Tuesday, October 24, 2017

सिनेमा हॉल में कोई राष्ट्रगान में खड़ा हो तो वह किसी से कम देशभक्त नहीं - सुप्रीम कोर्ट

साभार: भास्कर समाचार
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि देशभक्ति साबित करने के लिए सिनेमा हॉल में खड़ा होना जरूरी नहीं है। यह कतई नहीं समझा जाना चाहिए कि अगर कोई राष्ट्रगान के दौरान खड़ा नहीं हुआ तो वह कम देशभक्त है। आस्तीन में
देशभक्ति ढोने के लिए दबाव नहीं डाला जा सकता। सोसायटी को मोरल पुलिसिंग की जरूरत नहीं है। अगली बार सरकार चाहेगी कि लोग सिनेमाघरों में टी शर्ट्स और शाॅर्ट्स में नहीं जाएं, क्योंकि इससे राष्ट्रगान का अपमान होगा। ये सख्त टिप्पणियां चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने सोमवार को की। सिनेमा हॉल में राष्ट्रगान बजाए जाने और खड़ा होने संबंधी अपने आदेश में संशोधन के संकेत देते हुए पीठ ने केंद्र से पूछा कि फ्लैग कोड और राष्ट्रगान के नियम कानून बदलने से आपको किसने रोका है? सरकार अलग पाॅलिसी बनाने पर विचार करे। पीठ ने कहा कि सिनेमा हॉल में लोग मनोरंजन के लिए जाते हैं और उन्हें बिना रुकावट के मनोरंजन मिलना चाहिए। हम इस बात की अनुमति नहीं देंगे कि सरकार अदालत के कंधे पर रखकर बंदूक चलाए। मामले में अगली सुनवाई 9 जनवरी को होगी।
सुप्रीम कोर्ट ने 30 नवंबर 2016 को देशभक्ति और राष्ट्रवाद की भावना पैदा करने के मकसद से सिनेमाघरों में फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान बजाना और दर्शकों के लिए इसके सम्मान में खड़ा होना अनिवार्य कर दिया था। केरल फिल्म सोसायटी इस आदेश को वापस लेने या संशोधन करने की मांग कर रही है। 
अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल: अगर कोई व्यक्ति सिनेमाघर में खड़े होकर राष्ट्रगान नहीं गाता तो वह देशद्रोही नहीं है। राष्ट्रगान भारतीय नागरिक होने के गर्व का अहसास कराता है। राष्ट्रीयता की भावना जगाने में ऐसे फैसलों से मदद मिलती है। विविधता वाले देश में एकरूपता लाने के लिए सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बजाना आवश्यक है। कोर्ट चाहे तो अन्य जगहों या संस्थानोंं में भी राष्ट्रगान बजाने को लेकर आदेश जारी कर सकता है। 
जस्टिस चंद्रचूड़: आपको ध्वज संहिता में संशोधन करने से कौन रोक रहा है? आप इसमें संशोधन कर सकते हैं और प्रावधान कर सकते हैं कि राष्ट्रगान कहां बजाया जाएगा और कहां नहीं बजाया जा सकता। आजकल तो यह मैचों, टूर्नामेंट और यहां तक कि ओलिंपिक में भी बजाया जाता है, जहां आधे दर्शक तो इसका मतलब भी नहीं समझते हैं। पहले के आदेश से प्रभावित हुए बगैर संशोधन पर 9 जनवरी तक विचार करें। 
याचिकाकर्ता: सिनेमा हॉलमें लोग मनोरंजन के लिए जाते हैं। राष्ट्रगान के वक्त खड़ा नहीं होने का मतलब यह नहीं कि संबंधित व्यक्ति में देश के प्रति प्रेम नहीं है। मनोरंजन के मकसद से गए लोगों में उस समय अलग भावना होती है। 
जस्टिस चंद्रचूड़: लोग सिनेमा हॉल में मनोरंजन के लिए जाते हैं और उन्हें बिना किसी रुकावट के मनोरंजन मिलना चाहिए। इसी दौरान एकवकील ने दलील दी गई कि व्यस्क फिल्मों के प्रसारण से पूर्व राष्ट्रगान बजाने से उसका अपमान होता है। 
जस्टिस चंद्रचूड़: कहां पर राष्ट्रगान का अनादर होता है और कहां पर नहीं, यह तय करने का काम सरकार का है। किसी बात की इच्छा होना एक बात है और किसी बात को अनिवार्य कर देना दूसरी बात। जनता को उनके राष्ट्रभक्त होने का प्रमाण देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।