Sunday, March 17, 2019

50 साल में हरियाणा से लोकसभा तक केवल पांच महिलाएं पहुंच सकीं, जानें क्‍यों है ऐसे हालात

साभार: जागरण समाचार 
हरियाणा में नारी सशक्तीकरण के दावों के बीच लोकसभा चुनावों का इतिहास करारा झटका देने वाला है। देश की सबसे बड़ी पंचायत संसद में महिलाओं को भेजने के लिए न तो सियासी दलों ने कोई खास तवज्जो दी और न
ही मतदाताओं ने दरियादिली दिखाई। यहां पिछले 50 वर्षों में केवल पांच महिलाएं ही  लोकसभा तक पहुंची हैं। वह भी पारिवारिक सियासी रसूख और राष्ट्रीय दलों के टिकट के बल पर। 
50 साल में लोकसभा तक केवल पांच महिलाएं पहुंच सकीं, जानें क्‍यों है ऐसे हालातनिर्दलीय कोई महिला आज तक हरियाणा से संसद नहीं पहुंची है। कांग्रेस की चंद्रावती, कुमारी सैलजा और श्रुति चौधरी, भाजपा की सुधा यादव और इनेलो की कैलाशो सैनी ही हरियाणा गठन (एक नवंबर 1966) के बाद इस दौरान लोकसभा में पहुंच पाईं। प्रदेश से पहली महिला सांसद बनने का गौरव जनता पार्टी की चंद्रावती के नाम है। उन्होंने 1977 में चौधरी बंसीलाल को हराया था।
इस दौरान प्रदेश से चुने गए 151 सांसदों में (जब यह पंजाब का हिस्सा था, तब  से) महिलाओं को केवल आठ बार ही चुना गया। करनाल, रोहतक, हिसार, फरीदाबाद, गुरुग्राम और सोनीपत ने आज तक एक बार भी किसी महिला को संसद में नहीं भेजा है। सबसे ज्यादा तीन बार कांग्रेस की कुमारी सैलजा संसद पहुंचीं। वह दो बार अंबाला और एक बार सिरसा आरक्षित सीट पर चुनी गईं। इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) के टिकट पर कैलाशो सैनी दो बार कुरुक्षेत्र से जीतीं तो पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल की पौत्री श्रुति चौधरी  भिवानी-महेंद्रगढ़ और भाजपा की सुधा यादव महेंद्रगढ़ से एक-एक बार लोकसभा पहुंचने में सफल रहीं। कैलाशो अब कांग्रेस में हैं।
1951 में पहले आम चुनाव के दौरान भी: संयुक्त पंजाब में करनाल, रोहतक और हिसार सीटें मौजूद थीं। जबकि फरीदाबाद, गुरुग्राम और सोनीपत की सीटें 1977 में अस्तित्व में आईं। 1999 में हरियाणा की जनता ने पहली बार दो महिलाओं महेंद्रगढ़ से भाजपा की सुधा यादव और कुरुक्षेत्र से इनेलो की कैलाशो सैनी को लोकसभा भेजा। महिलाओं के लिए 2014 सबसे निराशाजनक रहा, जब एक भी महिला प्रदेश से संसद नहीं पहुंच पाई। पिछले आम चुनाव में भाजपा ने एक भी महिला उम्मीदवार को मैदान में नहीं उतारा।
इसलिए महिलाओं पर दांव नहीं खेलते सियासी दल: राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि  महिलाओं के जीते की संभााना काफी कम होती है। इसीलिए दल उनसे परहेज करते हैं। यही वजह है कि सियासी गलियारों में महिला सशक्तीकरण एक दूर का सपना है। ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ के नारे के फलीभूत होने के बाद अब हरियाणा में जरूरत राजनीति में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की है।
ग्राम पंचायतों में 42 फीसद महिलओं की ताजपोशी से बढ़ी उम्‍मीदें: पहली बार ग्राम  पंचायतों  में  महिलाओं को निर्धारित कोटे से कहीं अधिक पंच-सरपंच बना कर उन्हें पलकों  पर बैठाने वाले हरियाणा में अब सभी की नजरें लोकसभा चुनावों पर हैं। प्रदेश में पहली बार लोगों ने जिस तरह पंचायतों में 33 फीसद आरक्षित सीटों के बदले 42 फीसद पर महिलाओं की ताजपोशी की, उससे देश की सबसे बड़ी पंचायत में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ने की उम्मीद जगी है। मौजूदा समय में प्रदेश की कुल मतदाताओं में महिलाओं की भागीदारी बढ़कर 46.35 फीसद तक पहुंच गई है जिसके चलते सियासी दलों के लिए उनकी अनदेखी करना मुमकिन नहीं होगा।
विधानसभा में पहली बार पहुंची रिकॉर्ड 13 महिलाएं: 2014 के लोकसभा चुनावों में भले ही प्रदेश से कोईाहिाा सांसद नहीं बन पाई, लेकिन विधानसभा में पहली बार महिलाएं पहुंची। हालांकि विधानसभा की 90 सीटों के लिए मैदान में उतरी 116 महिलाओं में से 93 को हार का मुंह देखना पड़ा। विधानसभा में सत्तारूढ़ भाजपा से सर्वाधिक आठ विधायक जीती, जबकि कांग्रेस की तीन और इनेलो व हजकां की एक-एक महिलाओं को विधायक चुना गया।