साभार: जागरण समाचार
हरियाणा में सरकारी अधिकारियों के बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ाए जाने की मांग को लेकर दायर याचिका पर हाई कोर्ट ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को अधिकार है कि वह अपने बच्चे को किस स्कूल में पढ़ाना चाहता है।
इसलिए कैसे किसी अधिकारी को उसके बच्चे को सरकारी स्कूल में पढ़ाने के लिए बाध्य किया जा सकता है। जस्टिस एके मित्तल एवं जस्टिस अमित रावल की खंडपीठ ने यह टिपण्णी एडवोकेट जगबीर मालिक की याचिका पर सुनवाई करते हुए की है।
हाई कोर्ट ने कहा कि ऐसा लगता है कि याची सभी निजी शिक्षण संस्थान बंद करने की मांग कर रहा है। इस पर याची ने कहा कि अगर अधिकारी अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ाएं तो स्कूलों का स्तर सुधर सकता है, क्योंकि ये अधिकारी स्कूलों में सुधार के लिए कदम उठाएंगे। हाई कोर्ट ने कहा कि अगर आप सरकारी स्कूलों का स्तर सुधारना चाहते हैं तो इस मांग को लेकर याचिका दायर करें, लेकिन किसी के अधिकार पर पाबंदी लगाने की मांग करना जायज नहीं है। याची ने इस विषय में कुछ और तथ्य उपलब्ध करवाने के लिए समय दिए जाने की मांग की, जिस पर हाई कोर्ट ने कहा कि अगर याची बेहतर तथ्य नहीं दे पाया तो याचिका खारिज कर दी जाएगी। साथ ही याची पर जुर्माना भी लगाया जा सकता है। इसके बाद हाई कोर्ट ने याचिका एडमिट करते हुए सुनवाई जनवरी तक स्थगित कर दी है।
बता दें कि पंचकूला के जगबीर मालिक ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर बताया कि सरकारी अधिकारियों और राजनेताओं के बच्चे निजी स्कूलों में पढ़ते हैं, इसलिए वे सरकारी स्कूलों की ओर ध्यान नहीं दे रहे। इस कारण सरकारी स्कूलों का स्तर गिर रहा है। इसलिए हाई कोर्ट से आग्रह है कि अधिकारियों को उनके बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ाए जाने के आदेश दिए जाएं। याची ने बताया कि अधिकारियों के बच्चे निजी स्कूलों में पढ़ाई कर रहे हैं और सरकार इन अधिकारीयों को फीस रिफंड करती है। इस फीस रिफंड के नोटिफिकेशन को भी रद किया जाए।