साभार: जागरण समाचार
बृहस्पतिवार का दिन। सुबह के 11 बजे हैं। अशोक के घर के बाहर गांव के लोगों का तांता लगा है। मीडिया कर्मी भी इकट्ठा हैं। बुधवार शाम अशोक के जेल से बाहर आने की खुशी से परिजनों के चेहरे खिले नजर आ रहे हैं,
लेकिन एक चिंता की लकीर भी है। अशोक का स्वास्थ्य ठीक नहीं है। उसने जेल से आते ही खाट पकड़ ली है। जागरण संवाददाता से बातचीत में अशोक ने कहा कि यह सब पुलिस की प्रताड़ना के कारण है। उसने कहा कि प्रद्युम्न की हत्या का दोष अपने सिर लेकर उसने खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली। मुङो ऐसा नहीं करना था। मगर करता भी तो क्या? पुलिस वाले मुङो चाय पिला देते। चाय पीते ही नशा हो जाता। फिर वे मुङो इंजेक्शन लगाते और पानी में डुबो देते। मैं भूल गया कि मुङो किस तरह और कितनी मार पड़ी है। अब पूरे शरीर में दर्द है। मैं चल भी नहीं पा रहा। शुक्र है सीबीआइ और मीडिया का, वरना पुलिस वालों ने तो उसका जिंदगी भर का इंतजाम कर डाला था।
पत्नी ने अपने हाथ से खिलाई रोटी: इससे पहले मामा के घर में अशोक को पत्नी ममता ने ही गर्म पानी से नहलाया। अपने हाथ से ही रोटी खिलाई। पति को उठाकर चारपाई पर लिटाया। बुखार से पीड़ित अशोक आंखें बंद कर सोने का प्रयास कर रहा है, लेकिन बार-बार आंखें खुल जाती हैं। वह दर्द से कराह उठता है। उसकी कराह, ममता को अंदर तक हिला देती है।
आंच नहीं आने दूंगी पति पर: ममता से बात हुई। कहने लगीं, गांव के लोगों के घरों में बर्तन मांजूंगी। दो पैसे कमाऊंगी। मगर अपने पति पर आंच नहीं आने दूंगी। मेरे पति पर एसआइटी ने इतना कहर बरपाया है कि उनका सारा शरीर टूट गया है। उठ तक नहीं पा रहे। आप देखो, क्या हालत कर दी है पुलिस ने इनकी। बिस्तर पर मुर्दा की तरह पड़े हैं। अब मेरे पति इस लायक नहीं रहे कि कमा सकें। लेकिन मैं अपने पति को न्याय दिलाने के लिए लडूंगी।
बेकसूर है मेरा देवर: अशोक की भाभी अनुराधा कहती हैं, ‘मेरा देवर पहले बेकसूर था। ये तो पुलिस वालों ने मार-मार कर झूठे केस में फंसा दिया। मुङो अदालत पर पूरा भरोसा है। एक कोर्ट से हमें न्याय मिला है। आगे भी मिलेगा।’
कैसे गुजारे होंगे डेढ़ महीने: मामी ओमवती कहती हैं, ‘अशोक तो पूरे गांव का भांजा लगता है। कभी किसी से लड़ा तक नहीं। बेचारे ने कैसे जेल में डेढ़ महीना गुजारा होगा। एक अन्य मामी रजनी कहती हैं, ‘हमें तो पहले भी भरोसा नहीं था कि अशोक ऐसा कर सकता है। भला हो प्रद्युम्न के माता-पिता का।
एक पल में उजड़ गई थी जिंदगी: 74 दिन बाद भोंडसी जेल की सलाखों से जमानत पर बाहर आए स्कूल बस हेल्पर अशोक ने कहा कि पुलिस ने उसकी खुशहाल जिंदगी को एक पल में उजाड़ दिया। उसके परिवार की समाज में वर्षों से जो इज्जत थी, वह धूल में मिल गई। सीबीआइ जांच नहीं होती तो उसकी जिंदगी जेल में ही बीत जाती। यातना और मानसिक क्लेश भरे दिनों में परिवार को क्या-क्या सहना और सुनना पड़ा, उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता? दो बच्चों के पिता अशोक रोते हुए कहता है, ‘मैं गरीब भले ही हूं लेकिन अपनों के साथ खुशहाली से जिंदगी बिता रहा था। खाकी वर्दी वालों ने उसकी जिंदगी में जो भूचाल खड़ा कर दिया, उससे उबरने में हो सकता है कि वर्षों लग जाएं। संभव है कि यह सब मुङो ताउम्र कचोटता रहे। मेरे बच्चों से लोग कहते थे, ़तुम्हारा बाप हत्यारा है’, क्योंकि माहौल ही ऐसा हो गया था।