Thursday, November 16, 2017

मिसाल: SP-कलेक्टर की बेटियां पढ़ रहीं सरकारी स्कूल में

साभार: जागरण समाचार 
आम तौर पर सरकारी स्कूलों की छवि ठीक नहीं मानी जाती। यही वजह है कि अभिभावक अपने बच्चों को यहां पढ़ाने से कतराते हैं। पब्लिक स्कूलों को तरजीह दी जाती है। आमजन की इस धारणा को बदलने के लिए
छत्तीसगढ़ के दो अफसरों ने अनूठी पहल की है। उन्होंने अपनी बेटियों का दाखिला सरकारी स्कूल में कराया है। इससे इन स्कूलों के शिक्षक तो उत्साहित हैं ही, स्कूल में पठन-पाठन का स्तर और बेहतर हो चला है।
सबसे पहले बात करते हैं आइपीएस डी. रविशंकर की। एसआइटी रायपुर में बतौर एसपी पदस्थ रविशंकर ने अपनी बिटिया दिव्यांजलि का दाखिला रायपुर स्थित एक सरकारी स्कूल में कराया। दिव्यांजलि इस समय दूसरी में पढ़ रही है। बदलाव की बयार की तरह दिव्यांजलि इस स्कूल में आई। उनके आने से स्कूल का माहौल ही बदल गया। 
दिव्यांजलि घर में भले ही वातानुकूलित परिवेश में रह रही हो लेकिन वह यहां पंखे वाले स्कूल में अन्य बच्चियों के साथ टाट-पट्टी पर बैठकर पढ़ाई करती है। मिड डे मील भी सबके साथ खाती है। आइपीएस की बेटी के स्कूल में दाखिला लेने के बाद यहां के दूसरे पालक भी गर्व महसूस कर रहे हैं। लोगों में स्कूल की शिक्षा गुणवत्ता को लेकर भी विश्वास जागा है। दिव्यांजलि एक भी दिन स्कूल मिस नहीं करती। कुलमिलाकर स्कूल की दशा ही सुधर गई है। हर दिन साफ-सफाई होती है।
शिक्षक नियमित आते हैं और बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने को लेकर अब अधिक उत्साहित दिखते हैं। दिव्यांजलि की मां भी यहां आकर अक्सर बच्चों को अंग्रेजी पढ़ाती हैं। प्राइमरी स्कूल की प्रधान पाठक विजया मुदलियार अपने स्कूल में आइपीएस की बेटी के पढ़ने से काफी खुश हैं। उनका कहना है कि सरकारी स्कूल के प्रति अब पालकों का विश्वास बढ़ता जा रहा है।
यहां नहीं होती अंधी दौड़, बस थोड़ा उत्साह चाहिये: रविशंकर का कहना है कि दिव्यांजलि सरकारी स्कूल में अन्य बच्चियों के साथ खुश है। वह कहते हैं कि उन्होंने अपनी बिटिया को अंधीदौड़ में झोंकना बेहतर नहीं समझा, जैसा कि आजकल के मां-बाप करते हैं। पब्लिक-कॉन्वेंट स्कूलों में बच्चे को डालकर उसे एक तरह की अंधी दौड़ में धकेल दिया जाता है, क्योंकि उन स्कूलों का माहौल कुछ इसी तरह का होता है। जबकि सरकारी स्कूल में यदि हमारे जैसे लोगों के प्रयास से शिक्षा में सुधार होता है तो इनमें उससे कहीं बेहतर माहौल बच्चे को मिल सकता है। बच्चा यहां सहज माहौल में, सहजता से बुनियादी शिक्षा हासिल कर सकता है। यह उसके मानसिक विकास के लिए भी जरूरी है।
कलेक्टर अवनीश ने की थी पहल: बलरामपुर के कलेक्टर अवनीश कुमार शरण ने इस तरह की पहल सबसे पहले की। अपनी बच्ची का दाखिला उन्होंने सरकारी स्कूल में कराया है। उनकी पांच वर्षीय बेटी बेबिका बलरामपुर मुख्यालय स्थित प्राइमरी स्कूल में पढ़ रही है। इससे पहले वे अपनी बेटी को आंगनबाड़ी केंद्र में पढ़ा चुके हैं।
विधायक भी पीछे नहीं: जशपुर जिले में पत्थलगांव से विधायक और संसदीय सचिव शिवशंकर साय पैकरा भी इसमें पीछे नहीं रहे। उन्होंने अपनी दो बेटियों को सरकारी स्कूल में पढ़ाया और अब एक बेटे कार्तिकेय का भी दाखिला कराया है।