Monday, October 23, 2017

दो कहानियां मैनेजमेंट की: प्रयोग करते रहिए, कुछ तो कारगर साबित हो ही जाएगा

एन. रघुरामन (मैनेजमेंटगुरु)
साभार: भास्कर समाचार
'मुझे समझमें नहीं आता कि यह लड़का मॉनिटर कैसे बना दिया गया, जो किसी काम का नहीं है?' ऊंची आवाज में कही यह बात मैंने 1970 पार के दशक में मेरे दोस्त के साथ स्कूल से बाहर निकलते हुए सुनी। मेरे उस मित्र
को एक दिन पहले ही मॉनिटर बनाया गया था। सच तो यह है कि एक महिला ने तो अपनी आंखें घुमाते हुए मुझे आगाह किया था कि मैं उस दोस्त से दूर ही रहूं। जब मैंने उसकी सलाह की अनदेखी की तो वह उसी शाम हमारे घर गई और मेरी मां से कहने लगी कि वे मुझे समझाए कि सही दोस्तों का चुनाव कैसे किया जाता है। यदि आप कक्षा के बहुत बुद्धिमान छात्र हैं तो आपको हैरानी होगी कि कक्षा के सबसे शरारती बच्चे को कक्षा का नेतृत्व कैसे सौंपा जा सकता है और वह भी आपके पसंदीदा टीचर द्वारा? 
उस वक्त की वह रणनीति मुझे लगता है कि आज के वक्त में भी उतनी ही प्रासंगिक है। इससे बच्चे की कुछ ऐसी गतिविधियां, जो समाज को स्वीकार्य नहीं होती वह एकदम घट जाती हैं और उसका समाज के लिए स्वीकार्य व्यवहार बढ़ जाता है। फिर इसमें नया क्या है? चंडीगढ़ के फॉरेवर फ्रेंड्स फाउंडेशन (एफएफएफ) के संस्थापक निदेशक विकास लुथरा और पुणे के सॉफ्टवेयर इंजीनियर सनी लुथरा द्वारा आवारा कुत्तों पर इस विचार प्रक्रिया को अपनाना नया है। 
स्टोरी 1: काम से बहुत थक गए हैं और ऐसा लग रहा है जैसे किसी ने निचोड़ लिया है? दफ्तर में किसी कुत्ते को प्यार से सहलाकर,गले लगाकर देखिए! चंडीगढ़ में अपनी तरह की अलग पहल करते हुए शहर के प्राणी प्रेमियों और डॉग ट्रेनर ने कॉर्पोरेट्स के लिए डॉग कडलिंग सर्विस शुरू की है। इसमें अनूठी बात यह है कि ये केवल देशी भारतीय नस्ल के कुत्तों को ही कडल स्पेशलिस्ट की ट्रेनिंग देते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि यह सेवा मुफ्त है। 
चूंकि मानसिक तनाव समकक्षी लोगों का दबाव अध्ययन तथा कामकाजी जीवन का हिस्सा बनता जा रहा है, विकास ने करीब तीन महीने पहले यह कडल सर्विस शुरू की है और यह उन्होंने सिर्फ देशी कुत्तों के माध्यम से ही करने का निर्णय लिया। वर्तमान में ट्रायसिटी के काम के तनाव से थके कर्मचारियों का इलाज सिर्फ प्रशिक्षित देशी भारतीय नस्लों के कुत्ते ही करते हैं, जिसका स्थानीय कॉर्पोरेट ने स्वागत तो किया है पर वह कुछ असमंजस के साथ। 
कुत्तों को प्रोफेशनल बिहेवियरिस्ट और डॉग ट्रेनर दिवय दाहिया द्वारा प्रशिक्षण दिया जा रहा है। वे कुत्तों को चार दीवारों तक सीमित रखने की बजाय प्राकृतिक वातावरण में प्रशिक्षण देते हैं। एक बार वे जब उससे परिचित हो जाते हैं और विभिन्न वातावरण में उनके व्यवहार को देख लिया जाता है उसके बाद उन्हंे एक से तीन हफ्ते का प्रशिक्षण देकर कडल सर्विस के लिए पंजीबद्ध कर लिया जाता है। ट्रेनिंग के बाद उन्हें उसी इलाके में छोड़ दिया जाता है, जिसकी उन्हें आदत होती है। इलाके के लोगों को प्रेरित किया जाता है कि वे इनकी खाने-पीने की जरूरतों का ध्यान रखें। 

स्टोरी 2: हर सप्ताहांत में पुणे के डॉग बिहेवियरिस्ट सनी को एक खुले फैले हुए स्थान मोहम्मदवादी में आवारा और पालतू कुत्तों से घिरा देखा जा सकता है। वे आवारा कुत्तों के बीच पालतू कुत्तों को प्रशिक्षण दे रहे होते हैं। पालूत कुत्ते झुंड में घूमने वाले ऐसे कुत्तों से आज्ञाकारिता सीखते हैं, जो सड़कों पर किसी ऐसे कुत्ते का नेतृत्व स्वीकारते हैं, जिससे में आक्रामक ऊर्जा अधिक होती है। आवासीय सोसायटी के साथ काम करने वाले लुथरा पालतू कुत्तों के मालिकों और उनकी ऊंची नस्लों के कुत्तों को आवारा कुत्तों से संबंध बनाना सिखाते हैं। इस तरह अप्रत्यक्ष रूप से वे पालतू कुत्तों के मालिकों को भी रिहायशी इलाकों के आवारा कुत्तों के प्रति दयालु होना सिखाते हैं। जैसे पालतू कुत्ते अपने मालिक/मालकिन को सुरक्षा देते हैं उसी तरह आवारा कुत्ते भी अपने सदस्य को कोई खतरा होने पर संरक्षण देते हैं। 
प्रकृति बहुतायत में लीडर तैयार नहीं करती और यही वजह है कि 99 प्रतिशत कुत्ते जन्म से ही अनुयायी किस्म के होते हैं वे किसी ऐसे नेता का अनुसरण करते हैं, जो शांत, संतुलित होता है और जिसके आसपास आक्रामक रवैए का आभामंडल होता है। चूंकि आवारा कुत्ते इस हायरार्की का पालन करते हैं वे पालतू कुत्तों के मुकाबले अधिक शांत होते हैं। 
फंड यह है कि उभरती प्रतिकूल परिस्थितियों में प्रयोग करते रहिए, आखिरकार कुछ कुछ तो कारगर साबित हो ही जाएगा। कुछ करते रहना बहुत जरूरी है। नया तभी जन्म लेता है।