साभार: जागरण समाचार
व्यक्ति के परिवेश और समुदाय का उसके खानपान पर गहरा असर पड़ता है। इसी तरह हर व्यक्ति के खानपान का उसके वातावरण पर भी प्रभाव पड़ता है। एक अध्ययन के मुताबिक अंग्रेजों का खानपान पर्यावरण के लिहाज
से सबसे ज्यादा खतरनाक होता है। इनके भोजन के उत्पादन में ज्यादा पानी की खपत होती है और ज्यादा ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन भी होता है।
जर्नल ऑफ इंडस्टि्रयल इकोलॉजी में प्रकाशित अध्ययन में इस बात का विश्लेषण किया गया है कि विभिन्न क्षेत्रों में रहने वालों के भोजन निर्माण में कितने पानी और जमीन की जरूरत होती है। खानपान के उत्पादन की प्रक्रिया में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन का भी अध्ययन किया गया। अध्ययन इस उद्देश्य से किया गया, जिससे पर्यावरण संरक्षण से जुड़ी नीतियों में लोगों के खानपान की आदतों और जरूरतों का ध्यान रखा जा सके। पर्यावरण संरक्षण की नीति से किसी क्षेत्रविशेष के लोगों के खानपान पर दुष्प्रभाव नहीं पड़े।
अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ इलिनॉइस के जो बोजमैन ने कहा, 'फूड पाइपलाइन यानी खाने के उत्पादन, वितरण और उसके कचरे से पर्यावरण पर व्यापक प्रभाव पड़ता है। अगर हम खानपान से जुड़ी नीति तैयार करना चाहें तो यह हर क्षेत्र के लोगों पर लागू नहीं हो सकती। हर क्षेत्र के लोगों के खानपान का तरीका और पर्यावरण पर उसका प्रभाव अलग-अलग है।'
शोधकर्ताओं ने 500 से ज्यादा प्रकार के भोजन की खपत और पर्यावरण पर उनके प्रभाव का अध्ययन किया। शोध के मुताबिक, गोरे लोग सालाना प्रति व्यक्ति 680 किलोग्राम ग्रीनहाउस गैस कार्बन डाई ऑक्साइड के उत्सर्जन का कारण बनते हैं। यह उनके खानपान से सीधे तौर पर जुड़ा है। वहीं लैटिन लोग 640 किलोग्राम और अश्वेत लोग 600 किलोग्राम ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन का कारण बनते हैं। कुल आबादी के आधार पर इससे बहुत बड़ा अंतर आ जाता है।