Thursday, November 2, 2017

क्यों हमें प्रयास करने से कभी चूकना नहीं चाहिए?

एन. रघुरामन (मैनेजमेंटगुरु)
साभार: भास्कर समाचार
कितनी बार हमने यह वाक्य सुना है, 'अरे, मैं तो इतना गरीब हूं या इतना बूढ़ा हूं कि टेक्नोलॉजी समझ नहीं सकता।' केरल में एक निजी लैबोरेटरी में ड्राइवर सिबिन भी यही कहते थे। फिर उनके मित्रों ने उन्हें गाते सुनकर
म्युज़िक मैकिंग अप्लिकेशन 'स्म्यूल' डाउनलोड करके गायन के पेशे में किस्मत आजमाने की सलाह दी। सैन फ्रांसिस्को स्थित अमेरिकी मोबाइल एप डेवलपर स्म्यूल का मानना है कि हर व्यक्ति में रचनात्मकता होती है और टेक्लोलॉजी हर व्यक्ति के भीतर छिपे संगीतकार को बाहर ला सकती है। दुनिया को संगीत से जोड़ना उसका मिशन है। सिबिन ने आखिरकार स्म्यूल पर अपनी प्रतिभा आजमाने का निर्णय ले लिया। 
उनका पहला वीडियो शुरुआत में घर में शूट किया गया और फिर उन्हें लगा कि घर में पर्याप्त रोशनी नहीं है तो वे बाहर आए, जहां उनके बच्चे खेल रहे थे और उनकी पत्नी उन पर निगाह रखे हुए थी। उन्होंने बिना बताए उन्हें फ्रेम में शामिल कर लिया। उन्हें पता नहीं था कि स्म्यूल के पेजों पर पोस्ट करने के बाद इसे हजारों व्यू मिलेंगे। धीरे-धीरे वे खुद के गीत रिकॉर्ड करके उन्हें अपलोड करने लगे। फिर उनकी पत्नी शेनिशा भी उनके साथ शामिल हो गईं। वे भरत नाट्यम और मोहिनीअट्टम की प्रशिक्षित नृत्यांगना हैं और परिवार बच्चों को संभालने में नृत्य पृष्ठभूमि में चला गया था। दोनों ने दृढ़निश्चय कर लिया कि वे अपनी प्रतिभा का सर्वश्रेष्ठ देंगे और हर वीडियो रेकॉर्ड करने के पहले वे कई-कई बार रिहर्सल करते। एक महीने के भीतर मंदिर की पृष्ठभूमि में पति के गीत पर नृत्य करतीं पत्नी का वीडियो वायरल हो गया। 
अचानक इस युगल को अहसास हो गया कि पासटाइम सिंगर को पेशा बनाने का वक्त गया है और सिबिन ने ड्राइवर का काम छोड़ दिया। सबसे बड़ा तीन साल का बेटा भी पिता के साथ गुनगुनाने लगा। मां-बेटे ने अब तक अज्ञात रहे संगीत के अपने गुणों को पहचाना। जल्दी ही पिता ने संगीत को समर्पित एक फेसबुक पेज और यू ट्यूब चैनल खोल लिया ताकि अपने काम को स्ट्रीम कर सके। फेसबुक पेज पर पोस्ट किया गया एक फोटो उनकी एक वर्षीय बेटी चिलांका के लिए भी भाग्यशाली साबित हुआ। अचानक यह नया स्म्यूल परिवार ज्यादा से ज्यादा लोगों के दिल जीतने लगा। आप माने या माने पर उनके नवीनतम वीडियो ने दस लाख व्यू हासिल किए हैं। 
एप पर उनके प्रयासों ने सिर्फ पूरे परिवार की ज़िंदगी बदल दी बल्कि चिलांका भी सिर्फ 13 माह की उम्र में एक फैशन कंपनी की ब्रैंड आयकन बन गई। 'वर्चुअल' मीडिया में उनकी लोकप्रियता से प्रेरित होकर खाड़ी के एक मलयाली एनआरआई ने उनसे संपर्क कर उनके गीत को कंपोज करने का अनुरोध किया। उनके बिज़नेस में एक और आयाम जुड़ गया। दो माह पहले पति और पत्नी ने 'मेलोड्रॉप्स' नामक बैंड बनाया, जो विशेष अवसरों त्योहारों के लिए मलयालम में नई धुनें बजाता है। उन्होंने मलयालम सिनेमा से दिल को छू लेने वाली और संगीत की आम रुचि के अनुकूल धुनें चुनने का अपना तरीका तैयार किया। चार सदस्यों के इस परिवार ने कुछ ही माह में अचानक सामाजिक आयोजनों में अपनी अलग पहचान बना ली। एक ड्राइवर, जिसका शरीर कार गड्‌ढे में उतरने के साथ उछलता रहता था, वही शरीर तब थिरकने लगता है, जब उनके कानों द्वारा सुना गीत लय-ताल के साथ उनके मस्तिष्क में बजने लगता है। कल्पना करें कि यदि सिबिन ने नया एप आजमाकर देखने से इनकार कर दिया होता तो क्या होता! 
फंडा यह है कि बार-बार प्रयास करना हमारा काम है। यही हमारे हाथ में है। शेष सब तो नियति को तय करने के लिए छोड़ देना चाहिए।