एन. रघुरामन (मैनेजमेंटगुरु)
सबकुछ बॉलीवुड फिल्म की तरह रहा। मुश्किल दिन अब धीरे-धीरे बीत रहे थे लेकिन, नियति ने कुछ और ही सोच रखा था। 8 सितंबर 2016 को वह भीषण दुर्घटना का शिकार हो गया और कमर के नीचे वह पूरी तरह लकवाग्रस्त हो गया। उसे तुरंत पुणे के संचेती अस्पताल ले जाया गया। उसकी कमजोर आर्थिक स्थिति को देखते हुए महाराष्ट्र सरकार ने उसका पूरा मेडिकल खर्च वहन करने का फैसला किया। तीन माह के उपचार का उसे कोई फायदा नहीं हुआ। सोमनाथ बिल्कुल भी हिल-डुल नहीं पा रहा था। उसकी संवेदी, प्रेरक और अनैच्छिक क्रियाओं संबंधी तंत्रिकाएं प्रभावित हुई थीं। अामतौर पर रीढ़ में जितनी ज्यादा चोट होती है, उतना ही व्यक्ति पंगु हो जाता है। सोमनाथ की चोट गंभीर थी लेकिन, उसे पता नहीं था कि उसकी दुर्घटना के कारण चार्टर्ड अकाउंटेंट बिरादरी में चुपचाप एक मुहिम चल पड़ी थी। वेस्टर्न इंडिया रिजनल काउंसिल ऑफ इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया के वाइस चेयरमैन सर्वेश जोशी पुणे में सिर्फ उनसे रोज मिलने आते बल्कि उसकी सेहत पर भी निकट से निगरानी रखते।
सोमनाथ जहां था वहां पहुंचने के लिए उसने बहुत संघर्ष किया था और अब दुर्घटना के बाद यह सब बेनतीजा दिखाई दे रहा था। अब सामान्य जीवन की ओर लौटने के लिए वह कुछ नहीं कर सकता था। सोमनाथ सिर्फ निष्क्रिय हो गया था बल्कि ब्लैडर पर भी उसका नियंत्रण नहीं रह गया था, इसलिए उसे देखभाल करने वालों की जरूरत बनी हुई थी। मेडिकल एक्सपर्ट्स का कहना था कि अब स्टेमसेल थैरेपी ही एकमात्र विकल्प था लेकिन, उसका खर्च बहुत अधिक था। किंतु जोशी उनके पीछे चुपचाप काम कर रहे थे और उन्होंने मदद जुटाने के लिए सारे स्रोतों का उपयोग किया। उन्होंने देशभर के चार्टर्ड अकाउंटेंट्स को संदेश भेजा और उन्होंने भी पूरी उदारता दिखाई। पुणे, मुंबई के अलावा भी विदेश में रह रहे सीए ने भी मदद का हाथ बढ़ाया और कुछ ही दिनों में जोशी ने इलाज के लिए अच्छी-खासी रकम जुटा ली।
इस मंगलवार को नवी मुंबई के न्यूरोजन ब्रेन एंड स्पाइन इंस्टीट्यूट में सोमनाथ की स्टेम सेल सर्जरी हुई। उपचार शनिवार तक चला और उसे अगले तीन माह तक सघन फिजियो थैरेपी की सलाह दी गई है। पहली अच्छी खबर यह है कि अब वह एक बार में एक घंटे से ज्यादा देर तक खड़े रह सकता है। खड़े और बैठे रहते समय उसका संतुलन सुधर गया है और वह अब न्यूनतम मदद से पांच से छह कदम चल लेता है। मेडिकल एक्सपर्ट और उनका इलाज कर रहे न्यूरोसर्जन डॉ. आलोक शर्मा को लगता है कि फिजियोथैरेपी के साथ उसकी हालत सुधरती जाएगी। चूंकि उसे लगातार मदद की जरूरत होती है वह अपने गांव जाने की सोच रहा है, जहां संभव है उसे जरूरी चिकित्सा उपचार मिले। किंतु सीए बिरादरी उसका साथ छोड़ने को तैयार नहीं है। वे पहले ही उसकी और मदद करने का जरिया खोजने में लगे हैं। इतने लंबे समय तक उपचार का प्रबंध करते रहने के बावजूद उनका उतसाह बना हुआ है और सीए बिरादरी अपने प्रयासों में कोई कसर नहीं छोड़ना नहीं चाहती।
फंडा यह है कि किसी संघर्षरत व्यक्ति के साथ उसकी पूरी यात्रा में साथ देना निश्चित ही परोपकार से बढ़कर कुछ और है तथा सोमनाथ की मदद करके देशभर की सीए बिरादरी ने वही कर दिखाया।
सोमनाथ गिराम महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के एक गांव के कर्ज के बोझ तले दबे किसान का बेटा है। ज्यादातर निम्न मध्यवर्गीय परिवारों के बेटे की तरह उसने बीकॉम किया था लेकिन, उसकी महत्वाकांक्षा चार्टर्ड
अकाउंटेन्ट (सीए) बनने की थी, क्योंकि उसे भरोसा था कि सीए करने के बाद उसे कभी भूखे मरने की नौबत नहीं आएगी। सीए के अपने सपने का पीछा करते हुए वह पुणे चला गया। चूंकि खेती से ज्यादा आमदनी नहीं थी तो उसने अपना खर्च चलाने के लिए पुणे में टी स्टाल खोल लिया। चाय बेचने के धंधे से प्रधानमंत्री की जिंदगी का संबंध होने के कारण उसे भी हिम्मत मिली कि वह लोगों को बता सकें कि वह भी किसी दिन कुछ बनेगा। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। और उसने वाकई यह कर दिखाया। देश में जब सीए परीक्षाओं में सफलता की दर बहुत ही मामूली है, तब सोमनाथ ने पहले ही प्रयास में परीक्षा पास कर ली। ऐसा बहुत कम लोग ही कर पाते हैं। चायवाले के सीए बनने की खबर ने महाराष्ट्र सरकार वहां के शिक्षा मंत्री विनोद तावडे को जगा दिया और उन्होंने सोमनाथ को विभाग की लोकप्रिय योजना 'कमाओ और सीखो' योजना का दूत बना दिया। इसके तहत व्याख्यान आयोजित किए जाते हैं और उसके जैसे लाखों युवाओं को प्रेरणा मिलती है। उल्लेखनीय बात यह है कि यह काम उसने यह पुणे में चार्टर्ड अकाउंटेंसी प्रैक्टिस करने के साथ किया। सबकुछ बॉलीवुड फिल्म की तरह रहा। मुश्किल दिन अब धीरे-धीरे बीत रहे थे लेकिन, नियति ने कुछ और ही सोच रखा था। 8 सितंबर 2016 को वह भीषण दुर्घटना का शिकार हो गया और कमर के नीचे वह पूरी तरह लकवाग्रस्त हो गया। उसे तुरंत पुणे के संचेती अस्पताल ले जाया गया। उसकी कमजोर आर्थिक स्थिति को देखते हुए महाराष्ट्र सरकार ने उसका पूरा मेडिकल खर्च वहन करने का फैसला किया। तीन माह के उपचार का उसे कोई फायदा नहीं हुआ। सोमनाथ बिल्कुल भी हिल-डुल नहीं पा रहा था। उसकी संवेदी, प्रेरक और अनैच्छिक क्रियाओं संबंधी तंत्रिकाएं प्रभावित हुई थीं। अामतौर पर रीढ़ में जितनी ज्यादा चोट होती है, उतना ही व्यक्ति पंगु हो जाता है। सोमनाथ की चोट गंभीर थी लेकिन, उसे पता नहीं था कि उसकी दुर्घटना के कारण चार्टर्ड अकाउंटेंट बिरादरी में चुपचाप एक मुहिम चल पड़ी थी। वेस्टर्न इंडिया रिजनल काउंसिल ऑफ इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया के वाइस चेयरमैन सर्वेश जोशी पुणे में सिर्फ उनसे रोज मिलने आते बल्कि उसकी सेहत पर भी निकट से निगरानी रखते।
सोमनाथ जहां था वहां पहुंचने के लिए उसने बहुत संघर्ष किया था और अब दुर्घटना के बाद यह सब बेनतीजा दिखाई दे रहा था। अब सामान्य जीवन की ओर लौटने के लिए वह कुछ नहीं कर सकता था। सोमनाथ सिर्फ निष्क्रिय हो गया था बल्कि ब्लैडर पर भी उसका नियंत्रण नहीं रह गया था, इसलिए उसे देखभाल करने वालों की जरूरत बनी हुई थी। मेडिकल एक्सपर्ट्स का कहना था कि अब स्टेमसेल थैरेपी ही एकमात्र विकल्प था लेकिन, उसका खर्च बहुत अधिक था। किंतु जोशी उनके पीछे चुपचाप काम कर रहे थे और उन्होंने मदद जुटाने के लिए सारे स्रोतों का उपयोग किया। उन्होंने देशभर के चार्टर्ड अकाउंटेंट्स को संदेश भेजा और उन्होंने भी पूरी उदारता दिखाई। पुणे, मुंबई के अलावा भी विदेश में रह रहे सीए ने भी मदद का हाथ बढ़ाया और कुछ ही दिनों में जोशी ने इलाज के लिए अच्छी-खासी रकम जुटा ली।
इस मंगलवार को नवी मुंबई के न्यूरोजन ब्रेन एंड स्पाइन इंस्टीट्यूट में सोमनाथ की स्टेम सेल सर्जरी हुई। उपचार शनिवार तक चला और उसे अगले तीन माह तक सघन फिजियो थैरेपी की सलाह दी गई है। पहली अच्छी खबर यह है कि अब वह एक बार में एक घंटे से ज्यादा देर तक खड़े रह सकता है। खड़े और बैठे रहते समय उसका संतुलन सुधर गया है और वह अब न्यूनतम मदद से पांच से छह कदम चल लेता है। मेडिकल एक्सपर्ट और उनका इलाज कर रहे न्यूरोसर्जन डॉ. आलोक शर्मा को लगता है कि फिजियोथैरेपी के साथ उसकी हालत सुधरती जाएगी। चूंकि उसे लगातार मदद की जरूरत होती है वह अपने गांव जाने की सोच रहा है, जहां संभव है उसे जरूरी चिकित्सा उपचार मिले। किंतु सीए बिरादरी उसका साथ छोड़ने को तैयार नहीं है। वे पहले ही उसकी और मदद करने का जरिया खोजने में लगे हैं। इतने लंबे समय तक उपचार का प्रबंध करते रहने के बावजूद उनका उतसाह बना हुआ है और सीए बिरादरी अपने प्रयासों में कोई कसर नहीं छोड़ना नहीं चाहती।
फंडा यह है कि किसी संघर्षरत व्यक्ति के साथ उसकी पूरी यात्रा में साथ देना निश्चित ही परोपकार से बढ़कर कुछ और है तथा सोमनाथ की मदद करके देशभर की सीए बिरादरी ने वही कर दिखाया।
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साभार: भास्कर समाचार
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