साभार: जागरण समाचार
औपनिवेशिक मानसिकता वाली शिक्षा प्रणाली को दुरुस्त करने वाली नई शिक्षा नीति की घोषणा दिसंबर में की जाएगी। केंद्रीय मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री सत्यपाल सिंह ने सोमवार को बताया कि नई नीति पर गहन
विचार मंथन जारी है और यह अब अंतिम चरण में है।
भारतीय विचार केंद्र द्वारा आयोजित नेशनल एकेडमिक मीट का उद्घाटन करने बाद केंद्रीय मंत्री ने कहा, आजादी मिलने के बाद ज्यादातर शिक्षाविदों ने ब्रिटिश और पश्चिमी विद्वानों की नीतियों को अपनाया और जानबूझकर भारतीय संस्कृति को नुकसान पहुंचाया। सरकार और शिक्षा प्रणाली के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती इस बात की है कि भारतीयों को औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्ति कैसे दिलाई जाए और इस क्षेत्र में देश कैसे दुनिया के साथ कदम से कदम मिलाकर चल सके। कुछ मुद्दे हैं जिनका समाधान किया जाना है, मसलन प्राथमिक स्तर पर शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार, उच्च शिक्षा को सस्ता बनाना, ज्यादा से ज्यादा लोगों तक इसकी उपलब्धता सुनिश्चित करना और छात्रों के बीच सामाजिक और क्षेत्रीय असमानताओं को दूर करना। उन्होंने कहा कि कौशल विकास ऐसा क्षेत्र हैं जिसका पर सरकार सबसे ज्यादा ध्यान दे रही है, लेकिन इस दिशा में भी काफी कुछ किया जाना बाकी है।
उच्च शिक्षा तक सिर्फ 25.6 प्रतिशत लोगों की पहुंच: मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री ने कहा कि भारत में उच्च शिक्षा तक लोगों की पहुंच सिर्फ 25.6 प्रतिशत है जबकि अमेरिका में यह 86 प्रतिशत, जर्मनी में 80 प्रतिशत और चीन में 60 प्रतिशत है। उन्होंने कहा, ‘कुछ इलाकों में उच्च शिक्षा तक लोगों की पहुंच सिर्फ नौ प्रतिशत तक है, लेकिन कुछ स्थानों पर यह 60 प्रतिशत तक भी है.. उच्च शिक्षा काफी महंगी है और इसे समाज के सभी वर्गो के लिए और सस्ता बनाया जाना है।’
विश्वविद्यालयों में शिक्षकों के 50 प्रतिशत पद रिक्त: सत्यपाल सिंह ने बताया कि विश्वविद्यालयों में शिक्षकों के 50 प्रतिशत पद खाली पड़े हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय में ही 4,000 हजार पद रिक्त हैं। उन्होंने कहा कि शिक्षा के अधिकार कानून में भी बदलाव की जरूरत है क्योंकि इसमें कठोरता का अभाव है। कानून में प्राथमिक शिक्षा का अधिकार तो प्रदान किया गया है, लेकिन माता-पिता अगर अपने बच्चों को स्कूल ही नहीं भेजें तो फिर क्या समाधान है? लिहाजा देश में प्राथमिक शिक्षा के स्तर में सुधार के लिए काफी कुछ किए जाने की जरूरत है।