साभार: भास्कर समाचार
हरियाणा में कांट्रेक्ट पर लगे करीब साढ़े 7 हजार कर्मचारियों के लिए राहत की खबर है। भाजपा सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत आउटसोर्सिंग पॉलिसी पार्ट-2 के तहत लगे कर्मचारियों को समान काम के लिए
समान वेतन (यानी पक्के कर्मचारियों के बराबर) 01 नवंबर, 2017 से देने का फैसला किया है। आउटसोर्सिंग पॉलिसी पार्ट-1, डीसी रेट और अन्य तरह से रखे गए कर्मचारियों को भी इसका फायदा कैसे मिल सकता है, यह देखने के लिए सरकार ने एक कमेटी बनाई है। सर्व कर्मचारी संघ हरियाणा समेत राज्य के तमाम कर्मचारी संगठन यूनियनें लंबे समय से सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश को लागू करने की मांग करती रही थीं। मुख्य सचिव डीएस ढेसी की ओर से शुक्रवार रात जारी किए गए परिपत्र के मुताबिक आउटसोर्सिंग पॉलिसी पार्ट-2 के तहत लगे कच्चे कर्मचारी उस पोस्ट के मुताबिक न्यूनतम वेतनमान लेने के हकदार होंगे।
उन्हें उस पद के लिए मिलने वाले भत्तों का फायदा नहीं मिलेगा। समान काम के लिए समान वेतन के मामले में वही मापदंड और सिद्धांत लागू होंगे, जो सुप्रीम कोर्ट ने अपने 26 अक्टूबर, 2016 के आदेश में पैरा संख्या 42 में तय किए हैं।
इस बारे में राज्य के वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यु का कहना है कि कर्मचारियों की करीब 1 साल से चली रही मांग को ध्यान में रखते हुए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को सिद्धांततः लागू करने का फैसला किया है। इससे कितने कर्मचारियों को फायदा होगा और कितना बजट भार आएगा। फिलहाल इसका आकलन नहीं किया गया है। संबंधित विभागों से रिपोर्ट आने के बाद ही आगे के लिए इस संबंध में बजट प्रावधान किए जाएंगे।
पहल अच्छी, लेकिन फैसले की भावना के अनुरूप नहीं - लांबा: सर्व कर्मचारी संघ हरियाणा के प्रदेश महासचिव सुभाष लांबा का कहना है कि समान काम के लिए समान वेतन लागू करना राज्य सरकार की अच्छी पहल है। लेकिन, अफसोस इस बात का है कि यह फैसले की भावना के अनुरूप लागू नहीं किया गया है। सरकार के इस फैसले से करीब 15 हजार गेस्ट टीचर, 12 हजार एनएचएम कर्मी, 9 हजार बिजली कर्मियों और आउटसोर्सिंग पॉलिसी पार्ट-1 के तहत विभिन्न विभागों में लगे क्लर्क, डाटा एंट्री ऑपरेटर, चौकीदार और माली समेत करीब 60 हजार कर्मियों को फायदा नहीं मिलेगा। इस तरह से कच्चे कर्मचारियों का एक बड़ा वर्ग इस लाभ से वंचित हो गया है। उन्होंने कहा कि इनके लिए कमेटी बनाए जाने का कोई औचित्य नहीं है, क्योंकि सरकार ने एडवोकेट जनरल और प्रशासनिक स्तर पर राय-मशविरा करने के बाद ही इसे लागू किया है। इसलिए यह फैसला सभी कर्मचारियों के लिए समान रूप से लागू होना चाहिए था।
मान लीजिए नियमित तौर पर भर्ती एक क्लर्क का वेतन (लेवल-1 ) पे-बैंड, ग्रेड-पे र डीए मिलाकर 19900 रुपए है। इसमें 4 प्रतिशत डीए और जोड़कर 20700 रुपए वेतन मिल रहा है। जबकि आउटसोर्सिंग पॉलिसी पार्ट- 2 में लगे क्लर्क को 12040 रुपए वेतन ही मिल रहा है। इस फैसले के बाद अब उसे भी 20700 रुपए ही मिलेंगे। इस तरह उसे करीब 8000 रुपए महीने का फायदा होगा। जबकि उस पद के लिए दोनों ही क्लर्कों की शैक्षणिक योग्यताएं और काम एक समान हैं। लेकिन, अस्थायी तौर पर क्लर्क को अब हाउस रेंट, मेडिकल और एजुकेशन जैसे भत्ते नहीं मिलेंगे।