साभार: जागरण समाचार
भारत और अमेरिका के बीच रणनीतिक मामलों में रिश्ते निश्चित तौर पर ज्यादा प्रगाढ़ हो रहे हैं। लेकिन, एच-1बी वीजा को लेकर दोनों देशों के बीच बात बनती नजर नहीं आ रही। ट्रंप प्रशासन एच-1बी वीजा पर येन-
केन-प्रकारेण हतोत्साहित करने में जुटी है और भारत का मानना है कि इससे अमेरिका में कारोबार कर रही उसकी आइटी कंपनियों के लिए काफी मुश्किल हो जाएगी। यही वजह है कि पिछले चार महीने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, वित्त मंत्री अरुण जेटली और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज यह मुद्दा ट्रंप प्रशासन के सामने उठा चुके हैं। लेकिन, अमेरिका की तरफ से कोई ठोस आश्वासन नहीं मिला है।
ऐसे में सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग की नजर प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की अगले महीने मनीला में होने वाली संभावित मुलाकात पर है। विदेश मंत्री रेक्स टिलरसन भी अगले हफ्ते भारत की यात्र पर आएंगे। उस दौरान भी यह मुद्दा प्रमुखता से उठेगा। सूचना प्रौद्योगिक कंपनियों के संगठन नासकाम की तरफ से एच-1बी वीजा पर अमेरिका में समर्थन हासिल करने की कोशिश की गई। लेकिन, उसका भी कोई असर नहीं हुआ है। मंगलवार को विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की भारत की यात्र पर आए अमेरिकी कांग्रेस के कुछ प्रमुख सदस्यों से मुलाकात हुई। विदेश मंत्रलय के प्रवक्ता रवीश कुमार के मुताबिक स्वराज ने एच-1बी वीजा मुद्दे को बेहद प्रमुखता से उठाया और इस पर कांग्रेस के सदस्यों का सहयोग भी मांगा। सूत्रों का कहना है कि अमेरिकी कांग्रेस के सदस्यों ने आपसी हितों को देखते हुए मुद्दा सुलझाने की बात कही है। लेकिन, इसे ठोस आश्वासन नहीं माना जा सकता।
ट्रंप प्रशासन पर असर नहीं: प्रधानमंत्री मोदी ने जून, 2017 में ट्रंप के साथ द्विपक्षीय बैठक में एच-1बी वीजा का मुद्दा उठाया था। सितंबर, 2017 में विदेश मंत्री स्वराज की अमेरिका यात्र के दौरान भी यह मुद्दा उठाया गया। अप्रैल, 2017 में विदेश सचिव एस जयशंकर अमेरिका से लौटे ही थे कि दोनों सदनों में एच-1बी वीजा पर रोक लगाने संबंधी आधे दर्जन से ज्यादा विधेयक पेश कर दिए गए थे।
सबसे ज्यादा जाते हैं भारतीय: अमेरिका की तरफ से सालाना 80-90 हजार एच-1बी वीजा दिए जाते हैं। इनमें से 60-70 फीसद भारतीय पेशेवरों को मिलते हैं।
सबसे ज्यादा जाते हैं भारतीय: अमेरिका की तरफ से सालाना 80-90 हजार एच-1बी वीजा दिए जाते हैं। इनमें से 60-70 फीसद भारतीय पेशेवरों को मिलते हैं।