साभार: जागरण समाचार
हरियाणा में अब एफआइआर में जाति व धर्म का कालम नहीं होगा। प्रदेश सरकार ने पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में शपथ पत्र दायर कर यह जानकारी दी है। सरकार की तरफ से कोर्ट को बताया गया कि इसके लिए
हरियाणा सरकार पुलिस रूल्स में संशोधन करने जा रही है। हालांकि सरकार ने कहा कि एससी/एसटी से संबंधित केसों में इनका लिखा जाना जरूरी होगा। अब सुनवाई 14 दिसंबर को होगी।
याची हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले वकील एचसी अरोड़ा के अनुसार पंजाब पुलिस रूल्स-1934 में एफआइआर में अभियुक्त और पीड़ित की जाति लिखे जाने का प्रावधान है। यह गलत है। अपराधी का कोई धर्म नहीं होता और न ही उसकी कोई जाति होती है। वह केवल अपराधी होता है। उसकी जाति और धर्म भी अपराध होता है। अभियुक्त व शिकायतकर्ता की पहचान अन्य तरीके से भी दर्ज की जा सकती है जैसे आधार कार्ड, पिता के साथ दादा का नाम, गली, वार्ड आदि।’
याची ने कोर्ट को बताया कि पिछले साल सितंबर में शिमला हाई कोर्ट ने भी पुलिस रूल्स के तहत विभिन्न फार्म में से जाति के कालम को खत्म करने के निर्देश दिए थे। पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ को भी ऐसा करने के लिए निर्देशित किया जाना चाहिए। सुनवाई के दौरान पंजाब व चंडीगढ़ प्रशासन ने इस मामले में अपना पक्ष रखने के लिए समय देने की मांग की। इसे कोर्ट ने मान लिया। दोनों अगली सुनवाई पर जवाब देंगे।
जेल में भी कैदियों की जाति व धर्म का रखा जाता है रिकार्ड: याचिका में नेशनल क्राइम ब्यूरो के आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया गया है की जेलों में 68 .9 फीसद हंिदूू, 17 .7 फीसद मुस्लिम और बाकी अन्य धमोर्ं के हैं। इसी तरह 30 फीसद ओबीसी, 35 फीसद सामान्य और 21 .9 फीसद कैदी अनुसूचित जाति वर्ग के हैं। याची ने कहा कि ये आंकड़े भी इसी जातिवादी भावना के कारण तैयार किए गए हैं।