Friday, March 31, 2017

कोई भी कमजोर नहीं होता, खुद को चुनौती देनी होती है

एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
दो दिन के केरल टूर पर कुछ लोगों ने मुझे असंभव से कामों और लीक से अलग सोच से चकित कर दिया। जानते हैं इनके बारे में- 
स्टोरी 1: वे सिर्फ दसवीं कक्षा पास हैं। एक छोटी इंजीनियरिंग फैक्ट्री चलाते हैं। यहां नियमित कामों के अलावा मोटर व्हीकल और फैक्ट्री के मालिक ग्राहकों की मांग पर मशीनों में जुगाड़ से कई सुधार किए जाते हैं। केरल के कोट्‌टायम के नज़दीक एक छोटे स्थान कांजिरापल्ली में वे आराम का जीवन गुजार रहे थे। एक दिन बेटी के स्कूल के प्रिंसिपल ने चॉपर यानी हेलिकॉप्टर का एक मॉडल बना देने का अनुरोध किया, ताकि बच्चों को इसे दिखाकर किसी भी उड़ने वाली मशीन के बारे में आसानी से समझाया जा सके। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। यह चार साल पहले की बात है। उन्होंने खुद को चुनौती दी कि क्यों एक असली चॉपर बनाया जाए और उसे स्कूल को गिफ्ट कर दिया जाए? अब 2017 में जाते हैं। 54 साल के डी. सदाशिवन ने चार साल का समय इस होममेड चॉपर को तैयार करने में लगाया। इस मंगलवार को उन्होंने यह चॉपर उड़ाया भी। एक महीने का समय उन्हें और लगेगा इसे फाइन ट्यून करने में। उन्होंने अपने या स्कूल के ग्राउंड में इसे उड़ाने के लिए जरूरी लाइसेंस के लिए आवेदन कर दिया है। लेकिन इसके लिए उन्होंने किया क्या? सदाशिवन ने इसमें मारुती 800 का इंजन और इंडस्ट्रियल कामों में इस्तेमाल होने वाला गिअर बॉक्स लगाया। चॉपर का अंदरूनी हिस्सा लोहे से बना है और बाहर की ओर एल्यूमिनियम का इस्तेमाल हुआ है। विंडस्क्रीन के लिए ऑटोरिक्शा के ग्लास का उपयोग हुआ है। बाकी के पार्ट उन्होंने अपनी वर्कशॉप में बनाए। इसे कमर्शियल रूप से इस्तेमाल किया जा सकेगा या नहीं यह तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन युवा छात्रों के लिए ये अच्छा सबक है। 

स्टोरी 2: सुजाता अंबिका कोच्चि के एसआरवी स्कूल में हैडमिस्ट्रेस हैं। उनकी चिंता यह थी कि हमारे देश के अन्य भाषाई हिस्सों में जिस तरह बच्चे अपनी मातृ भाषा के अलावा कोई और भाषा नहीं जानते वही समस्या मलयाली युवाओं की भी है। ये लोग अपनी पूरी जिंदगी कोई विदेशी भाषा नहीं सीख पाते लेकिन, एमएलए फंड से स्मार्ट क्लास रूम मिलने के बाद उन्होंने एक बिल्कुल नया आइडिया अपनाया। कक्षा पांच से आठ तक के सभी छात्रों के लिए नियमित अंग्रेजी स्पीकिंग क्लास के अलावा अपनी एक अमेरिकी मित्र इंग्लिश ऑनलाइन टीचर ट्रेसी हैनसन को अपॉइंट किया। ताकि वे स्काइप के जरिए अंग्रेजी की क्लास ले सकें। बच्चे अंग्रेजी बोलना सीखने की इस क्लास से वंचित रह जाएं, इसलिए इसे स्कूल के समय के दौरान ही एडजस्ट किया। दोनों देशों के टाइम ज़ोन में काफी फर्क है। इसके अलावा वे यह भी चाहती थीं कि बच्चों को इस भाषा, इसके शब्दों से प्यार हो और उन्हें अपने छोटे से स्कूल में विदेशी भाषा की इस क्लास पर गर्व का अनुभव हो। उन्होंने सिर्फ इस लक्ष्य को हासिल किया बल्कि इन बच्चों की कम समय में भाषा में प्रोग्रेस से ट्रेसी हैनसन इतनी प्रभावित हुईं कि वे बुधवार को व्यक्तिगत रूप से इन शानदार बच्चों से मिलने गईं। 
स्टोरी 3: कल्पक चावन (26) और अनिरुद्ध चटर्जी (34) की आपस में मुलाकात इसलिए हुई कि दोनों को ही किताबों से प्यार था और पढ़ना उनके खून में शामिल था। चूंकि इन दोनों की मुलाकात में लंबा समय लग गया, इसलिए उन्होंने एक जैसे विचारों और शौक के अजनबी लोगों को जोड़ने वाला एक कॉमन प्लेटफार्म BeHiver बनाने का फैसला किया। बीहाइवर शहद की तरह है जो मधुमक्खियों के कॉमन मकसद होता है। अभी तक हुए पांच संवादों में ही लोग इसे पसंद कर रहे हैं और अपने ही जैसे लोगों के साथ अच्छा समय बिता रहे हैं। 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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