एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
साभार: भास्कर समाचार
पहली कहानी: शुक्रवार को एर्नाकुलम के नेदुम्बसेरी के निकट के छोटे से गांव की सड़क पर जा रही 12वीं की दो छात्राओं ने विज्ञापन के विशाल बिलबोर्ड की ओर इशारा किया और खिलखिलाने लगीं। उन लड़कियों के अंकल
ने साइकिल रोकी और बिलबोर्ड की ओर यह सोचकर देखा कि फिल्में इन दोनों लड़कियों को बिगाड़ रही हैं। बिलबोर्ड पर खाकी वर्दी में हमारे सिनेमा हीरो की तरह गॉगल लगाए आईपीएस अधिकारी नज़र रहा था। यह देखकर अंकल मुस्कराए और चुपचाप साइकिल आगे बढ़ाते हुए खुद से बुदबुदाए 'हमारी बच्चियां भी दूसरों जैसी ही हैं- इन्हें भी फिल्में लुभाती हैं।' खाकी वर्दी में तमिलनाडु कैडर के प्रशिक्षु अधिकारी सफीर करीम थे और बिलबोर्ड उनकी करीम अकादमी में सिविल सेवा में जाने के इच्छुक युवाओं की एक पूरी पीढ़ी को तैयार करने में उनके समर्पण की कहानी बता रहा था। इस सोमवार को सिर्फ यह गांव बल्कि पूरा केरल तब स्तब्ध रह गया, जब खबर आई कि चेन्नई में यूपीएससी (मुख्य) परीक्षा के टेस्ट सेंटर पर आईबी अधिकारियों ने उन्हें चीटिंग करते पकड़ा, जिसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। वे एक सेलफोन, अपने शर्ट बटन में ब्ल्यू टूथ वाला मिनिएचर कैमरा और वायरलैस ईयरपीस लेकर परीक्षा हॉल में अभिनेता संजय दत्ता द्वारा अभिनीत पात्र मुन्नाभाई की तरह पहुंचे और उसके सहयोगी 'सर्किट' की तरह उनकी पत्नी ने उनकी मदद की। लालच ने उन्हें और उनकी पत्नी को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया।
दूसरी कहानी: उनके पतियों की उम्मीद खत्म हो गई थी। उनका छोटा-सा गांव उस क्षेत्र के केंद्र में है, जो सूखे, कर्ज और मौत के लिए कुख्यात है। कृत्रिम उर्वरकों और कीटनाशकों ने स्थानीय किसानों को कर्ज के जाल में फंसा दिया था। पूरे मराठवाड़ा और विदर्भ में नकद फसल, रासायनिक खाद और बढ़ते कर्ज पर जरूरत से ज्यादा निर्भरता ने हजारों किसानों को आत्महत्या करने पर मजबूर कर दिया। हाल ही में कीटनाशकों के जहर के कारण महाराष्ट्र स्थित लातूर जिले के उनके छोटे-से गांव में 40 लोग मारे गए।
लेकिन, कीटनाशकों के भारी उपयोग के लिए पहचाने जाने वाले उसी गांव में रहकर भी ये महिलाएं अन्यों से अलग थीं। उन्होंने अपनी खेती की छोटी जमीनों को अपने हाथों में लिया, जो कुछ सौ वर्ग मीटर से ज्यादा नहीं थी। उन्हें तो ये उदाहरण बताकर हतोत्साहित किया गया कि कैसे गांव में कई इलाकों वाले किसान नाकाम हो गए, फिर जमीन के छोटे टुकड़े तो आर्थिक कठिनाई की स्थिति में कोई फर्क नहीं ला सकते। लेकिन महिलाएं जानती थीं कि टिकाऊ खेती के लिए उन्हें ऑर्गनिक खेती करनी होगी। आखिर में उसी का फायदा मिला। आमदनी इतनी तो नहीं है कि कोई जश्न मनाया जाए लेकिन, यह तय है कि अब आत्महत्या करने अथवा कर्ज लेने का विचार भी नहीं आएगा। आज सब्जियां तोड़कर इकट्ठी करने की प्रक्रिया पूरी भी नहीं होती कि लोग खरीदने चले आते हैं। जयश्री बाणे और मंगल वाघमारे जैसी महिलाओं से मिलिए, जो प्रतिमाह ऑर्गनिक भिंडी और करेले बेचकर हर माह 14 से 25,000 रुपए कमा लेती हैं। ये दो ही नहीं हैं बल्कि महिलाओं के एक पूरे नए वर्ग को अहसास हो रहा है कि उन्हें ज्यादा उपज देने वाली नकद फसलों, संकर बीजों, उर्वरक और कीटनाशकों के लालच में नहीं पड़ना चाहिए। अॉर्गनिक खेती की शुरुआती सफलता ने उन्हें आय बढ़ाने के लिए कोई 'गलत' औजार अपनाने को प्रेरित नहीं किया। वे आमदनी दोगुनी करना तो सीख रही हैं लेकिन, ऑर्गनिक तरीके से।
फंडा यह है कि महत्वाकांक्षीहोने में कुछ भी गलत नहीं है लेकिन, लालच के रास्ते पर चलना खतरनाक है।
लेकिन, कीटनाशकों के भारी उपयोग के लिए पहचाने जाने वाले उसी गांव में रहकर भी ये महिलाएं अन्यों से अलग थीं। उन्होंने अपनी खेती की छोटी जमीनों को अपने हाथों में लिया, जो कुछ सौ वर्ग मीटर से ज्यादा नहीं थी। उन्हें तो ये उदाहरण बताकर हतोत्साहित किया गया कि कैसे गांव में कई इलाकों वाले किसान नाकाम हो गए, फिर जमीन के छोटे टुकड़े तो आर्थिक कठिनाई की स्थिति में कोई फर्क नहीं ला सकते। लेकिन महिलाएं जानती थीं कि टिकाऊ खेती के लिए उन्हें ऑर्गनिक खेती करनी होगी। आखिर में उसी का फायदा मिला। आमदनी इतनी तो नहीं है कि कोई जश्न मनाया जाए लेकिन, यह तय है कि अब आत्महत्या करने अथवा कर्ज लेने का विचार भी नहीं आएगा। आज सब्जियां तोड़कर इकट्ठी करने की प्रक्रिया पूरी भी नहीं होती कि लोग खरीदने चले आते हैं। जयश्री बाणे और मंगल वाघमारे जैसी महिलाओं से मिलिए, जो प्रतिमाह ऑर्गनिक भिंडी और करेले बेचकर हर माह 14 से 25,000 रुपए कमा लेती हैं। ये दो ही नहीं हैं बल्कि महिलाओं के एक पूरे नए वर्ग को अहसास हो रहा है कि उन्हें ज्यादा उपज देने वाली नकद फसलों, संकर बीजों, उर्वरक और कीटनाशकों के लालच में नहीं पड़ना चाहिए। अॉर्गनिक खेती की शुरुआती सफलता ने उन्हें आय बढ़ाने के लिए कोई 'गलत' औजार अपनाने को प्रेरित नहीं किया। वे आमदनी दोगुनी करना तो सीख रही हैं लेकिन, ऑर्गनिक तरीके से।
फंडा यह है कि महत्वाकांक्षीहोने में कुछ भी गलत नहीं है लेकिन, लालच के रास्ते पर चलना खतरनाक है।