Sunday, November 12, 2017

सस्ते होंगे फ्लैट, GST के दायरे में आएगा रियल एस्टेट

साभार: जागरण समाचार 
रियल एस्टेट में काले धन पर नकेल कसने और फ्लैट खरीदारों को टैक्स पर टैक्स चुकाने के बोझ से राहत दिलाने के मकसद से सरकार ने इस क्षेत्र को जीएसटी के दायरे में लाने के लिए कदम उठा दिया है। केंद्र सरकार
ने इसकी पहल करते हुए जीएसटी काउंसिल की 23वीं बैठक के एजेंडा में एक पावर प्वाइंट प्रजेंटेशन रखा। माना जा रहा है कि रियल एस्टेट के जीएसटी में आने पर इस क्षेत्र में इनपुट टैक्स क्रेडिट की सुविधा का लाभ मिलने से फ्लैट पर टैक्स का बोझ हल्का होगा।
जीएसटी काउंसिल के सूत्रों ने दैनिक जागरण को बताया कि रियल एस्टेट को जीएसटी के दायरे में लाने के लिए सरकार ने एक पावर प्वाइंट प्रजेंटेशन एजेंडा में रखा था लेकिन समयाभाव के चलते काउंसिल इस पर चर्चा नहीं कर सकी। अब अगली बैठक में इस पर विचार विमर्श किया जाएगा। रियल एस्टेट को जीएसटी के दायरे में लाने से न सिर्फ केंद्र और राज्य सरकारों को अधिक राजस्व की प्राप्ति होगी बल्कि इससे इनपुट टैक्स क्रेडिट की सुविधा मिलने से बंदरगाह, हवाई अड्डे और होटल जैसे व्यवसायों को भी लाभ मिलेगा। साथ ही रियल स्टेट के रूप में सृजित होने वाले काले धन के खिलाफ भी यह अहम कदम होगा। मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम ने भी कहा है कि अगर जमीन और रियल एस्टेट को जीएसटी के दायरे में नहीं लाया गया तो काले धन का सृजन नहीं रुकेगा।
फिलहाल रियल एस्टेट पर मुख्यत: चार प्रकार के टैक्स व शुल्क लगते हैं जिसमें स्टांप ड्यूटी, प्रॉपर्टी टैक्स, रजिस्ट्रेशन फीस और भवन निर्माण पर सेस शामिल हैं। जीएसटी लागू होने के बाद कंस्ट्रक्शन सेस उसी में शामिल हो जाएगा लेकिन प्रॉपर्टी टैक्स जारी रहेगा क्योंकि यह टैक्स स्थानीय निकाय लगाते हैं। सूत्रों का कहना है कि रियल एस्टेट को जीएसटी के दायरे में लाने के लिए सीजीएसटी और एसजीएसटी कानूनों में संशोधन की आवश्यकता पड़ेगी। हालांकि अभी यह स्पष्ट नहीं है कि इसके लिए संविधान में संशोधन की जरूरत पड़ेगी या नहीं। सूत्रों का कहना है कि इसके लिए कानून मंत्रलय की राय लेनी पड़ेगी। सूत्रों ने कहा कि रियल एस्टेट को जीएसटी के दायरे में लाने से पहले चल और अचल संपत्ति की परिभाषा भी तय करनी होगी।
उल्लेखनीय है कि काउंसिल के कुछ सदस्यों ने रियल एस्टेट को जीएसटी के दायरे में लाने की मांग उठायी थी जिसके बाद इस पर विचार किया जा रहा है। फिलहाल जमीन की बिक्री पर राज्य सरकारें स्टांप शुल्क लगाती हैं। स्टांप शुल्क की दर भी अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग है। कुछ राज्यों में तो यह आठ फीसद तक है। नीति आयोग ने अपने त्रिवर्षीय एक्शन एजेंडा में भी स्टांप ड्यूटी घटाने की वकालत की है।