एन. रघुरामन (मैनेजमेंटगुरु)
भारत और दुनिया के 33 देशों में वे मिट्टी की सेहत और न्यूट्रिशन फार्मिंग सिखाते हैं। ग्रैम इस धरती और इसके लोगों को बचाना चाहते हैं। उनकी किताब 'न्यूट्रिशन रूल्स' इंटरनेशनल बेस्टसेलर है और उसके सात संस्करण प्रकाशित हुए हैं। उनके साप्ताहिक ब्लॉग के हजारों फालोवर हैं। उनका एक ही उद्देश्य है : लोगों को बताना कि कैसे दशकों से मिनरल युक्त मिट्टी ऑटो इम्यून रोग, कैंसर, पार्किंसन्स, हृदय रोग और कई अन्य बीमारियों का कारण है। न्यूजीलैंड के ग्रैम अक्षरश: लाखों मील की यात्रा करते रहते हैं। भारत में सह्याद्रि के कई अंगूर पैदा करने वाले, चिकमंगलूर के कॉफी उत्पादक, अनार धान पैदा करने वाले उनकी सलाह पर चलते हैं।
साभार: भास्कर समाचार
स्टोरी 1: पच्चीस साल से ज्यादा पहले वे सफल रिटेलर थे, जब स्कूल से बाहर आती उनकी छह वर्षीय बेटी रैचल को कार ने टक्कर मारकर भयावह रूप से जख्मी कर दिया। वह तीन माह तक कोमा में रही। डॉक्टरों ने
बताया कि हो सकता है कि वह बचे। रिटेलर पिता ने ईश्वर से वादा किया कि यदि सारी विरोधी स्थितियों के बाद भी बच्ची बच गई तो वे शेष जीवन में मानव हित में कुछ कुछ मूल्यवान काम करेंगे। तीन मिनट बाद ही वह कोमा से बाहर गई। उस रात उन्होंने निश्चय किया कि वे मिट्टी और पोषण के विशेषज्ञ बनेंगे और अगले ही दिन 'न्यूट्रि-टेक सोल्यूशन्स' की पूरी अवधारणा साकार हुई। उन्होंने एक ऐसे शिक्षक और लेखक के रूप में अपनी यात्रा शुरू की, जिसकी ज़िंदगी का मकसद दुनिया के लिए कृषि का नया स्वरूप मानक खड़ा करके मानव स्वास्थ्य की आम स्थिति में सुधार लाना है। भारत और दुनिया के 33 देशों में वे मिट्टी की सेहत और न्यूट्रिशन फार्मिंग सिखाते हैं। ग्रैम इस धरती और इसके लोगों को बचाना चाहते हैं। उनकी किताब 'न्यूट्रिशन रूल्स' इंटरनेशनल बेस्टसेलर है और उसके सात संस्करण प्रकाशित हुए हैं। उनके साप्ताहिक ब्लॉग के हजारों फालोवर हैं। उनका एक ही उद्देश्य है : लोगों को बताना कि कैसे दशकों से मिनरल युक्त मिट्टी ऑटो इम्यून रोग, कैंसर, पार्किंसन्स, हृदय रोग और कई अन्य बीमारियों का कारण है। न्यूजीलैंड के ग्रैम अक्षरश: लाखों मील की यात्रा करते रहते हैं। भारत में सह्याद्रि के कई अंगूर पैदा करने वाले, चिकमंगलूर के कॉफी उत्पादक, अनार धान पैदा करने वाले उनकी सलाह पर चलते हैं।
स्टोरी 2: उनके पिता चीनी मिल के मालिक थे। एक दिन उनके पिता सामने आकर बैठ गए और बताने लगे कि कैसे चीनी की कीमतें गिर रही हैं और उनका अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। उन्होंने बेटे से कहा कि वह ऐसी पढ़ाई करे, जो इस समस्या का समाधान कर दे। उन्हें एक विचार आया- गन्ना खरीदों, उसका जूस निकालो, बिना कोई एडिटिव डाले टेट्रा पैक बनाओ और यह सुनिश्चित करो कि वह तीन माह खराब हो।
अपना प्लान लेकर राहुल पाटिल एमबीए करने पुणे के सिम्बायोसिस में गए जहां उनके प्रोफेसर ने उनका परिचय जर्मनी की डॉयचे गिजेलशाफ्टफुर इंटरनेशनेल जुसामीनरबाइट से कराया। यह छोटे मध्यम दर्जे के उद्योगों में इनोवेशन को मदद देती है। वह उनके रिसर्च और डेवलपमेंट के लिए फंड देने पर राजी हो गई। हाल ही में उन्होंने अपने कैम्पस में सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हुए गन्ने का अपना जूस 'विरोका' को लॉन्च किया। प्रोडक्ट का भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण द्वारा परीक्षण किया जा रहा है।
अपना प्लान लेकर राहुल पाटिल एमबीए करने पुणे के सिम्बायोसिस में गए जहां उनके प्रोफेसर ने उनका परिचय जर्मनी की डॉयचे गिजेलशाफ्टफुर इंटरनेशनेल जुसामीनरबाइट से कराया। यह छोटे मध्यम दर्जे के उद्योगों में इनोवेशन को मदद देती है। वह उनके रिसर्च और डेवलपमेंट के लिए फंड देने पर राजी हो गई। हाल ही में उन्होंने अपने कैम्पस में सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हुए गन्ने का अपना जूस 'विरोका' को लॉन्च किया। प्रोडक्ट का भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण द्वारा परीक्षण किया जा रहा है।
स्टोरी 3: इस सोमवार को 'प्रतिरोध का सिनेमा' पर आयोजित पटना फिल्म फेस्टिवल में तमिलनाडु के मदुराई से आईं 28 वर्षीय दिव्या भारती अपनी 109 मिनट की डाक्यूमेंटरी फिल्म 'कक्कुस' (तमिल में टॉयलेट) पर जुनून के साथ बोल रही थीं। फिल्म तमिलनाडु में मानव द्वारा मल साफ करने वालों की दास्तान है। उसका कहना है कि ऐसे 15 लाख लोग राज्य में हैं, जबकि अधिकारी नकली आंकड़े देकर सिर्फ 300-400 ऐसे सफाईकर्मी होने का दावा करते हैं। तमिलनाडु सरकार ने उनकी फिल्म पर प्रतिबंध लगा दिया है। अब वे इस समस्या पर देशभर में बहस छेड़ने में लगी हैं। जान से मारने, एसिड डालने और यहां तक कि दुष्कर्म की धमकियों से भी वे अविचलित हैं। यू-ट्यूब पर उनकी फिल्म को पांच लाख से ज्यादा लाइक मिले हैं।
फंडा यह है कि यदि आप किसी मुद्दे पर गहराई से भरोसा करते हैं तो खड़े होकर अपनी कहानी कहें, यदि यह अच्छी है तो लोग इसे सुनेंगे।
फंडा यह है कि यदि आप किसी मुद्दे पर गहराई से भरोसा करते हैं तो खड़े होकर अपनी कहानी कहें, यदि यह अच्छी है तो लोग इसे सुनेंगे।