एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
बेंगलुरू के 10वीं के 15 वर्षीय छात्र समय गोदिका ने ऑटोफजी पर तीन मिनट का वीडियो बनाया है, जिसकी क्रिया को बीच-बीच में उपवास करके तेज किया जा सकता है। इससे (वह जोर देकर कहता है) कैंसर, डायबिटीज, पार्किंसन्स रोग और अल्जाइमर पर रोकथाम लग सकती है। अब वह ब्रेकथ्रो जूनियर चैलेंज (जिसमें दुनिया बदलने वाले वैज्ञानिकों को सम्मानित किया जाता है) के 15 फाइनलिस्ट में है, जिसका परिणाम इस दिसंबर में घोषित होगा। ब्रेकथ्रो जूनियर चैलेंज छात्रों के लिए आयोजित वार्षिक वैश्विक स्पर्धा है ताकि उनमें विज्ञान के बारे में रचनात्मक सोच प्रेरित की जा सके। दुनियाभर के देशों के 13 से 18 साल के छात्रों को 3 मिनट का वीडियो बनाकर भेजने के लिए आमंत्रित किया जाता है। यह वीडियो ऐसा होना चाहिए, जो विज्ञान, भौतिकी या गणित के क्षेत्र में कोई अवधारणा या सिद्धांत को जीवंतता से प्रस्तुत कर सके। इनमें यह देखा जाता है कि छात्र में जटिल वैज्ञानिक विचारों या अवधारणा को कितना दिलचस्प, कल्पनाशील और ज्ञानवर्धक तरीके से पेश करने की काबिलियत है। चैलेंज को ब्रेेकथ्रो प्राइज फाउंडेशन आयोजित करता है, जिसे बुनियादी भौतिकशास्त्र, जीवन विज्ञान और गणित की श्रेणी में महत्वपूर्ण तरक्की को सम्मानित करने के लिए निर्मित किया गया है। ब्रेकथ्रो प्राइजेस के संस्थापकों में से एक फेसबुक के मार्क जकरबर्ग हैं और इसका उद्देश्य सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिक कार्यों की सराहना करना और वैज्ञानिकों की अगली पीढ़ी को प्रेरित करना है। यदि समय चैलेंज जीत लेता है तो उसे सिर्फ पुरस्कार स्वरूप 2,50,000 डॉलर की स्कॉलरशिप मिलेगी बल्कि उसके स्कूल को भी साइंस लैब के लिए एक लाख डॉलर मिलेंगे। चैलेंज में अावेदन देने के बहुत पहले ही समय ने इस विषय पर शोध शुरू कर दिया था, जब उसने अपने कई रिश्तेदारों को न्यूरोलॉजी संबंधी रोगों से पीड़ित देखा। जाहिर है ये लोग उसकी प्रेरणा बने, क्योंकि वह इन रोगों की रोकथाम इलाज के तरीके खोजना चाहता था। वह जवाहरलाल सेंटर ऑफ एडवान्स्ड साइंटिफिक रिसर्च के एक प्रोफेसर महोदय से मिला ताकि ऑटोफजी की बेहतर समझ मिल सके।
साभार: भास्कर समाचार
स्टोरी 1: बीच-बीच में कुछ अंतराल से उपवास भारतीय संस्कृति का हिस्सा रहा है। कुछ उपवास एक दिन के होते हैं तो कुछ लंबी अवधि के। हमारे पूर्वज भी उपवास पर भरोसा करते थे, क्योंकि जब कोशिकाओं को पोषक
तत्वों से वंचित रखा जाता है तो इससे अॉटोफजी (ऐसी क्रिया जिसमें शरीर खराब कोशिकाओं का नाश करता है) की दर बढ़ जाती है। इससे कोशिकाओं की अधिक सफाई और रोगों की रोकथाम होती है। बेंगलुरू के 10वीं के 15 वर्षीय छात्र समय गोदिका ने ऑटोफजी पर तीन मिनट का वीडियो बनाया है, जिसकी क्रिया को बीच-बीच में उपवास करके तेज किया जा सकता है। इससे (वह जोर देकर कहता है) कैंसर, डायबिटीज, पार्किंसन्स रोग और अल्जाइमर पर रोकथाम लग सकती है। अब वह ब्रेकथ्रो जूनियर चैलेंज (जिसमें दुनिया बदलने वाले वैज्ञानिकों को सम्मानित किया जाता है) के 15 फाइनलिस्ट में है, जिसका परिणाम इस दिसंबर में घोषित होगा। ब्रेकथ्रो जूनियर चैलेंज छात्रों के लिए आयोजित वार्षिक वैश्विक स्पर्धा है ताकि उनमें विज्ञान के बारे में रचनात्मक सोच प्रेरित की जा सके। दुनियाभर के देशों के 13 से 18 साल के छात्रों को 3 मिनट का वीडियो बनाकर भेजने के लिए आमंत्रित किया जाता है। यह वीडियो ऐसा होना चाहिए, जो विज्ञान, भौतिकी या गणित के क्षेत्र में कोई अवधारणा या सिद्धांत को जीवंतता से प्रस्तुत कर सके। इनमें यह देखा जाता है कि छात्र में जटिल वैज्ञानिक विचारों या अवधारणा को कितना दिलचस्प, कल्पनाशील और ज्ञानवर्धक तरीके से पेश करने की काबिलियत है। चैलेंज को ब्रेेकथ्रो प्राइज फाउंडेशन आयोजित करता है, जिसे बुनियादी भौतिकशास्त्र, जीवन विज्ञान और गणित की श्रेणी में महत्वपूर्ण तरक्की को सम्मानित करने के लिए निर्मित किया गया है। ब्रेकथ्रो प्राइजेस के संस्थापकों में से एक फेसबुक के मार्क जकरबर्ग हैं और इसका उद्देश्य सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिक कार्यों की सराहना करना और वैज्ञानिकों की अगली पीढ़ी को प्रेरित करना है। यदि समय चैलेंज जीत लेता है तो उसे सिर्फ पुरस्कार स्वरूप 2,50,000 डॉलर की स्कॉलरशिप मिलेगी बल्कि उसके स्कूल को भी साइंस लैब के लिए एक लाख डॉलर मिलेंगे। चैलेंज में अावेदन देने के बहुत पहले ही समय ने इस विषय पर शोध शुरू कर दिया था, जब उसने अपने कई रिश्तेदारों को न्यूरोलॉजी संबंधी रोगों से पीड़ित देखा। जाहिर है ये लोग उसकी प्रेरणा बने, क्योंकि वह इन रोगों की रोकथाम इलाज के तरीके खोजना चाहता था। वह जवाहरलाल सेंटर ऑफ एडवान्स्ड साइंटिफिक रिसर्च के एक प्रोफेसर महोदय से मिला ताकि ऑटोफजी की बेहतर समझ मिल सके।
स्टोरी 2: इसे संस्कृत में 'खिच्चा', बंगाल में 'खिचुरी', तमिल में पोंगल कहते हैं और हममें से ज्यादातर लोगों के लिए यह इन्हीं शब्दों से निकली 'खिचड़ी' है। मजे की बात है कि इस साल इसे ब्रैंड इंडिया फूड चुना गया है। जब दिल्ली में 3 से 5 नवंबर तक वर्ल्ड फूड इंडिया आयोजित है, तो शेफ संजीव कपूर 800 किलो से ज्यादा खिचड़ी बना रहे हैं, जिसका लुत्फ 60 हजार अनाथ बच्चों के साथ आयोजन में मौजूद अतिथि उठाएंगे। एक अनूठा विश्व रिकॉर्ड बनाने के साथ यह परम्परागत भारतीय व्यंजन को विश्वस्तर पर लोकप्रिय बनाने का प्रयास भी है। खिचड़ी का इतिहास शायद प्राचीन भारत तक जाता है और यह मध्यकालीन डिश मुगल सम्राट अकबर की पसंदीदा डिश थी। देशभर के लोगों को जोड़ने वाला यह सुविधाजनक आहार विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग रूपों शैलियों में अपनाया गया है और यह सिर्फ गायकवाड़ जैसे शाही घरानों में पसंदीदा बनी बल्कि यह ब्रिटिश पैलेस में 'केजरी' के नाम से मुख्य भोजन का हिस्सा बनने में भी कामयाब रही। अाधुनिक समय में डॉक्टरों में इसे बहुत मान्यता मिली है और वे ऐसे रोगियों खासतौर पर बच्चों बुजुर्गों को इसे देने की सलाह देते हैं, जो किसी रोग से उबर रहे हों। ऐसा इसलिए है कि पूर्वजों का भरोसा था कि यह प्राचीन आयुर्वेदिक रेसिपी है, जो आसानी से पचने वाली और शरीर को विषैले तत्वों से मुक्त करती है। उनका मानना था कि यह बहुत स्वास्थ्यवर्धक डिश है, जो शरीर को पोषण देने के साथ अवांछित तत्वों को निकालकर उसकी सफाई भी करती है।
फंडा यह है कि कृपया अपने प्राचीन भोजन संस्कृति पर निगाह डालिए, जिसमें स्वस्थ जीवनशैली की कुंजी मिलने के अलावा योगा जैसे कई वैज्ञानिक कारण अपरिहार्य रूप से मिलेंगे।