साभार: जागरण समाचार
भाजपा सरकार ने विकलांगों एवं अक्षम को नया नाम दिव्यांग दिया गया। अब उन्हें दिव्यांग के नाम से जाना जाता है, परंतु खेलों में उनके साथ अब भी भेदभाव होता है। सबसे बड़ा भेदभाव यह है कि पैरा यानी दिव्यांग
खिलाड़ी कितने ही पदक विजेता हो, परंतु उन्हें खेल विभाग ग्रेडेशन का सर्टीफिकेट नहीं देता। वहीं समान्य वर्ग के खेलों में प्रदेश स्तरीय विजेता खिलाड़ियों को भी ग्रेडेशन मिल जाती है। जिसके आधार पर उन्हें सरकारी नौकरी मिलने में आसानी होती है। बढ़िया कॉलेजों में दाखिला में हो जाता है। परंतु पैरा खिलाड़ियों को ग्रेडेशन न मिलने की वजह से स्पोट्र्स कोटे में सरकारी नौकरी नहीं मिल पाती। - पैरा खिलाड़ियों को भी ग्रेडेशन का लाभ मिले। इसके लिए हमने कई बार आवाज उठाई। इसके बाद कैश अवार्ड तो बराबर कर दिया गया। हालांकि हमें ग्रेडेशन अभी भी नहीं दी जाती। इससे परेशानी आ रही है। हमारी मांग है कि ग्रेडेशन भी समान्य खिलाड़ियों के साथ दी जाए। - गिरीराज, प्रदेश सचिव, हरियाणा पैरा ओलम्पिक संघ।
पैरा खिलाड़ी छोड़ चुके है उम्मीद: पैरा खेलों की विभिन्न एसोसिएशन व खिलाड़ी ग्रेडेशन की उम्मीद भी छोड़ दी है। उनका कहना है कि सरकार एक साथ 1000 पैरा खिलाड़ियों को नौकरी नहीं दे सकती। इसलिए पैरा खिलाड़ियों को ग्रेडेशन मिलना मुश्किल है। यदि अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों को ग्रेडेशन दे तो भी हरियाणा में काफी खिलाड़ी हो जाते है। वैसे खेल विभाग की तरफ से मिलने वाली ग्रेडेशन में चार वर्ग बनाए हुए है।
कैश अवार्ड में भी भेदभाव: 2010 से पहले पैरा खिलाड़ियों को कैश अवार्ड में भी भेदभाव होता था। इसके बाद पंचकूला में राष्ट्रीय पैरा नेशनल गेम का आयोजन किया गया। जिसके बाद तत्कालीन प्रदेश सरकार ने पैरा खिलाड़ियों को वहीं कैश अवार्ड देने की घोषणा की जो आम खिलाड़ियों को प्रतियोगिता जीतने पर मिलती है। कैश अवार्ड तो प्रतियोगिता जीतने पर बराबर मिलने लगा।