मैनेजमेंट फंडा (एन. रघुरामन)
कैप्टन सॉलनबर्गर अपने सह-पायलट को कमांड सौंपने के साथ 15 जनवरी 2009 को उड़ान भरते हैं। ला गार्डिया हवाई पट्टी से उड़ान भरने के दो मिनट बाद पक्षी टकराने के कारण दोनों इंजन नाकाम हो जाते हैं। किंतु जैसे ही सॉलनबर्गर ने विंडशील्ड के सामने बत्तखों का झुंड देखा और दोनों इंजनों के बंद होने की थर्राती आवाज
सुनी, उन्होंने तत्काल सिर्फ दो शब्द -माय प्लेन- कहकर नियंत्रण ले लिया। सह-पायलट ने भी सिर्फ दो शब्द कहकर चार्ज उन्हें सौंप दिया- युवर एरोप्लेन। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। कैप्टन लौटकर समीप की दो हवाईपटि्टयों पर उतरने के बारे में विचार करते हैं। उधर, एयर ट्रैफिक कंटोल सीमा से बाहर जाकर मदद करने को तैयार था। किंतु जब दोनों विकल्प व्यावहारिक प्रतीत नहीं हुए तो कैप्टन विमान को हडसन नदी में उतारने का फैसला करते हैं। इंजन खराब होने के 208 सेकंड के भीतर हवाई जहाज 2 डिग्री तापमान के जल वाली नदी में उतरा। आखिरकार विमान में सवार सभी 155 लोगों की जिंदगियां बचा ली गईं। अब एक नई फिल्म 'सुली' ने पूरे घटनाक्रम को फिर साकार किया है, जिसमें दबाव में निर्णय लेने की नाटकीयता को एकदम सही तरीके से पकड़ा गया है।
राष्ट्रीय सुरक्षा विभाग कैप्टन और सह-पायलट को जांच के लिए बुलाता है। विभाग के अधिकारी खुद को जाने क्या समझते हैं, जो असली घटनाक्रम की वास्तविकता थी। यह बात अलग है कि पूरे जीवन में उन्होंने कभी एक बार भी हवाई जहाज नहीं उड़ाया था। उनके जैसे लीडर तो आईवी लीग (प्रतिष्ठित) के महंगे शिक्षा संस्थानों के चमचमाते कक्षों में गढ़े-निखारे जाते हैं। मैनेजमेंट के अपने सिद्धांतों से वे कैप्टन सॉलनबर्गर को सुली पर चढ़ाने की कोशिश करते हैं कि पानी पर विमान उतारकर उन्होंने यात्रियों की जिंदगियां खतरे में डाल दी थी।
इन जांचकर्ताओं को एक गलत अवधारणा यह सिखाई गई थी, कि यदि कोई कॉर्पोरेट लीडर होना चाहता है तो उसे इन ब्योरों की बारीकियों में नहीं जाना चाहिए कि लक्ष्य कैसे हासिल किया गया और इसलिए तेजी से नतीजे प्राप्त करने के लिए कथित 'हेलिकॉप्टर व्यू' को प्रोत्साहन दिया जाता है। लेकिन पंछी के टकराने से खराब हुए विमान के कैप्टन सॉलनबर्गर या तूफान में फंसे जहाज के मास्टर अथवा कुचले हुए शरीर को जोड़ने के दौरान ऑपरेशन थिएटर में बिजली कटौती में फंसे सर्जन से पूछें, तो वे कहेंगे कि प्रकृति का नियम ब्योरों की बारीकियों पर ध्यान देने की मांग करता है। जिसका मतलब है कि विश्व स्थानीय स्तर पर एक छोटे कदम के बाद दूसरे कदम पर बदल जाता है।
किसी उपग्रह को कक्षा में स्थापित करना हो तो अरबों छोटे-छोटे कदम अचूक तरीके से एवं एक-दूसरे से तालमेल बिठाकर उठाने होते हैं। किसी भी कदम पर कुछ भी गलत हो सकता है। किसी रॉकेट में इसलिए विस्फोट नहीं हो जाता कि हमारा विज़न या मिशन स्टेटमेंट गलत था, लेकिन कोई सूक्ष्म सील या स्क्रू अपेक्षानुरूप काम नहीं करता। जांचकर्ताओं द्वारा कैप्टन को दोषी ठहराने की तय पटकथा से कहानी अलग मोड़ लेती है तो इन ब्योरो की बारीकियों पर महारत के साथ उन्हें तत्काल याद करके बताने की क्षमता। यही क्षमता उस तरह के नेतृत्व की क्षमता पैदा करती है जो कैप्टन सुली और उनके सह-पायलट ने 15 जनवरी 2009 को हवाई जहाज उड़ाते समय दिखाई थी। जन-सुनवाई के दौरान जांचकर्ताओं सहित 300 से ज्यादा प्रत्यक्षदर्शियों को कैप्टन द्वारा रखे बारीक ब्योरों के सामने झुकना पड़ा। वह दिन विमानन के इतिहास के साथ मैनेजमेंट इतिहास में भी दर्ज हुआ कि कैसे हर बारीक ब्योरों पर ध्यान अाप को यह सिखाता है कि 'तब क्या करें जब आप जानते नहीं कि क्या करना' है।
फंडा यह है कि सच हमेशा छोटे से छोटे ब्योरों में छिपा रहता है। यदि आप खुद के प्रति ईमानदार रहना चाहते हैं तो उनकी उपेक्षा करें।
इन जांचकर्ताओं को एक गलत अवधारणा यह सिखाई गई थी, कि यदि कोई कॉर्पोरेट लीडर होना चाहता है तो उसे इन ब्योरों की बारीकियों में नहीं जाना चाहिए कि लक्ष्य कैसे हासिल किया गया और इसलिए तेजी से नतीजे प्राप्त करने के लिए कथित 'हेलिकॉप्टर व्यू' को प्रोत्साहन दिया जाता है। लेकिन पंछी के टकराने से खराब हुए विमान के कैप्टन सॉलनबर्गर या तूफान में फंसे जहाज के मास्टर अथवा कुचले हुए शरीर को जोड़ने के दौरान ऑपरेशन थिएटर में बिजली कटौती में फंसे सर्जन से पूछें, तो वे कहेंगे कि प्रकृति का नियम ब्योरों की बारीकियों पर ध्यान देने की मांग करता है। जिसका मतलब है कि विश्व स्थानीय स्तर पर एक छोटे कदम के बाद दूसरे कदम पर बदल जाता है।
किसी उपग्रह को कक्षा में स्थापित करना हो तो अरबों छोटे-छोटे कदम अचूक तरीके से एवं एक-दूसरे से तालमेल बिठाकर उठाने होते हैं। किसी भी कदम पर कुछ भी गलत हो सकता है। किसी रॉकेट में इसलिए विस्फोट नहीं हो जाता कि हमारा विज़न या मिशन स्टेटमेंट गलत था, लेकिन कोई सूक्ष्म सील या स्क्रू अपेक्षानुरूप काम नहीं करता। जांचकर्ताओं द्वारा कैप्टन को दोषी ठहराने की तय पटकथा से कहानी अलग मोड़ लेती है तो इन ब्योरो की बारीकियों पर महारत के साथ उन्हें तत्काल याद करके बताने की क्षमता। यही क्षमता उस तरह के नेतृत्व की क्षमता पैदा करती है जो कैप्टन सुली और उनके सह-पायलट ने 15 जनवरी 2009 को हवाई जहाज उड़ाते समय दिखाई थी। जन-सुनवाई के दौरान जांचकर्ताओं सहित 300 से ज्यादा प्रत्यक्षदर्शियों को कैप्टन द्वारा रखे बारीक ब्योरों के सामने झुकना पड़ा। वह दिन विमानन के इतिहास के साथ मैनेजमेंट इतिहास में भी दर्ज हुआ कि कैसे हर बारीक ब्योरों पर ध्यान अाप को यह सिखाता है कि 'तब क्या करें जब आप जानते नहीं कि क्या करना' है।
फंडा यह है कि सच हमेशा छोटे से छोटे ब्योरों में छिपा रहता है। यदि आप खुद के प्रति ईमानदार रहना चाहते हैं तो उनकी उपेक्षा करें।
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साभार: भास्कर समाचार
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