साभार: जागरण समाचार
पद्मावती फिल्म को लेकर देशभर में उठे विवादों के बवंडर के बीच गुरुवार को इसके निर्देशक संजय लीला भंसाली और सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष प्रसून जोशी संसदीय समिति के सामने पेश हुए। भंसाली ने सूचना
प्रौद्योगिकी पर संसद की स्थायी समिति को बताया कि इस फिल्म पर जारी विवाद का कारण सिर्फ अफवाह है। मैंने तथ्यों के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की है। समिति ने उनसे कई सवाल किए, जिनका जवाब देने के लिए उनको 14 दिसंबर तक का समय दिया गया है।
भंसाली से पूछा गया कि क्या गिने-चुने पत्रकारों के सामने फिल्म की स्क्रीनिंग करना नैतिक लिहाज से उचित था? इसका मकसद सेंसर बोर्ड को प्रभावित करना तो नहीं था? सूत्रों के अनुसार, समिति ने उनसे पूछा कि जब उन्होंने सेंसर बोर्ड के सामने आवेदन ही 11 नवंबर को दिया, तो फिर एक दिसंबर को इसके प्रदर्शन की उम्मीद उन्हें किस तरह से थी? उल्लेखनीय है कि सिनेमेटोग्राफी एक्ट के तहत किसी फिल्म को प्रमाण पत्र देने से पहले सेंसर बोर्ड इस पर विचार करने के लिए 68 दिनों का समय ले सकता है। संसदीय समिति ने उनसे यह भी पूछा कि क्या विवाद पैदा करना किसी फिल्म के प्रचार का नया तरीका बनता जा रहा है? फिल्म को लेकर चल रहे विवाद पर मीडिया में भी काफी खबरें चल रही हैं और सोशल मीडिया में भी यह मामला गरमाया हुआ है। उनसे कहा गया कि ऐसा लगता है कि उनकी फिल्में किसी समुदाय को निशाना बनाकर बनाई जाती हैं, जिससे समाज में तनाव पैदा होता है। भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर इस संसदीय समिति के अध्यक्ष हैं। भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी और कांग्रेस नेता राज बब्बर समेत इसके 30 सदस्य हैं।
संजय लीला भंसाली ने संसदीय समिति को बताया कि फिल्म पद्मावती मलिक मुहम्मद जायसी की कविता पर आधारित है। उन्होंने कहा कि हमारा मकसद किसी की भावनाओं को आहत करना नहीं है। उल्लेखनीय है कि जायसी ने सोलहवीं सदी में अपने महाकाव्य पद्मावत में पहली बार पद्मावती का जिक्र किया था।
मंजूरी में समय लगेगा - जोशी: सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष प्रसून जोशी ने सूचना प्रौद्योगिकी पर संसद की स्थायी समिति को बताया कि पद्मावती फिल्म को मंजूरी देने में अभी कुछ समय लगेगा। उन्होंने कहा कि फिल्म क्षेत्रीय और केंद्रीय स्क्रीनिंग समितियों को दिखाई जाएगी। इसके बाद इस पर फैसला लिया जाएगा। इससे पहले वे एक अन्य संसदीय समिति के सामने भी पेश हुए थे।