साभार: जागरण समाचार
हरियाणा की राजनीति कभी तीन लालों के इशारों पर चलती थी। 1970 से 2000 तक हरियाणा की राजनीति तीन लालों के इर्द गिर्द घूमती थी। भारतीय राजनीति में चौधरी देवीलाल, चौधरी बंसीलाल और चौधरी
भजनलाल की धमक थी। लेकिन, आज उनकी राजनीतिक विरासत बिखर गई है। उनके पुत्र-पौत्र इसे नहीं संभाल सके।
जंग बंसीलाल के परिवार में भी चल रही है, लेकिन यह जंग राजनीतिक विरासत के लिए नहीं, संपत्ति के लिए है। एक तरफ बंसीलाल के बड़े बेटे रणबीर महेंद्रा हैं तो दूसरी तरफ छोटे बेटे सुरेंद्र सिंह की पत्नी किरण चौधरी। चौधरी भजनलाल के दोनों पुत्रों चंद्रमोहन और कुलदीप भी कभी साथ तो कभी दूर नजर आते हैं।
देवीलाल के जीवन में ही शुरू हो गई थी कलह: चौधरी देवीलाल की राजनीतिक विरासत को लेकर कलह उनके जीवनकाल में ही शुरू हो गई थी। यह बात अलग थी कि उन्होंने बड़े बेटे ओमप्रकाश चौटाला का साथ दिया और बाकी बेटे राजनीति की रपटीली राहों पर रपट गए। अब फिर वैसा ही दोहराया जा रहा है। अंतर इतना है कि जेल में बंद ओम प्रकाश चौटाला अपने छोटे बेटे अभय के साथ हैं तो अजय (वह भी जेल में पिता के साथ बंद हैं) के दोनों बेटे सांसद दुष्यंत और दिग्विजय अपने पिता के निर्देश के अनुसार जननायक जनता पार्टी (देवीलाल को जननायक कहा जाता था) बनाकर अपने चाचा अभय को राजनीति में टक्कर दे रहे हैं।
वे जींद उपचुनाव में खुद को चाचा पर भारी भी साबित कर चुके हैं। हालांकि इंडियन नेशनल लोकदल का चुनाव निशान अभय के पास है लेकिन कई विधायकों के पार्टी छोड़ जाने (इनमें अजय की पत्नी नैना चौटाला भी शामिल हैं) के कारण उनका विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद छिन चुका है।
चौधरी बंसीलाल के परिवार में संपत्ति का भी विवाद: चौधरी बंसीलाल के दोनों बेटों रणबीर महेंद्रा और सुरेंद्र सिंह में भी पिता की राजनीतिक विरासत संभालने को लेकर होड़ थी। सुरेंद्र लोकसभा तक पहुंचे, प्रदेश में मंत्री बने, लेकिन 2004 में विमान हादसे में उनकी मौत के कुछ समय बाद बंसीलाल का भी निधन हो गया।
सुरेंद्र सिंह की पत्नी किरण प्रदेश में मंत्री पद तक पहुंची, बेटी श्रुति को भिवानी से सांसद बनाने से कामयाब हुईं। लेकिन श्रुति पिछला चुनाव हार गईं। किरण पिछला विधानसभा चुनाव भी जीतीं और कांग्रेस विधायक दल की नेता भी बन गईं। रणबीर कांग्रेस के टिकट पर पिछला विधानसभा चुनाव हार चुके हैं।
कुलदीप और चंद्रमोहन के बीच भी नहीं चल रहा सब ठीक: चौधरी भजनलाल के युग में बड़े बेटे चंद्रमोहन प्रभावी थे, लेकिन 2005 के विधानसभा चुनावों के बाद भजनलाल मुख्यमंत्री बनने से चूक गए तो छोटे बेटे कुलदीप ने अलग दल बना लिया। भजनलाल ने उनका साथ दिया। चंद्रमोहन कांग्रेस में ही रहे, इसकी वजह यह थी कि मुख्यमंत्री की रेस में हारने के बाद चंद्रमोहन को कांग्रेस ने भूपेंद्र सिंह हुड्डा मंत्रिमंडल में उपमुख्यमंत्री बना दिया था। लेकिन दूसरी शादी करने के बाद कांग्रेस ने उन्हें पद से हटा दिया और वह नेपथ्य में चले गए।
भजनलाल के निधन के बाद रिक्त हुई हिसार लोकसभा सीट कुलदीप भाजपा के सहयोग से जीतने में सफल रहे, लेकिन गठबंधन टूटने के बाद हुए चुनाव हार गए, लेकिन वह और उनकी पत्नी विधानसभा की सीटें जीत गए। इसके कुछ दिनों बाद ही उन्होंने अपने दल का कांग्रेस में विलय कर लिया और वहां भी तवज्जो न पाने से नाराज हैं।