Wednesday, October 26, 2016

आठवीं तक फेल न करने जारी रखनी है या बन्द करनी है, ये निर्णय राज्य सरकारें लेंगी - MHRD

यूपीएसरकार में 8वीं कक्षा तक बच्चों को फेल करने की नीति को जारी रखने या उसमें संशोधन करने और खत्म करने का फैसलों राज्यों पर निर्भर करेगा। मंगलवार को मानव विकास एवं संसाधान मंत्रालय में हुई समीक्षा बैठक में यह फैसला लिया गया। मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने केंद्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड (केब) की बैठक के बाद यह जानकारी दी। नीति को लेकर 27 राज्यों की यहां सबमिट हुई रिपोर्ट में 22 राज्य इस नीति को खत्म करने या उसमें संशोधन के पक्ष में हैं। जबकि पांच राज्य ने ही इस नीति को जारी रखने की सहमति जताई। सेंट्रल एडवाइजरी बोर्ड ऑफ एजुकेशन की सब कमेटी के चेयरमैन एवं राजस्थान के शिक्षा मंत्री प्रोफेसर वासुदेव देवनानी ने बताया कि ज्यादातर राज्य नीति को खत्म करने के पक्ष में है। इसलिए यही निर्णय लिया गया राज्य अपने स्तर पर इसे लागू करने या करने का फैसला ले सकेंगे। लेकिन इससे पहले अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार (आरटीई) अधिनियम-2009 में संशोधन करने के लिए रिपोर्ट लोकसभा में पेश की जाएगी। वहां से प्रस्ताव पास होने के बाद ही राज्य अपनी प्रक्रिया को आगे बढ़ा पाएंगे। 
सरकार की फेल करने की नीति को लेकर राज्यों से फीड बैक के लिए बनाई कमेटी को 27 राज्यों की रिपोर्ट मिली। इनमें 22 राज्यों ने नीति को अनुचित माना। कुछ ने तो इस नीति को समाप्त कर 5वीं और 8वीं में बोर्ड परीक्षा कराने की सिफारिश भी की है। कमेटी ने बैठक में मंत्रालय को अपनी रिपोर्ट सौंपी। जिसमें बताया गया कि महाराष्ट्र, तेलंगाना, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश और गोवा इस नीति लागू रखना चाहते हैं। इनका तर्क है कि फेल करने से बच्चों का उत्साह कम होता है। अगली कक्षा में जाने से बच्चों का आत्म सम्मान बढ़ता है। जबकि केरल, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, मिजोरम, ओडिशा, पंजाब, राजस्थान, सिक्किम, त्रिपुरा, पुड्‌डुचेरी, दिल्ली, उत्तराखंड, गुजरात, नागालैंड, हिमाचल, जम्मू कश्मीर, छत्तीसगढ़, अरुणाचल, दमन एंड दीप और पश्चिम बंगाल समेत 22 राज्य इस नीति के खिलाफ हैं। हरियाणा ने अपना पक्ष रखते हुए कहा है कि इससे शिक्षा की गुणवत्ता में गिरावट आई है। छात्रों और शिक्षकों का रवैया लापरवाहपूर्ण हो गया है। परीक्षाओं से छात्रों में प्रतिस्पर्धा की भावना आती है और उन्हें अध्ययन की प्रेरणा मिलती है। 
उल्लेखनीय है कि निशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार (आरटीई) अधिनियम-2009 की धारा-16 में प्रावधान किया गया था कि स्कूल में दाखिल किसी भी बच्चे को प्रारंभिक (8वीं) शिक्षा पूरी होने तक फेल नहीं किया जाएगा। ही उसे स्कूल से निकाला जाएगा। 6 जून, 2012 को केंद्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड ने इस नीति की समीक्षा के लिए एक उप समिति का गठन किया, जिसने अगस्त, 2014 में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी। इस रिपोर्ट के आधार पर सभी राज्यों से फीडबैक मांगा गया था। 

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साभार: भास्कर समाचार 
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