Monday, March 25, 2019

INLD के विघटन को लेकर विधानसभा अध्यक्ष का फैसला होगा महत्वपूर्ण

साभार: जागरण समाचार 
विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष अभय चौटाला द्वारा अपने पद से सशर्त त्यागपत्र देने की स्थिति में विधानसभा अध्यक्ष कंवरपाल गुर्जर की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। सो, अभय चौटाला ने अपनी पार्टी के चार वरिष्ठ
नेताओं आरएस चौधरी, एमएस मलिक, डॉ. सतबीर सैनी और बीडी ढालिया को स्पीकर के पास पैरवी करने की जिम्मेदारी सौंपी है।
INLD के विघटन को लेकर विधानसभा अध्यक्ष का फैसला होगा महत्वपूर्णअध्यक्ष को लिखे पत्र पर इनेलो के प्रधान राष्ट्रीय महासचिव आरएस चौधरी के हस्ताक्षर हैैं। यह चारों नेता अध्यक्ष को तमाम तथ्य और दस्तावेज सौंपेंगे, ताकि विधायकों के खिलाफ जल्द से जल्द सदस्यता रद करने की कार्रवाई की जा सके। हालांकि जो प्रक्रिया है, वह काफी लंबी होती है और विधानसभा चुनाव के पहले फैसला आना संभव नहीं लगता है।
इस संबंध में विधानसभा अध्यक्ष के निजी सचिव सुभाष शर्मा का कहना है कि इनेलो के राष्ट्रीय महासचिव की ओर से हमें चिट्ठी मिली है। विधानसभा अध्यक्ष मंगलवार को चंडीगढ़ आएंगे। तब उनके सामने चिट्ठी पेश की जाएगी। वह विधायकों का पक्ष जानने के लिए उन्हें बुला सकते हैैं। तब उसके बाद कोई निर्णय होगा।
सात विधायकों के खिलाफ हो चुकी कार्रवाई: उधर, अभय चौटाला का कहना है कि उन्हें पद का कोई लालच नहीं है। अध्यक्ष को सौंपे दस्तावेज में तमाम उन उदाहरणों की जानकारी दी है, जिनमें पार्टी विरोधी गतिविधियों के चलते विधायकों, सांसदों अथवा राज्यसभा सदस्यों के विरुद्ध कार्रवाई की जाती रही है। अभय के अनुसार 2005 में सात निर्दलीय विधायक चुनाव जीतकर आए थे। तब उन्होंने कांग्र्रेस में अपनी आस्था जता दी थी। उस समय विधानसभा अध्यक्ष ने उन्हें अयोग्य करार दे दिया था।
शरद यादव की जा चुकी राज्यसभा की सदस्यता: अभय चौटाला, आरएस चौधरी और बीडी ढालिया ने स्पीकर को लिखे पत्र के हवाले से तर्क दिया कि शरद यादव को राज्यसभा की सदस्यता से हटाया जा चुका है। नीतीश कुमार ने यह साबित कर दिया था कि शरद यादव पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल हैैं तो राज्यसभा अध्यक्ष वेंकैया नायडू ने उनके निलंबन और 10वें शेड्यूल के तहत उनकी अयोग्यता को उचित ठहराया था।
सुप्रीम कोर्ट के रवि नायक बनाम यूनियन आफ इंडिया के फैसले की दलील: रवि नायक बनाम यूनियन ऑफ इंडिया 1994 के सर्वोच्च न्यायालय के एक फैसले का जिक्र भी स्पीकर को लिखे पत्र में किया गया है। उस फैसले के अंतर्गत कहा गया कि यदि कोई व्यक्ति त्याग पत्र नहीं भी देता परंतु अपनी गतिविधियों और आचरण से उस पार्टी के विरुद्ध कार्य कर रहा है, जिसने उसे चुनकर विधानसभा या राज्यसभा में भेजा है तो माना जाना चाहिए कि उसने स्वेच्छा से उस पार्टी की सदस्यता को त्याग दिया है।
मैैं अभी जिंदा हूं, पार्टी फिर खड़ी होगी: अभय चौटाला का कहना है कि इतिहास गवाह है, जब भी किसी ने हमारी पार्टी की पीठ में छुरा घोंपा, वह कभी लोकसभा या विधानसभा का मुंह नहीं देख पाया। यह लोग दोबारा नहीं आ सकते, मगर मैैं विधानसभा में जीतकर आऊंगा। इस तरह के दौर हमारे सामने कई बार आए हैैं। यह पहला मौका नहीं है। पार्टी से गद्दारी करने वालों को लोग बख्शेंगे नहीं। मैैं अभी जिंदा हूं। चौटाला साहब भी बाहर आने वाले हैैं। पार्टी एक बार फिर पूरे जोश के साथ खड़ी नजर आएगी।