Sunday, October 30, 2016

कहाँ से आती है प्रेरणा: जानिए क्या फर्क है इंट्रोवर्ट और एक्सट्रोवर्ट लोगों में

एपल के सह संस्थापक स्टीव वॉजनिक ने कहा था कि अधिकतर इनोवेटर्स और इंजीनियर्स इंट्रोवर्ट होते हैं, अपने खयालों में खोए रहने वाले। वे सबसे अच्छा काम तब करते हैं, जब अकेले होते हैं। इसलिए मेरी सलाह होती है कि कोई काम करो तो अकेले करो। इससे रिवोल्यूशनरी प्रोडक्ट और डिजाइन तैयार होगी। दरअसल
इंट्रोवर्ट और एक्सट्रोवर्ट लोगों का दिमाग अलग होता है। मतलब ये लोग न्यूरो ट्रांसमीटर डोपामाइन के प्रति अलग-अलग तरीके से रिएक्ट करते हैं। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। डोपामाइन लोगों को अपने गोल तय करने और इसके बदले कुछ हासिल करने के लिए प्रेरित करता है। मसलन डोपामाइन अधिक धन कमाने, दोस्तों का सर्किल बढ़ाने जैसे गतिविधियों के लिए प्रेरित करता है। इंट्रोवर्ट और एक्सट्रोवर्ट दोनों तरह के लोगों में समान मात्रा में समान रूप से डोपामाइन रीलीज होता है। इमेजिनेशन इंस्टीट्यूट के साइंटिफिक डाइरेक्टर स्कॉट बैरी कॉफमैन बताते हैं कि डोपामाइन नेटवर्क एक्सट्रोवर्ट लोगों में अधिक एक्टिव होता है। इसका पाथ-वे छोटा होता है। मतलब यह किसी काम को करना है या नहीं इसके लिए जल्दी प्रेरित हो जाते हैं। जबकि इंट्रोवर्ट में यह पाथ-वे लंबा होता है। किसी निर्णय पर पहुंचने से पहले वे लॉन्ग टर्म मैमोरी और प्लानिंग से गुजरते हैं। साइकोलॉजिस्ट हैंस आइजनेक कहते हैं कि इंट्रोवर्टस का पाथ वे लंबा होता है लेकिन वे ज्यादा अलर्ट होते हैं, इसलिए उनका उत्साह स्थायी होता है। 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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