षा के लायक होना चाहिए। गणित अंग्रेजी जैसे विषय में विद्यार्थी जहां भय खाते हैं और उन्हें अपनी कमजोरी समझते हैं। इस स्कूल में इसी कमजोरी को अपनी ताकत में बदल लिया है। यदि बच्चा कोई विषय समझ नहीं पा रहा तो उसे आगे की कक्षा में धकेलने की बजाए पीछे की क्लास में वापस भेजा जाता है, ताकि उसका बौद्धिक स्तर गिरे। इसी वजह से छोटी कक्षाओं के बच्चे भी देश-दुनिया की बातें बता सकते हैं और 12-13 का पहाड़ा धड़ल्ले से बोलते हैं। छठवीं के बच्चे भी दसवीं के सवाल चुटकी में हल करते हैं। मिडिल स्कूल के बच्चे 40 तक का पहाड़ा बोल सकते हैं। इस स्कूल की खासियत यह भी है कि यहां कोई चपरासी नहीं है। बच्चे शिक्षक अपने सारे काम खुद करते हैं। यह भी एक खासियत है कि सामान्य क्लास तक तो बच्चे लर्निंग मटेरियल, अखबार, फ्लैक्स स्कूल भर में चस्पा करते और इन्हीं चीजों से पढ़ाई करते हैं। जब वे बोर्ड की परीक्षा देने वाले होते हैं, तब उन्हें सीजी बोर्ड की किताबों से पढ़ाई कराई जाती है।
इस तरह आया आइडिया: बहु कक्षा-बहु उद्देशीय पढ़ाई यानी एमजीएमएल का सिस्टम बरसों पहले केरल में लागू हुआ था। इसे कुछ राज्यों में लागू किया गया, लेकिन छात्रों शिक्षकों ने इसका गलत अर्थ निकाला। शिक्षक सोचने लगे कि अब तो बिना पढ़ाए वेतन मिलेगा और छात्रों ने समझा, पढ़ें या पढ़ें, पास तो हो ही जाएंगे। नतीजन सिस्टम फेल हो गया। स्कूल के प्राचार्य राजेश कुमार बताते हैं कि उन्होंने इसी पद्धति को एडाप्ट किया है।
छोटी उम्र वाला गिरीश पहुंचा इंजीनियरिंग कॉलेज में: गिरीश जब दसवीं में थे, तब 12 साल के थे। कम उम्र होने की वजह से शिक्षा मंडल के अफसरों ने परीक्षा में बैठने की अनुमति नहीं दी। छात्र की जिद शिक्षकों के सपोर्ट पर मंडल ने रुख नरम किया और टेस्ट मांगा। पास हो गया। परीक्षा में भी प्रथम श्रेणी मिली। पंद्रह साल में पहले अटेंप्ट में पीईटी पास कर दुर्ग के इंजीनियरिंग में इंफर्मेशन टेक्ोालॉजी का कोर्स पढ़ने लगा। अभी वह तीसरे सेमेस्टर की पढ़ाई कर रहा है। यहां भी उसने पहले सेमेस्टर में 79 और दूसरे में 81 फीसदी नंबर लाए।
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साभार: भास्कर समाचार
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