Thursday, November 23, 2017

निर्भया के 5 साल: सुरक्षा के 3100 करोड़, पर 90% फंड रखा रह गया

साभार: भास्कर समाचार
16 दिसंबर, 2012: दिल्ली में चलती बस में दुष्कर्म हुआ। देश के कोने-कोने में लोग निर्भया को इंसाफ दिलाने सड़कों पर उतरे। कानून तक बदल गया। तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार ने दुष्कर्म और अन्य तरह के उत्पीड़न का शिकार
महिलाओं की मदद के लिए 1,000 करोड़ रुपए के कॉरपस फंड से निर्भया फंड भी स्थापित कर दिया। लेकिन आज करीब 5 साल के बाद भी सरकार इस फंड का सही इस्तेमाल नहीं कर पाई है। इस फंड से दुष्कर्म, घरेलू हिंसा, एसिड अटैक और अन्य हिंसा की शिकार महिलाओंं की समुचित आपात मदद की जानी थी। 
2013-14 और 2014-15 में इस फंड में 1000-1000 करोड़ रुपए केंद्र सरकार ने दिए। मोदी सरकार बनने के बाद 2015-16 मेंं इस फंड के लिए कोई बजट आवंटित नहीं किया गया। यही नहीं फंड बनने के तीन साल बाद तक तो फंड से एक पैसे का इस्तेमाल नहीं हुआ। बाद में 2016 में जाकर केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने फंड के उपयोग के लिए नियम बनाए। सरकार ने भी आवंटन घटाकर अगले दो साल 2016-17 और 2017-18 के लिए 550-550 करोड़ रुपए कर दिया। लेकिन इस आवंटन के बाद भी जब कोई काम होता नहीं दिखा और हल्ला मचा तो अगस्त 2017 में सरकार ने संसद में कहा कि केंद्र और राज्य के विभिन्न महकमों ने निर्भया फंड के उपयोग के लिए 2209 करोड़ रुपए की 22 योजनाएं भेजी हैं। पांच साल में कुल 3100 करोड़ रुपए के फंड के बावजूद केवल 300 करोड़ की योजनाएं ही धरातल पर आई हैं। यानी कुल फंड का 90 फीसदी रखा रह गया। हालांकि निर्भया फंड की प्रगति की समीक्षा को लेकर पिछले महीने महिला एवं बाल विकास मंत्रालय में हुई विभिन्न मंत्रालयों की बैठक में जो स्थिति बताई गई उसके मुताबिक गृह मंत्रालय की ज्यादातर योजनाएं अभी अमल में आने की स्थिति में नहीं हैं। जबकि इधर बीते सालों में लगातार दुष्कर्म की घटनाएं बढ़ी ही हैं। 2012 में निर्भया कांड के समय देश में दुष्कर्म के मामलों की संख्या 24,923 थी, जो वर्ष 2015 में 34,651 के पार चली गई। वहीं 2016 और 2017 के आधिकारिक आंकड़े आना अभी बाकी हैं। बावजूद इसके जिस दिल्ली में निर्भया कांड हुआ वहीं अभी तक वन स्टॉप सेंटर नहीं खुला है। दरअसल महिलाओं को सहायता पहुंचाने के लिए यह प्रोजेक्ट केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय का था।

  • 900 से अधिक रेलवे स्टेशनों पर कैमरे लगने थे, लेकिन अभी तो इसके टेंडर भी जारी नहीं हुए। 
  • दुष्कर्म पीड़ितों के लिए जिस वन स्टॉप सेंटर की चर्चा देशभर में रही वो दिल्ली में ही नहीं खुला। 
  • 112 नंबर वाली हेल्पलाइन चालू होनी थी, लेकिन अभी इसकी टेस्टिंग भी नहीं हुई।
  • तीन साल में ही करीब 40% बढ़ गई हैं दुष्कर्म की घटनाएं 

ऐसा है अब तक इस फंड से बनी योजनाओं का हाल:
  • 500 करोड़ रु. की योजना, लेकिन एक भी कैमरा नहीं लगा: निर्भया फंड में 500 करोड़ रुपए की सबसे बड़ी परियोजना भारतीय रेलवे की है। इसके तहत 900 से अधिक स्टेशनों पर सीसीटीवी कैमरे और अन्य सुविधाएं लगाई जानी थीं। लेकिन अब तक टेंडर भी जारी नहीं हुआ है। रेलवे के प्रवक्ता ने बताया यह काम रेलटेल को सौंपा गया है। उन्होंने दावा किया कि मार्च 2018 तक 500 स्टेशनों पर कैमरे लगाए जाएंगे। रेलवे के इस दावे पर यकीन करना इसलिए कठिन है क्योंकि जब डेढ़ साल में रेलवे टेंडर निकालने तक नहीं पहुंच सका तो अब तीन महीने में सारा काम कैसे खत्म कर लेगा। 
  • हेल्पलाइन का तो अभी परीक्षण भी शुरू नहीं हुआ: ये है 321 करोड़ रुपए की ईआरएसएस स्कीम। गृह मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि इस योजना के तहत देश में 112 नंबर वाली यूनिवर्सल हेल्पलाइन बनाई जानी है। योजना पूरी होने पर पुलिस की 100 नंबर, फायर ब्रिगेड की 101 नंबर और एंबुलेंस की 108 नंबर सहित ज्यादातर हेल्पलाइन इसमें समाहित हो जाएंगीं। इसके लिए गृह मंत्रालय ने सीडेक त्रिवेंद्रम से एप डेवलप कराया है। योजना को अमल में लाने की स्थिति यह है कि नवंबर के अंत में उत्तर प्रदेश में इसकी टेस्टिंग शुरू होगी। 
  • साइबर यौन उत्पीड़न रोकने की दिशा ही तय नहीं: इसी तरह 195 करोड़ की सीसीपीडब्ल्यूसी के तहत इस बात का इंतजाम किया जाना था कि महिलाओं को ऑनलाइन पोर्नोग्राफी, अश्लील मैसेज भेजने या साइबर यौन हिंसा से बचाया जाए। इसमें भी एक ऐप डेवलप होना है। गृह मंत्रालय अब तक राज्यों को 80 करोड़ रु. से अधिक दे चुका है। योजना की प्रगति धीमी है। गृह मंत्रालय ने कंपनसेशन फंड के 200 करोड़ रु. जरूर राज्यों को दिए हैं। ये पैसा भी किसी नई मदद करने के बजाय राज्यों में पहले से चल रही कंपनसेशन स्कीम में ही दिया जाएगा। 
  • इधर राज्यों की योजनाओं की भी हालत खराब: महिला पुलिस वालंटियर्स की योजना में सिर्फ हरियाणा, आंध्र प्रदेश और गुजरात ने ही दिलचस्पी दिखाई। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, इस योजना को लेकर राज्यों में कोई उत्साह नहीं है। दरअसल महिला पुलिस वालंटियर्स को 1,000 रुपए महीने से भी कम काम का मानदेय दिया जाना है। इसी तरह 83.5 करोड़ रु. की एक परियोजना उत्तर प्रदेश सरकार की थी, जिसमें राज्य परिवहन निगम की बसों में सीसीटीवी कैमरे लगाए जाने थे। लेकिन अब महज 50 महिला स्पेशल बसों में कैमरे लगाए गए हैं।