साभार: जागरण समाचार
हरियाणा में मुख्य विपक्षी दल इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) ने एसवाईएल नहर के निर्माण में देरी पर केंद्र सरकार को चेतावनी देते हुए कहा है कि सरकार इसके निर्माण के लिए तुरंत कारगर कदम उठाए। एसवाईएल
सहित ट्रैक्टर को व्यावसायिक वाहनों की श्रेणी में लाने और राजमार्गो पर नए टोल बैरियर के खिलाफ हरियाणा में विपक्ष के नेता अभय सिंह चौटाला के नेतृत्व में 22 सदस्यीय इनेलो सांसद व विधायकों के प्रतिनिधिमंडल ने बुधवार नई दिल्ली में केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी से उनके निवास पर मुलाकात की।
बाद में मीडिया से बातचीत में चौटाला ने बताया कि केंद्र सरकार के वरिष्ठ मंत्री नितिन गडकरी ने उनके तीनों मुद्दों को बड़े गंभीरता से सुना है। ट्रैक्टर सहित नए टोल बैरियर के मुद्दे पर 12 दिसंबर को एक बार फिर परिवहन मंत्रलय में बातचीत के लिए आमंत्रित किया है।
इस दिन इनेलो सांसद दुष्यंत चौटाला के नेतृत्व में गडकरी से इनेलो का चार सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल मिलेगा और उन्हें इस फैसले से उत्पन्न होने वाली समस्याओं के बारे में विस्तृत रूप से जानकारी देगा। अभय चौटाला ने कहा कि 1989 में चौधरी देवीलाल ने जब ट्रैक्टर से पंजीकरण शुल्क हटाया था तो भाजपा उनके निर्णय में शामिल थी। इसलिए भाजपा सरकार को पंजीकरण शुल्क नहीं लगाना चाहिए। उन्होंने बताया कि गडकरी ने खुद को एक किसान बताते हुए इस मुद्दे पर पुनर्विचार करने का आश्वासन दिया है। इसलिए अब इनेलो नए टोल बैरियर के खिलाफ प्रदर्शन नहीं करेगी। इनेलो ने गडकरी को मांगों के समर्थन में एक ज्ञापन भी दिया।
इनेलो ने पूछा, ज्ञानानंद पर मेहरबानी क्यों: इनेलो के प्रदेश अध्यक्ष अशोक अरोड़ा ने कहा कि एक तरफ ब्रह्मसरोवर से बाबाओं को लाठी मारकर भगाया जाता है, वहीं दूसरे बाबा पर सरकार ने मेहरबानी दिखाते हुए करोड़ों की नौ एकड़ जमीन कौड़ियों के भाव दे दी? उन्होंने कहा कि पहले से बने गीता शोध केंद्र में पुलिस थाना चल रहा है। ऐसे में सरकार को चाहिए था कि थाना कहीं और शिफ्ट कर वहां गीता शोध संस्थान बनाए। वहीं स्वामी ज्ञानानंद से भूमि की वास्तविक कीमत ली जाए। अरोड़ा बुधवार को इनेलो कार्यालय में पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे। इनेलो प्रदेश अध्यक्ष ने गीता जयंती के आयोजन के दौरान टेंडरों पर सवाल उठाते हुए कहा कि स्थानीय विधायक की मिलीभगत से बंदरबांट की गई। उन्होंने इसकी जांच सीबीआइ से कराने की मांग की है। जिन पंडालों पर करोड़ों रुपये खर्च हुए उससे कम में स्थायी ढांचा तैयार किया जा सकता था। अशोक अरोड़ा ने स्वामी ज्ञानानंद को नसीहत दी कि नौ एकड़ भूमि पर कोई बड़ा अस्पताल या स्कूल खोला जाए, ताकि गरीबों का इलाज हो सके अथवा उनके बच्चों को सही शिक्षा मिल सके।