साभार: जागरण समाचार
अमेरिका समर्थित सीरियाई मिलीशिया ने आइएस के आतंकियों को हथियार डालकर रक्का से जाने की इजाजत दे दी है। सीरियाई मूल के आतंकी अपने घरों को वापस जा सकते हैं। लेकिन विदेशी मूल के आतंकियों
के लिए यह छूट नहीं है। खबर है कि शनिवार रात आतंकियों के एक समूह ने करीब चार सौ नागरिकों को ढाल बनाकर रक्का को छोड़ा। उल्लेखनीय है कि रक्का सीरिया में आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट (आइएस) की राजधानी था। जून से जारी भीषण संघर्ष के बाद सीरियाई मिलीशिया को उसे आइएस से छीनने में सफलता मिली है।
सीरिया का रक्का शहर का नियंत्रण आइएस के हाथ से निकलकर अब अमेरिका समर्थित सीरियन डेमोक्रेटिक फोर्सेस (एसडीएफ) के पास पहुंच गया है। यह सशस्त्र संगठन सीरिया में बशर अल-असद सरकार का भी विरोध कर रहा है। इस लिहाज से रक्का अब सीरिया की सरकारी फौज और मिलीशिया के बीच संघर्ष का ठिकाना बनेगा। रक्का में शांति की संभावना फिलहाल नहीं है। हां, आइएस आतंकियों के अत्याचार से रक्का में रहने वालों को मुक्ति मिल गई है। वैसे बड़ी संख्या में शहरवासी इस बर्बाद शहर को छोड़कर पहले ही जा चुके हैं।
एसडीएफ के प्रवक्ता तलाल सिलो के अनुसार विदेशी मूल के आतंकियों को लड़ते हुए मरना होगा या फिर उन्हें हथियार डालकर समर्पण करना होगा। उन्हें हथियार डालकर भागने की छूट नहीं होगी। लेकिन रक्का की सिविल सोसायटी इससे कुछ अलग बात कह रही है। मिलीशिया के लड़ाके फिलहाल आगे बढ़ते हुए एक-एक इलाका खाली करा रहे हैं। जहां-तहां उन्हें आतंकियों के प्रतिरोध का सामना भी करना पड़ रहा है। सन 2014 में इराकी शहर मोसुल से खिलाफत का एलान किया गया था। इसमें रक्का को पश्चिमी देशों पर हमले के लिए मुख्य ठिकाना बनाया गया था। यहां पर यूरोप और ऑस्ट्रेलिया से बड़ी संख्या में आए कट्टरपंथियों को रखा गया था और उन्हें आतंकी ट्रेनिंग दी गई थी। इसके बाद उन्हें विरोधियों से लड़ने के लिए मोर्चो पर भेजा जाता था।
एसडीएफ के प्रवक्ता तलाल सिलो के अनुसार विदेशी मूल के आतंकियों को लड़ते हुए मरना होगा या फिर उन्हें हथियार डालकर समर्पण करना होगा। उन्हें हथियार डालकर भागने की छूट नहीं होगी। लेकिन रक्का की सिविल सोसायटी इससे कुछ अलग बात कह रही है। मिलीशिया के लड़ाके फिलहाल आगे बढ़ते हुए एक-एक इलाका खाली करा रहे हैं। जहां-तहां उन्हें आतंकियों के प्रतिरोध का सामना भी करना पड़ रहा है। सन 2014 में इराकी शहर मोसुल से खिलाफत का एलान किया गया था। इसमें रक्का को पश्चिमी देशों पर हमले के लिए मुख्य ठिकाना बनाया गया था। यहां पर यूरोप और ऑस्ट्रेलिया से बड़ी संख्या में आए कट्टरपंथियों को रखा गया था और उन्हें आतंकी ट्रेनिंग दी गई थी। इसके बाद उन्हें विरोधियों से लड़ने के लिए मोर्चो पर भेजा जाता था।